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चोल प्रशासन: केन्द्रीय, प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन की विशिष्टताएँ

Shilu Sinha
Shilu Sinha  @shilusinha
Created At - 2025-03-18
Last Updated - 2025-03-18

Table of Contents

  • परिचय
  • 1. केंद्रीय प्रशासन
    • 1.1 राजा की भूमिका
    • 1.2 मंत्रिपरिषद और अधिकारी
  • 2. प्रांतीय प्रशासन
  • 3. स्थानीय प्रशासन और ग्राम व्यवस्था
    • 3.1 ग्राम सभाएँ और उनकी भूमिका
    • 3.2 समितियों का गठन और कार्य
  • 4. आर्थिक और कर प्रणाली
    • 4.1 भूमि कर और अन्य कर
    • 4.2 व्यापार और वाणिज्य
  • 5. न्याय प्रणाली
  • निष्कर्ष

परिचय

चोलों ने अपने विशाल साम्राज्य के लिए एक मजबूत और संगठित प्रशासनिक व्यवस्था बनाई थी। शासन का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था, जिसके अधिकार बहुत अधिक थे। राजा का पद वंशानुगत था, यानी राज्य का उत्तराधिकारी राजपरिवार से ही चुना जाता था। आमतौर पर सबसे बड़े पुत्र को राजा बनाया जाता था। राजा को शासन चलाने में मंत्रियों और अधिकारियों की सहायता मिलती थी।

चोलों के पास एक मजबूत सेना थी, जिसमें सैनिकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता था। राजा की रक्षा के लिए एक अलग अंगरक्षक दल भी था। सेना का संचालन नायक, सेनापति और महा दंडनायक जैसे अधिकारी करते थे।

1. केंद्रीय प्रशासन

चोल साम्राज्य में राजा सर्वोच्च शासक होता था, जिसकी शक्ति वंशानुगत होती थी। राजा का शासन चलाने में मंत्रिपरिषद और अन्य उच्च अधिकारी सहायता करते थे।

1.1 राजा की भूमिका

  • राजा चोल प्रशासन का केंद्र था और वह राज्य की सभी नीतियों और निर्णयों का अंतिम निर्धारक होता था।
  • उसे ‘कोइल’ कहा जाता था, जिसका अर्थ मंदिर से जुड़ा हुआ राजा होता था। इससे यह स्पष्ट होता है कि चोल राजाओं का शासन धर्म से प्रभावित था।
  • राजा की सहायता के लिए विभिन्न स्तरों पर अधिकारी नियुक्त किए गए थे।

1.2 मंत्रिपरिषद और अधिकारी

राजा की सहायता के लिए एक संगठित मंत्रिपरिषद होती थी, जिसमें विभिन्न विभागों के प्रमुख अधिकारी शामिल होते थे। इनमें प्रमुख पद निम्नलिखित थे:

  • महा दंडनायक: न्याय और दंड से संबंधित कार्यों का प्रमुख अधिकारी।
  • सेनापति: सेना के संचालन और रक्षा से जुड़ा हुआ उच्च अधिकारी।
  • नायक: विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों के प्रबंधक।
  • महासंधिविग्रहक: विदेश नीति और कूटनीति से जुड़ा उच्च अधिकारी।

राजा अपनी नीतियों को प्रभावी बनाने के लिए एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक तंत्र का निर्माण करता था, जो राज्य की आर्थिक, न्यायिक और सैन्य व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करता था।

2. प्रांतीय प्रशासन

चोल साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसे विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया था। यह विभाजन निम्नलिखित था:

  • मंडलम् (Mandalam): चोल साम्राज्य को कई मंडलम् में विभाजित किया गया था, जिनका प्रशासन मंडलेश्वर के अधीन होता था।
  • वलनाडु (Valanadu): प्रत्येक मंडलम् को कई वलनाडु में विभाजित किया गया था।
  • नाडु (Nadu): वलनाडु के अंतर्गत छोटे प्रशासनिक क्षेत्र नाडु होते थे, जिनमें ग्राम प्रशासन संचालित किया जाता था।
  • कुर्रम (Kurram): नाडु के अंतर्गत आने वाली सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई जिसे गाँव के नाम से जाना जाता था।

प्रांतीय प्रशासन का मुख्य उद्देश्य कर संग्रह, कानून व्यवस्था बनाए रखना, और कृषि तथा व्यापार को बढ़ावा देना था। नाडु के प्रमुख स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी नाट्टार कहलाते थे।

3. स्थानीय प्रशासन और ग्राम व्यवस्था

चोल शासन प्रणाली में स्थानीय प्रशासन को विशेष महत्व दिया गया था। स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों को स्वायत्त रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी गई थी।

3.1 ग्राम सभाएँ और उनकी भूमिका

ग्राम प्रशासन चोल शासन की सबसे बड़ी विशेषता थी। गाँवों में निम्नलिखित प्रशासनिक इकाइयाँ थीं:

  • उर (Ur): यह आम जनता की सभा थी, जिसमें सभी नागरिक भाग ले सकते थे।
  • सभा (Sabha): यह ब्राह्मणों द्वारा संचालित संस्था थी, जो गाँव के प्रशासन का संचालन करती थी।
  • महासभा (Mahasabha): यह गाँव के प्रमुख व्यक्तियों की सभा थी, जो बड़े निर्णय लेने के लिए गठित की जाती थी।
  • नगरम् (Nagaram): यह व्यापारिक संगठनों द्वारा संचालित संस्था थी, जो व्यापार और आर्थिक गतिविधियों की देखरेख करती थी।

3.2 समितियों का गठन और कार्य

ग्राम सभाएँ विभिन्न समितियों का गठन करती थीं, जो विभिन्न कार्यों का निष्पादन करती थीं। इनमें शामिल थीं:

  • भूमि और कर संग्रह समिति: जो राजस्व एकत्र करने का कार्य करती थी।
  • सिंचाई और जल प्रबंधन समिति: जो जलाशयों, नहरों और तालाबों का रखरखाव करती थी।
  • शिक्षा और मंदिर समिति: जो शिक्षा संस्थानों और धार्मिक स्थलों की देखरेख करती थी।
  • न्याय समिति: जो गाँव में कानून व्यवस्था और विवादों के निपटारे का कार्य करती थी।

4. आर्थिक और कर प्रणाली

चोल साम्राज्य की आर्थिक व्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी। कर संग्रह और राजस्व प्रणाली अत्यंत संगठित थी।

4.1 भूमि कर और अन्य कर

  • राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि कर (लगान) था। किसानों से उनकी उपज का 1/3 भाग कर के रूप में लिया जाता था।
  • सीमा शुल्क: व्यापारियों से व्यापारिक गतिविधियों पर कर लिया जाता था।
  • उद्योग और व्यवसाय कर: व्यवसाय और कुटीर उद्योगों पर कर लगाया जाता था।
  • खानों और जंगलों से राजस्व: प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर कर लगाया जाता था।

4.2 व्यापार और वाणिज्य

चोल शासन के दौरान व्यापार बहुत विकसित था।

  • प्रमुख व्यापारिक समूह जैसे वलेंजयर और मनिग्रामम व्यापार को संगठित रूप से संचालित करते थे।
  • दक्षिण भारत के व्यापारियों के पश्चिमी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से व्यापारिक संबंध थे।

5. न्याय प्रणाली

चोल प्रशासन की न्याय प्रणाली संगठित थी।

  • न्यायालयों का संचालन राजा के आदेशानुसार किया जाता था।
  • नाडु और गाँव स्तर पर स्थानीय ग्राम सभाएँ छोटे-मोटे मामलों का निपटारा करती थीं।
  • गंभीर अपराधों के लिए राज्य स्तर पर विशेष न्यायालय होते थे।
  • अपराधियों को दंड देने के लिए न्यायिक व्यवस्था सख्त थी।

निष्कर्ष

चोल प्रशासन अत्यधिक संगठित और प्रभावी था। केंद्रीय प्रशासन राजा के नेतृत्व में कार्य करता था, जबकि प्रांतीय और स्थानीय प्रशासनिक इकाइयाँ सुचारू रूप से कार्य करती थीं। सबसे महत्वपूर्ण विशेषता गाँवों को दी गई स्वायत्तता थी, जिससे प्रशासनिक कार्य कुशलता से पूरे किए जाते थे। समय के साथ, राजकीय हस्तक्षेप बढ़ता गया, लेकिन चोल शासन प्रणाली अपनी स्थानीय प्रशासनिक स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध रही।

चोल साम्राज्य की यह शासन प्रणाली न केवल अपने समय में बल्कि भविष्य की शासन प्रणालियों के लिए भी एक मिसाल बनी।

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