वैदिक धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म है, जो वेदों के आधार पर विकसित हुआ। वेद भारतीय धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं और इन्हें वैदिक काल में रचा गया। वैदिक काल को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है: ऋग्वेदिक काल और उत्तरवैदिक काल। निम्नलिखित में इन दोनों कालों की विस्तृत चर्चा की गई है:
- काल: 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू.
- ग्रंथ: ऋग्वेद
- ऋग्वेदिक काल का धर्म प्रकृति आधारित था और इसमें देवताओं की प्रधानता थी। देवताओं को तीन श्रेणियों में बांटा गया:
- पृथ्वीवासी देवता: ये देवता पृथ्वी से संबंधित थे, जैसे कि पृथ्वी, अग्नि, सोम, और वृहस्पति।
- अंतरिक्षवासी देवता: ये देवता आकाशीय तत्वों से जुड़े थे, जैसे कि इन्द्र, वायु, मरूत, रूद्र, और पूषण।
- आकाशवासी देवता: ये देवता आकाश और आकाशीय तत्वों से संबंधित थे, जैसे कि वरूण, मित्र, और सूर्य।
- ऋग्वेदिक धर्म में यज्ञ और पशुबलि की प्रथा महत्वपूर्ण थी। यज्ञ एक प्रकार की पूजा थी जिसमें अग्नि के माध्यम से देवताओं को आहुति दी जाती थी।
- स्त्री और पुरुष स्वयं अनुष्ठान कर सकते थे, बिना किसी पुरोहित की सहायता के। यह दर्शाता है कि धार्मिक क्रियाकलापों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता थी।
- धार्मिक जीवन उच्च कोटि का था, जिसमें नैतिकता और अनुशासन का विशेष महत्व था।
- काल: 1000 ई. पू. से 600 ई. पू.
- ग्रंथ: यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
- यजुर्वेद: यजुर्वेद में यज्ञ और हवन से संबंधित मंत्रों का संग्रह है। इसमें यज्ञ की विधियाँ, नियम और विधान वर्णित हैं। यह वेद विशेष रूप से यज्ञ के संचालन और इसके विभिन्न अनुष्ठानों की प्रक्रिया पर केंद्रित है।
- सामवेद: सामवेद में गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। यह वेद संगीत और गायन से संबंधित मंत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो यज्ञों और अनुष्ठानों के दौरान गाए जाते थे।
- अथर्ववेद: अथर्ववेद में तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, और आयुर्वेदिक औषधियों का विवरण मिलता है। यह वेद विशेष रूप से चिकित्सा, औषधियों, और जादू-टोने के प्रयोग पर केंद्रित है।
- उत्तरवैदिक काल के दौरान वैदिक धर्म में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। यज्ञ की विधियों और अनुष्ठानों में अधिक स्पष्टता और संगठन आया।
- धार्मिक गतिविधियाँ और प्रथाएँ अधिक परिष्कृत और जटिल हो गईं। सामवेद और यजुर्वेद के मंत्रों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष स्थान प्राप्त करने लगा।
ऋग्वेदिक काल और उत्तरवैदिक काल में वैदिक धर्म ने विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक प्रथाओं का विकास किया। ऋग्वेदिक धर्म में प्रकृति पूजा और यज्ञ की प्रधानता थी, जबकि उत्तरवैदिक काल में वैदिक साहित्य का विस्तार हुआ और यज्ञ तथा मंत्रों का अधिक व्यवस्थित और परिष्कृत उपयोग देखने को मिला। इन दोनों कालों ने भारतीय धर्म और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।