समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र पर विद्वानों के बीच पर्याप्त मतभेद हैं। यह मतभेद स्वाभाविक है क्योंकि किसी भी प्रगतिशील विज्ञान का विषय-क्षेत्र पूरी तरह से निश्चित नहीं किया जा सकता है और उसे किसी निश्चित सीमा में नहीं बांधा जा सकता है। समाजशास्त्र को लेकर विद्वानों के विचार मुख्य रूप से दो प्रमुख सम्प्रदायों में विभाजित हैं: स्वरूपात्मक या यथारूपेण सम्प्रदाय (Formal School) और **समन्वयात्मक सम्प्रदाय (Synthetic School)**।
समाजशास्त्र के अध्ययन के एक विशेष दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। यह सम्प्रदाय समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र और विशिष्ट विज्ञान मानता है, जो मानव समाज में संबंधों और अंतःक्रियाओं के स्वरूपों (forms) पर केंद्रित है। इस सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थक जॉर्ज सिम्मेल, वीरकान्त, वॉन वीज, और मैक्स वेबर जैसे प्रमुख समाजशास्त्री हैं। ये विद्वान मानते हैं कि समाजशास्त्र का मुख्य कार्य मानव समाज में विभिन्न संबंधों के स्वरूपों का अध्ययन करना है, न कि उन संबंधों की विशिष्ट सामग्री या अंतर्वस्तु का।
जॉर्ज सिम्मेल ने इस दृष्टिकोण की नींव रखी, जिसमें उन्होंने सामाजिक संबंधों के स्वरूप और अंतर्वस्तु के बीच स्पष्ट भेद किया। उनके अनुसार, स्वरूप (form) और अंतर्वस्तु (content) दो अलग-अलग वास्तविकताएं हैं। उदाहरण के लिए, एक ही आकार की गेंद को अलग-अलग सामग्री जैसे लोहा, रबर, या लकड़ी से बनाया जा सकता है। इसी प्रकार, सामाजिक संबंधों के विभिन्न स्वरूपों में एक ही अंतर्वस्तु हो सकती है। सिम्मेल ने तर्क दिया कि समाजशास्त्र का कार्य सामाजिक संबंधों के स्वरूपों का विश्लेषण करना है, जबकि अन्य सामाजिक विज्ञान उनके अंतर्वस्तु पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
सिम्मेल के अनुसार, प्रभुत्व (domination), प्रतिस्पर्धा (competition), सहयोग (cooperation), और संघर्ष (conflict) जैसे सामाजिक संबंधों के स्वरूप विभिन्न सामाजिक संदर्भों में मौजूद होते हैं। उदाहरण के लिए, प्रभुत्व का स्वरूप एक परिवार, एक संगठन, या एक राजनीतिक दल में पाया जा सकता है, भले ही इन विभिन्न संदर्भों की अंतर्वस्तु अलग-अलग हो। समाजशास्त्र का काम इन स्वरूपों की पहचान करना और उनका विश्लेषण करना है, न कि उनकी विशिष्ट सामग्री का।
1. स्वरूपों की प्राथमिकता: स्वरूपात्मक सम्प्रदाय का प्रमुख सिद्धांत यह है कि समाजशास्त्र को सामाजिक संबंधों के स्वरूपों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि ये स्वरूप उन संरचनाओं और प्रक्रियाओं को उजागर करते हैं जो समाज के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाजशास्त्र को मानवीय अंतःक्रियाओं के उन सार्वभौमिक स्वरूपों की खोज करनी चाहिए जो विभिन्न सामाजिक संदर्भों में दोहराए जाते हैं।
2. स्वरूप और अंतर्वस्तु का पृथक्करण: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इस सम्प्रदाय के विद्वान स्वरूप और अंतर्वस्तु को अलग मानते हैं। वे मानते हैं कि सामाजिक संबंधों के स्वरूपों का अध्ययन समाजशास्त्र का प्राथमिक कार्य है, जबकि अन्य सामाजिक विज्ञान उन संबंधों की विशिष्ट सामग्री या अंतर्वस्तु का अध्ययन करते हैं। यह दृष्टिकोण समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र और विशिष्ट विज्ञान के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है।
3. सामाजिक संबंधों का विश्लेषण: स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के अनुसार, समाजशास्त्र को मानवीय संबंधों के विशिष्ट स्वरूपों का विश्लेषण करना चाहिए, जैसे अधीनता (subordination), अनुकरण (imitation), श्रम विभाजन (division of labor), प्रतिस्पर्धा (competition), सहयोग (cooperation), संघर्ष (conflict), आदि। इन स्वरूपों का अध्ययन समाजशास्त्र को विभिन्न सामाजिक संरचनाओं और प्रक्रियाओं की समझ प्रदान करता है।
4. मानव मनोविज्ञान और समाजशास्त्र का संबंध: वीरकान्त, इस सम्प्रदाय के एक अन्य प्रमुख विचारक, ने समाजशास्त्र को उन मानसिक संबंधों के अंतिम स्वरूपों का अध्ययन करने वाला विज्ञान बताया जो मनुष्यों को एक-दूसरे से बांधते हैं। उन्होंने यह तर्क दिया कि समाजशास्त्र को यश, सम्मान, प्रेम, लज्जा जैसे मानसिक संबंधों के स्वरूपों का अध्ययन करना चाहिए। इन संबंधों का अध्ययन करके, समाजशास्त्र उन मानसिक बंधनों को समझ सकता है जो मानव समाज के निर्माण में योगदान करते हैं।
समाजशास्त्र के अध्ययन के एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। यह सम्प्रदाय समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान के रूप में देखता है, जो सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं का समन्वित रूप से अध्ययन करता है। इस सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थकों में हॉबहाउस (Hobhouse), सोरोकिन (Sorokin), इमाइल दुर्खीम (Emile Durkheim), और जिंसबर्ग (Ginsberg) शामिल हैं। ये विद्वान मानते हैं कि समाजशास्त्र का कार्य केवल विशेष सामाजिक संबंधों या घटनाओं का अध्ययन करना नहीं है, बल्कि सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं को एक समग्र दृष्टिकोण से समझना है।
समन्वयात्मक सम्प्रदाय का दृष्टिकोण दो मुख्य आधारों पर आधारित है:
1. समाज और शरीर की समानता: इस सम्प्रदाय के अनुसार, समाज एक शरीर (organism) की तरह है, जहाँ विभिन्न अंग (सामाजिक संस्थाएं और संगठन) एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे पर निर्भर हैं। जिस प्रकार एक शरीर के विभिन्न अंग आपस में संबंधित होते हैं और मिलकर एक संगठित इकाई बनाते हैं, उसी प्रकार समाज के विभिन्न अंग भी आपस में जुड़े होते हैं और मिलकर एक संगठित समाज का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए, एक राजनीतिक घटना का आर्थिक प्रभाव हो सकता है, या एक सामाजिक आंदोलन धार्मिक दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, समाज का अध्ययन समग्र रूप से किया जाना चाहिए ताकि समाज के विभिन्न अंगों के बीच संबंधों और प्रभावों को समझा जा सके।
2. सामाजिक जीवन का सम्पूर्ण दृष्टिकोण: समन्वयात्मक सम्प्रदाय के अनुसार, समाजशास्त्र को सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का समग्र अध्ययन करना चाहिए। समाज केवल आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, या पारिवारिक दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता है। इन सभी पहलुओं के बीच अंतर्संबंधों (interrelations) का अध्ययन करना आवश्यक है। समाजशास्त्र का कार्य इन अंतर्संबंधों को समझना और समाज के समग्र रूप को उजागर करना है। उदाहरण के लिए, आर्थिक स्थिति, राजनीतिक ढांचा, धार्मिक मान्यताएं, और सामाजिक संस्थाएं एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं और मिलकर सामाजिक जीवन का निर्माण करती हैं। समाजशास्त्र को इन सभी पहलुओं का अध्ययन करना चाहिए ताकि समाज का व्यापक और समग्र दृष्टिकोण प्राप्त हो सके।
1. सामाजिक तथ्यों का वर्गीकरण: समन्वयात्मक सम्प्रदाय के समर्थक सामाजिक तथ्यों को वर्गीकृत करने और उनका व्यापक अध्ययन करने पर जोर देते हैं। वे मानते हैं कि समाजशास्त्र को सामाजिक घटनाओं के विभिन्न वर्गों का अध्ययन करना चाहिए, जैसे कि आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, और पारिवारिक घटनाएं। प्रत्येक वर्ग के अध्ययन से समाज की संपूर्ण समझ प्राप्त की जा सकती है।
2. विशिष्ट और सामान्य विज्ञान का समन्वय: इस सम्प्रदाय का मानना है कि समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, जो विशिष्ट सामाजिक विज्ञानों (जैसे अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि) के निष्कर्षों को समन्वित करता है। समाजशास्त्र का कार्य अन्य सामाजिक विज्ञानों के बीच पुल का काम करना है, ताकि समाज के विभिन्न पहलुओं का एकीकृत दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जा सके। यह दृष्टिकोण समाज के विभिन्न पहलुओं के बीच अंतर्संबंधों को समझने में मदद करता है और समाजशास्त्र को एक व्यापक और समग्र विज्ञान के रूप में स्थापित करता है।
3. सामाजिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं का अध्ययन: समन्वयात्मक सम्प्रदाय सामाजिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं के अध्ययन पर जोर देता है। यह मानता है कि समाजशास्त्र का कार्य केवल व्यक्तिगत सामाजिक संबंधों का अध्ययन करना नहीं है, बल्कि सामाजिक संस्थाओं (जैसे परिवार, धर्म, शिक्षा, राजनीति) और प्रक्रियाओं (जैसे समाजीकरण, नियंत्रण, परिवर्तन) का अध्ययन करना है। यह दृष्टिकोण समाज के संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक पहलुओं की समग्र समझ प्रदान करता है।
4. समाजशास्त्र का व्यापक उद्देश्य: इस सम्प्रदाय के अनुसार, समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य समाज के समग्र कार्यकरण को समझना है। यह केवल विशिष्ट घटनाओं या संबंधों का अध्ययन नहीं करता है, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं के बीच अंतर्संबंधों और उनके प्रभावों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र का उद्देश्य समाज के व्यापक सिद्धांतों और नियमों को खोजने का है, जो समाज की संरचना और कार्यकरण को समझने में मदद कर सकते हैं।
1. समग्रता पर जोर: इस सम्प्रदाय की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह समाज के सभी पहलुओं का समग्र अध्ययन करने पर जोर देता है। यह दृष्टिकोण समाजशास्त्र को एक व्यापक और समग्र विज्ञान के रूप में स्थापित करता है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं का एकीकृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
2. अंतःविषय दृष्टिकोण: समन्वयात्मक सम्प्रदाय अन्य सामाजिक विज्ञानों के निष्कर्षों को समन्वित करता है और समाजशास्त्र को एक अंतःविषय विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करता है। यह दृष्टिकोण समाज के विभिन्न पहलुओं के बीच संबंधों को समझने में मदद करता है और समाजशास्त्र को एक व्यापक और समग्र विज्ञान के रूप में विकसित करता है।
3. सामाजिक संरचना और प्रक्रियाओं का अध्ययन: इस सम्प्रदाय के समर्थक समाज की संरचना और प्रक्रियाओं के अध्ययन पर जोर देते हैं। यह दृष्टिकोण समाज के संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक पहलुओं की समग्र समझ प्रदान करता है और समाजशास्त्र को एक समग्र विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करता है।
4. सामाजिक जीवन के व्यापक सिद्धांतों की खोज: समन्वयात्मक सम्प्रदाय का मुख्य उद्देश्य समाज के व्यापक सिद्धांतों और नियमों की खोज करना है, जो समाज की संरचना और कार्यकरण को समझने में मदद कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित विज्ञान के रूप में स्थापित करता है।
समन्वयात्मक सम्प्रदाय की आलोचना भी हुई है। कुछ आलोचक मानते हैं कि यह दृष्टिकोण समाजशास्त्र को बहुत ही व्यापक और अस्पष्ट बना देता है। इसके अतिरिक्त, यह दृष्टिकोण विशिष्ट सामाजिक संबंधों और घटनाओं का गहन अध्ययन करने में विफल हो सकता है, क्योंकि यह समाज के समग्र अध्ययन पर अधिक जोर देता है। आलोचकों का यह भी तर्क है कि यह दृष्टिकोण समाजशास्त्र को एक स्पष्ट और विशिष्ट विज्ञान के रूप में स्थापित करने में असमर्थ है, क्योंकि यह अन्य सामाजिक विज्ञानों के निष्कर्षों पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र के बारे में विद्वानों में हमेशा से मतभेद रहे हैं। समाजशास्त्र को कुछ विद्वान एक विशेष विज्ञान (Special Science) मानते हैं, जबकि कुछ इसे एक सामान्य विज्ञान (General Science) के रूप में देखते हैं। इस दृष्टिकोण के पीछे यह धारणा है कि समाजशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो समाज के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है, चाहे वे विशेष हों या सामान्य। इस सिद्धांत को समझने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम समाजशास्त्र के दोनों रूपों की विशेषताओं और उनके अंतर्संबंधों पर ध्यान दें।
समाजशास्त्र को विशेष विज्ञान मानने वाले विद्वान इस दृष्टिकोण की वकालत करते हैं कि समाजशास्त्र का उद्देश्य केवल विशेष सामाजिक संबंधों, घटनाओं, और प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, समाजशास्त्र का ध्यान केंद्रित रहता है:
1. विशिष्ट सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन: इस दृष्टिकोण के तहत, समाजशास्त्र विशिष्ट सामाजिक संस्थाओं जैसे परिवार, धर्म, शिक्षा, और राजनीति का अध्ययन करता है। यह अध्ययन इन संस्थाओं की संरचना, कार्य, और उनके समाज पर प्रभाव को समझने का प्रयास करता है।
2. विशिष्ट सामाजिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण: विशेष विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र विभिन्न सामाजिक प्रक्रियाओं जैसे समाजीकरण, सामाजिक नियंत्रण, सामाजिक परिवर्तन, और सामाजिक गतिशीलता का विश्लेषण करता है। यह अध्ययन समाज के विभिन्न स्तरों पर इन प्रक्रियाओं के प्रभाव को समझने में मदद करता है।
3. सामाजिक समस्याओं का अध्ययन: समाजशास्त्र का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज में मौजूद विभिन्न सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करना भी है। जैसे गरीबी, अपराध, असमानता, और सामाजिक असमानता। यह अध्ययन समाज के विभिन्न समूहों और समुदायों के अनुभवों और उनके जीवन स्थितियों को समझने में मदद करता है।
4. सामाजिक संबंधों की विशेषता: विशेष विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र विशिष्ट सामाजिक संबंधों, जैसे मित्रता, वैवाहिक संबंध, और परिवारिक संबंधों का विश्लेषण करता है। यह अध्ययन इन संबंधों की संरचना, उनके विकास, और उनके सामाजिक संदर्भ को समझने में मदद करता है।
दूसरी ओर, समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान मानने वाले विद्वान इस विचार को प्रस्तुत करते हैं कि समाजशास्त्र का उद्देश्य समाज के सामान्य सिद्धांतों और नियमों का अध्ययन करना है जो सभी सामाजिक जीवन के पहलुओं को समझने में मदद करता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार:
1. समाज का समग्र अध्ययन: सामान्य विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र समाज के विभिन्न पहलुओं का समग्र अध्ययन करता है। यह दृष्टिकोण समाज के विभिन्न संस्थाओं, प्रक्रियाओं, और समस्याओं के बीच संबंधों को समझने का प्रयास करता है। इसका उद्देश्य एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण प्रदान करना है जो समाज के समग्र कार्यकरण को समझने में मदद कर सके।
2. सामाजिक सिद्धांतों और नियमों की खोज: समाजशास्त्र का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज के व्यापक सिद्धांतों और नियमों की खोज करना है। यह अध्ययन समाज की संरचना, कार्य, और विकास के सामान्य नियमों को समझने का प्रयास करता है। यह सिद्धांत और नियम समाज के सभी क्षेत्रों में लागू होते हैं और समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित विज्ञान के रूप में स्थापित करते हैं।
3. सामाजिक जीवन के अंतर्संबंधों का अध्ययन: सामान्य विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र विभिन्न सामाजिक जीवन के पहलुओं के बीच अंतर्संबंधों का अध्ययन करता है। यह दृष्टिकोण समाज के विभिन्न संस्थाओं और प्रक्रियाओं के बीच संबंधों को समझने में मदद करता है और समाज के समग्र चित्र को उजागर करता है।
समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र में विशेष और सामान्य दोनों विज्ञान के दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हैं और एक-दूसरे को पूरक करते हैं।
1. विशेष और सामान्य का समन्वय: समाजशास्त्र का उद्देश्य केवल विशेष घटनाओं या संबंधों का अध्ययन करना नहीं है, बल्कि इन विशेषताओं के माध्यम से समाज के सामान्य सिद्धांतों और नियमों की खोज करना है। यह दृष्टिकोण विशेष और सामान्य के बीच संबंध को स्पष्ट करता है और समाजशास्त्र को एक व्यापक और समग्र विज्ञान के रूप में स्थापित करता है।
2. उदाहरण के माध्यम से समझ: उदाहरण के लिए, यदि हम एक विशेष सामाजिक संस्था जैसे परिवार का अध्ययन करते हैं, तो हम न केवल इस संस्था की विशिष्ट विशेषताओं को समझ सकते हैं, बल्कि इसके माध्यम से समाज के सामान्य कार्यकरण के सिद्धांतों को भी उजागर कर सकते हैं। इसी प्रकार, विभिन्न सामाजिक प्रक्रियाओं जैसे समाजीकरण, सामाजिक नियंत्रण, और सामाजिक परिवर्तन का अध्ययन हमें समाज के सामान्य नियमों और सिद्धांतों को समझने में मदद कर सकता है।
3. व्यावहारिक अनुप्रयोग: समाजशास्त्र का विशेष और सामान्य दोनों विज्ञान के रूप में अध्ययन व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है। विशेष समस्याओं का विश्लेषण और सामान्य सिद्धांतों की खोज समाजशास्त्र को समाज के सुधार और विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए, गरीबी, अपराध, और असमानता जैसी समस्याओं के विश्लेषण से समाज में इन समस्याओं के समाधान के लिए नीतियाँ बनाई जा सकती हैं।
समाजशास्त्र को विशेष और सामान्य दोनों विज्ञान के रूप में समझना महत्वपूर्ण है। विशेष और सामान्य दोनों दृष्टिकोण समाजशास्त्र को एक व्यापक और समग्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने में मदद करते हैं। विशेष विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं, और समस्याओं का विश्लेषण करता है, जबकि सामान्य विज्ञान के रूप में यह समाज के सामान्य सिद्धांतों और नियमों की खोज करता है। दोनों दृष्टिकोण एक-दूसरे को पूरक करते हैं और समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित विज्ञान के रूप में स्थापित करते हैं। समाजशास्त्र का अध्ययन समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है और समाज के सुधार और विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान देता है।