1919 में ब्रिटिश शासन द्वारा रॉलेट एक्ट लागू किया गया, जिसका उद्देश्य भारत में बढ़ते राष्ट्रीय आंदोलनों को कुचलना था। यह कानून भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन करता था, क्योंकि इसके तहत किसी भी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर बिना ठोस सबूत के गिरफ्तार किया जा सकता था। इस अधिनियम ने न्यायिक प्रक्रिया के मौलिक सिद्धांतों, जैसे अपील, वकील, और दलील के अधिकारों को समाप्त कर दिया, जिससे भारतीयों में व्यापक असंतोष और क्रोध उत्पन्न हुआ।
भारतीय समाज ने इस कानून को 'काला कानून' के नाम से पुकारा और इसका व्यापक विरोध किया। विरोध प्रदर्शनों का आयोजन जगह-जगह हुआ, जिसमें सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया। इन प्रदर्शनों का सबसे क्रूर परिणाम 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में देखा गया। इस दिन ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने इस कानून के विरोध में शांतिपूर्ण सभा कर रहे निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दीं। इस नरसंहार में सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए और कई घायल हुए। जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने न केवल ब्रिटिश शासन की निर्ममता को उजागर किया, बल्कि इसने पूरे देश को आक्रोशित कर दिया।
रॉलेट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। इस घटना ने महात्मा गांधी सहित कई प्रमुख नेताओं को ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध की एक नई लहर पैदा की और भारतीय जनता को स्वतंत्रता की लड़ाई में एकजुट किया।
इस काले कानून और इसके विरोध में हुए जलियाँवाला बाग कांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इसने भारतीयों को यह एहसास दिलाया कि ब्रिटिश सरकार उनके अधिकारों का किसी भी हद तक हनन कर सकती है, जिससे स्वतंत्रता की चाह और मजबूत हुई। रॉलेट एक्ट और जलियाँवाला बाग कांड भारतीय इतिहास के उन काले अध्यायों में शामिल हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष को और अधिक तीव्र और निर्णायक बना दिया।