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निर्धनता तथा इसके विभिन्न कारकों का वर्णन

Shilu Sinha
Shilu Sinha  @shilusinha
Created At - 2024-07-19
Last Updated - 2024-08-28

Table of Contents

  • Q1. निर्धनता की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न कारकों का वर्णन करें।
  • निर्धनता का अर्थ (Meaning of Poverty)
  • निर्धनता की स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
  • निर्धनता के विभिन्न कारण
  • (I) सामाजिक कारण:
  • II. आर्थिक कारण:
  • III. राजनीतिक कारण:
  • IV. जनसंख्या संबंधी कारण:
  • V. व्यक्तिगत कारण:

Q1. निर्धनता की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न कारकों का वर्णन करें।

Or, निर्धनता के विभिन्न कारणों या कारकों की विवेचना करें।
Or, गरीबी क्या है ? भारत में इसके कारणों की विवेचना करें।
Or, दरिद्रता को परिभाषित करें। ग्रामीण समाज में दरिद्रता के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन करें।

Ans:-

निर्धनता एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है। यह एक आर्थिक समस्या है क्योंकि आर्थिक कमी ही निर्धनता को जन्म देती है। यह एक सामाजिक समस्या भी है क्योंकि इससे उत्पन्न स्थितियाँ समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

भारत में कभी भी ऐसा समय नहीं रहा जब समाज में निर्धनता बिल्कुल नहीं थी। 'सोने की चिड़िया' वाले काल में भी भारत की संपन्नता सिर्फ अभिजात वर्ग तक सीमित थी। सामान्य किसान, कारीगर, मजदूर और दास उस समय भी आर्थिक अभाव और शोषण का शिकार थे। हालांकि, वर्तमान समय में निर्धनता की समस्या का रूप पारंपरिक समाजों से थोड़ा भिन्न है। आज भारत और अन्य कई देश गंभीर निर्धनता की समस्या का सामना कर रहे हैं।

निर्धनता का अर्थ (Meaning of Poverty)

गिलिन और गिलिन के अनुसार, "निर्धनता वह स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति अपर्याप्त आय या गलत खर्च के कारण अपने जीवन-स्तर को उतना ऊँचा नहीं रख पाता जिससे उसकी शारीरिक और मानसिक कुशलता बनी रह सके और वह तथा उसके आश्रित उस समाज के स्तर के अनुसार जीवन व्यतीत कर सकें।"

गोडाड के अनुसार, "निर्धनता उन वस्तुओं का अभाव या अपर्याप्त पूर्ति है जो एक व्यक्ति तथा उसके आश्रितों के स्वास्थ्य तथा कुशलता को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।"

इन दोनों परिभाषाओं से स्पष्ट है कि निर्धनता एक सापेक्षिक (Relative) अवधारणा है। इसका मतलब यह है कि निर्धनता का मापदंड इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति को न्यूनतम जीवन-स्तर की सुविधाएँ मिल रही हैं या नहीं। न्यूनतम जीवन-स्तर विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग हो सकता है, इसलिए निर्धनता का कोई साधारण मापदंड नहीं हो सकता।

उदाहरण के लिए, भारत में 1,000 रुपये मासिक आय वाले सामान्य परिवार को निर्धन नहीं कहा जा सकता, लेकिन अमेरिका में इतनी ही आय वाले परिवार को पूर्णतया निर्धन कहा जाएगा।

निर्धनता की स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:

  1. किसी स्थान का जीवन-स्तर,
  2. व्यक्तियों की आय और उनके आश्रित सदस्यों की संख्या,
  3. वस्तुओं का बाजार भाव।

निर्धनता के विभिन्न कारण

भारत में निर्धनता की समस्या को एक या दो कारणों से नहीं समझा जा सकता। यह कई कारणों का संयुक्त परिणाम है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में निर्धनता के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। निम्नलिखित सामान्य कारणों को कुछ विद्वानों ने पहचाना है:

(I) सामाजिक कारण:

1. जाति व्यवस्था: जाति व्यवस्था ने समाज को विभिन्न भागों में बाँट दिया है, जिससे सहयोग के बजाय संघर्ष और मनमुटाव की स्थिति बन गई है। इस व्यवस्था में व्यक्ति का व्यवसाय जन्म से ही निर्धारित होता है। जैसे, एक ब्राह्मण का बेटा चमड़े के काम में कुशल हो सकता है, लेकिन जाति व्यवस्था उसे यह काम करने की अनुमति नहीं देती।

2. संयुक्त परिवार व्यवस्था: संयुक्त परिवारों ने आर्थिक प्रेरणाओं में बाधा उत्पन्न की है। इन परिवारों में सभी सदस्यों की आवश्यकताएँ पूरी की जाती हैं, चाहे वे काम करें या न करें। इससे आलसी व्यक्तियों को मेहनत करने की प्रेरणा नहीं मिलती, जबकि मेहनती सदस्यों की कार्य-कुशलता घटती जाती है।

3. अशिक्षा: भारत में अब तक केवल 36.23 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है। इनमें भी बहुत से लोग केवल साधारण पढ़-लिख सकते हैं। अधिकतर श्रमिक अशिक्षित और अकुशल होते हैं, जिससे उन्हें कम वेतन मिलता है और वे न्यूनतम जीवन-स्तर बनाए नहीं रख पाते।

4. स्वास्थ्य का निम्न स्तर: स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि के बावजूद, आम जनता का स्वास्थ्य स्तर निम्न है। फ्लू, मलेरिया, टायफाइड, टीबी और दमा जैसी बीमारियाँ व्यापक हैं। इन बीमारियों के कारण श्रमिकों को अधिक छुट्टियाँ लेनी पड़ती हैं, जिससे उनकी आय कम हो जाती है और कभी-कभी नौकरी भी छूट जाती है।

5. कर्मकांडों पर खर्च: भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी अंधविश्वास और धार्मिक कर्मकांडों को जीवन का आवश्यक अंग मानता है। ऐसे में कई संस्कारों, अनुष्ठानों और धार्मिक उत्सवों पर उनकी आय का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है।

II. आर्थिक कारण:

1. पिछड़ी हुई खेती: भारत एक कृषि प्रधान देश है। 1981 की जनगणना के अनुसार, 76 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं और 68 प्रतिशत लोग खेती से आजीविका कमाते हैं। लेकिन खेती की स्थिति बहुत पिछड़ी हुई है। किसान व्यावसायिक फसलों पर कम ध्यान देते हैं, जिससे उद्योगों का विकास भी नहीं हो पाता।

2. उद्योगों का असंतुलित विकास: भारत में उद्योगों का विकास असंतुलित है। 20वीं शताब्दी के आरंभ से ही बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए, जिससे कुटीर उद्योगों में लगे लाखों लोगों के सामने निर्धनता और बेकारी की समस्या उत्पन्न हो गई।

3. योग्य उत्पादकों की कमी: भारत में ऐसे साहसी लोग कम हैं जो नए उद्योग शुरू करने की जोखिम उठा सकें। इसके कारण देश में नए उद्योगों का विकास नहीं हो पाता।

4. धन का दोषपूर्ण संचय: भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण पूंजी संचय कम होता है। जो लोग कुछ पूंजी संचित भी कर लेते हैं, वे उसका उचित उपयोग करना नहीं जानते।

5. परिवहन और संचार के साधनों की कमी: परिवहन के साधनों की कमी के कारण उपज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में कठिनाई और अधिक खर्च होता है। इसके परिणामस्वरूप उद्योगों का विकास नहीं हो पाता।

6. श्रमिकों की कार्य-कुशलता का अभाव: भारतीय श्रमिकों की कार्यशक्ति कम होने के कारण उत्पादन कम होता है और उसकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती। कम उत्पादन के कारण प्रति व्यक्ति मजदूरी भी कम मिलती है, जिससे श्रमिक हमेशा निर्धन बने रहते हैं।

7. प्राकृतिक प्रकोप: भारत की अर्थव्यवस्था प्रकृति पर निर्भर है। प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा आदि कृषि और उद्योगों को प्रभावित करती हैं, जिससे आर्थिक विकास में बाधा आती है।

8. प्राकृतिक संसाधनों का अपर्याप्त उपयोग: भारत प्राकृतिक संसाधनों के दृष्टिकोण से धनी देश है, लेकिन उनका उचित उपयोग नहीं हो पाता। उपजाऊ भूमि पर भी पुराने कृषि यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जिससे आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ापन आता है।

9. तस्करी और भ्रष्टाचार: पिछले 25 वर्षों में भारत ने आर्थिक क्षेत्र में कई योजनाओं और कानूनों की सहायता से प्रगति की है, लेकिन तस्करी और भ्रष्टाचार में भी वृद्धि हुई है। तस्करी के कारण आर्थिक नीतियाँ सफल नहीं हो पातीं और करों की चोरी के कारण सरकार की आय कम हो जाती है।

III. राजनीतिक कारण:

1. ब्रिटिश नीति: अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय संपत्ति का शोषण हुआ। उद्योगों का विकास हुआ, लेकिन इसके सभी लाभ इंग्लैंड को मिले और भारत निर्धनता में डूब गया।

2. युद्धों का बोझ: भारत को पिछले वर्षों में चार बड़े युद्धों का सामना करना पड़ा। 1962 में चीन और 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्धों ने देश की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ डाला।

3. राजनीतिक दलबंदी और भ्रष्टाचार: विभिन्न राजनीतिक दल सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करते हैं। राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के कारण आर्थिक योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता है, जिससे निर्धनता बढ़ती है।

IV. जनसंख्या संबंधी कारण:

1. बढ़ती जनसंख्या: भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या निर्धनता का प्रमुख कारण है।

2. रोजगार की कमी: बढ़ती जनसंख्या के कारण सभी को रोजगार नहीं मिल पाता, जिससे बेरोजगारी और निर्धनता बढ़ती है।

3. खाद्यान्न की आवश्यकता: बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न की जरूरत को विदेशों से आयात करके पूरा किया जाता है, जिससे देश की संपत्ति का बड़ा हिस्सा विदेश चला जाता है।

4. खराब आवास: श्रमिकों की बढ़ती संख्या के कारण उन्हें गंदे मकानों में रहना पड़ता है, जिससे उनकी कार्यशक्ति कम हो जाती है और वे निर्धनता में जीवन बिताते हैं।

5. शासन खर्च: बढ़ती जनसंख्या के कारण सरकार को शासन कार्य में अधिक धन खर्च करना पड़ता है, जिससे उद्योगों का विकास नहीं हो पाता या अधिक कर लगाकर सरकार व्यक्ति की आय का बड़ा हिस्सा ले लेती है।

6. भूमि विभाजन: बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं, जिससे उत्पादन कम होता है और भूमि की उर्वरता घटती है। यह निर्धनता को बढ़ावा देता है।

7. सामाजिक समस्याएँ: बढ़ती जनसंख्या के कारण अशिक्षा, अज्ञानता, बेकारी, बीमारी, कुपोषण, गंदगी और रूढ़िवादिता बढ़ती हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्धनता को बढ़ाती हैं।

V. व्यक्तिगत कारण:

1. बेरोजगारी: बेरोजगारी के कारण व्यक्ति जीवन की आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त नहीं कर पाता।

2. बीमारी: बीमारी न केवल आर्थिक बोझ बढ़ाती है, बल्कि व्यक्ति को बेरोजगार भी बना देती है।

3. मानसिक रोग: मानसिक रोग व्यक्ति की कार्यकुशलता को पूरी तरह से समाप्त करके निर्धनता को बढ़ावा देते हैं।

4. दुर्घटनाएँ: दुर्घटनाओं के कारण व्यक्ति आर्थिक संकट में पड़ जाता है।

5. नशाखोरी: नशे की लत व्यक्ति को आर्थिक रूप से कमजोर बनाती है।

6. वेश्यावृत्ति: वेश्यावृत्ति निर्धनता को बढ़ाती है।

इन सभी कारणों से निर्धनता की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।

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