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मीरा बाई: कृष्ण भक्ति की महान कवयित्री और संत

Shilu Sinha
Shilu Sinha  @shilusinha
Created At - 2024-08-05
Last Updated - 2024-08-28

Table of Contents

  • मीरा बाई
    • विवाह और परिवार
    • कृष्ण भक्ति और रचनाएँ
    • संघर्ष और समाज की प्रतिक्रिया
    • अंतिम दिन और विरासत

मीरा बाई

मीरा बाई भारतीय इतिहास की एक प्रसिद्ध संत, कवयित्री और कृष्ण भक्त थीं। उनका जन्म 1498 ईस्वी में राजस्थान के मेड़ता में राठौर राजवंश के शासक रत्न सिंह राठौर के घर हुआ था। मीरा बाई का वास्तविक नाम 'मीरा' था, और वे बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं।

विवाह और परिवार

मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। भोजराज एक वीर योद्धा थे, लेकिन मीरा की भक्ति और प्रेम की गहराई से वे भी अचंभित थे। विवाह के बावजूद, मीरा बाई का मुख्य ध्यान केवल श्रीकृष्ण पर ही रहता था। उनके पति भोजराज ने भी मीरा के कृष्ण प्रेम और भक्ति को समझने की कोशिश की, लेकिन यह उनके जीवन के केंद्र में नहीं था।

कृष्ण भक्ति और रचनाएँ

मीरा बाई का जीवन कृष्ण भक्ति में पूरी तरह से समर्पित था। उन्होंने अपने भक्ति के माध्यम से कई पदों की रचना की, जो आज भी भक्ति साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके पदों में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, भक्ति और समर्पण की अनूठी भावना झलकती है। उनके प्रसिद्ध पदों में से एक है:

"मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। जा के सिर मोर मुकुट मेरो पति न सोई।।

मीरा बाई के पदों में उनके भीतर की पीड़ा, प्रेम और भक्ति का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। उन्होंने अपने पदों में अपने समाज की मान्यताओं और रीति-रिवाजों की आलोचना भी की, क्योंकि वे उन सभी से ऊपर श्रीकृष्ण की भक्ति को मानती थीं।

संघर्ष और समाज की प्रतिक्रिया

मीरा बाई का भक्ति मार्ग और उनकी आध्यात्मिक साधना उन्हें उनके ससुराल के लोगों और समाज के अन्य लोगों से अलग करती थी। उनके परिवार और समाज ने उन्हें 'कुलक्ष्णी' (कुल की लाज को नुकसान पहुंचाने वाली) के रूप में देखा और कई बार उन्हें मारने की कोशिशें भी की गईं। लेकिन मीरा बाई कभी भी अपने रास्ते से नहीं डगमगाईं। कहा जाता है कि उन्हें विष का प्याला दिया गया, लेकिन वह भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से अमृत बन गया।

अंतिम दिन और विरासत

मीरा बाई ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में द्वारका और वृंदावन में निवास किया। उनकी मृत्यु का वर्ष अज्ञात है, लेकिन वे अपने जीवन के अंत तक श्रीकृष्ण के भक्ति मार्ग पर अडिग रहीं। उनका भक्ति साहित्य आज भी विभिन्न भाषाओं में गाया और पढ़ा जाता है, और उन्हें भारतीय भक्ति आंदोलन की महान संतों में गिना जाता है।

मीरा बाई की भक्ति और उनके पदों ने न केवल उनके समय के समाज को प्रभावित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मार्गदर्शन प्रदान किया। उनकी भक्ति और प्रेम की कहानी आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।

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