लोच (Elasticity) का अर्थ है –
किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति में मूल्य, आय या अन्य कारकों में बदलाव के कारण कितना परिवर्तन होता है, इसे मापने को ही लोच कहते हैं।
लोच यह बताता है कि जब किसी वस्तु का मूल्य, आय या अन्य चीज़ों में परिवर्तन होता है तो उसके कारण मांग या आपूर्ति कितनी बदलती है।
Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)
या,
Ed = (ΔQ / ΔP) × (P / Q)
जहाँ,
उदाहरण:
अगर किसी वस्तु का मूल्य 10% बढ़ जाता है और उसकी मांग 20% घट जाती है, तो यह मांग की लोच को दर्शाता है।
लोच का अर्थशास्त्र में बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि इसके जरिए व्यापार, नीति निर्माण, कर निर्धारण, उत्पादन आदि में सही फैसले लिए जा सकते हैं।
क्रमांक | महत्व (Importance) | विवरण |
---|---|---|
1️⃣ | मूल्य निर्धारण (Pricing Decision) | व्यापारी लोच देखकर तय करते हैं कि किस वस्तु का मूल्य कितना बढ़ाया या घटाया जाए, ताकि लाभ पर असर न पड़े। |
2️⃣ | कर नीति (Tax Policy) | सरकार उन वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स लगाती है जिनकी मांग कम लोचदार होती है, ताकि कर वसूली अधिक हो सके। |
3️⃣ | उत्पादन निर्णय (Production Decision) | अगर किसी वस्तु की मांग लोचदार है, तो निर्माता उत्पादन बढ़ाते हैं, ताकि मुनाफा बढ़े। |
4️⃣ | विदेश व्यापार (Foreign Trade) | जिन वस्तुओं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग लोचदार है, उनके निर्यात से ज्यादा फायदा कमाया जा सकता है। |
5️⃣ | बाजार रणनीति (Market Strategy) | कंपनियाँ विज्ञापन, डिस्काउंट, ऑफर आदि में लोच को ध्यान में रखकर रणनीति बनाती हैं। |
6️⃣ | संसाधनों का सही उपयोग (Resource Allocation) | लोच के आधार पर यह तय किया जाता है कि उत्पादन के संसाधन किस उत्पाद में लगाए जाएँ, ताकि अधिकतम लाभ हो। |
"Elasticity" का मतलब होता है – जब कीमत, आय या किसी अन्य वस्तु की कीमत में बदलाव हो तो माँग (Demand) या आपूर्ति (Supply) में कितना बदलाव आता है।
लोच के मुख्य चार प्रकार होते हैं:
मांग की मूल्य लोच (Price Elasticity of Demand) यह दर्शाती है कि जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है, तो उसकी मांग में कितना प्रतिशत परिवर्तन आता है।
यह हमें यह बताता है कि उपभोक्ता किसी वस्तु के मूल्य में बदलाव पर कितनी संवेदनशीलता (Sensitivity) दिखाते हैं।
Price Elasticity of Demand (Ed) = (% मांग में परिवर्तन) ÷ (% कीमत में परिवर्तन)
आसान भाषा में:
Ed = (ΔQ / ΔP) × (P / Q)
Ed = (% Change in Quantity Demanded) ÷ (% Change in Price)
जहाँ:
Ed = मांग की मूल्य लोच
ΔQ = मांग में बदलाव
ΔP = मूल्य में बदलाव
P = प्रारंभिक मूल्य
Q = प्रारंभिक मात्रा
उदाहरण:
अगर चीनी की कीमत 10% बढ़ जाती है और उसकी माँग 20% घट जाती है,
तो,
Ed = (-20%) ÷ (10%)
Ed = -2
मतलब:
मूल्य में बदलाव के मुकाबले माँग में ज्यादा कमी आई, इसलिए माँग लोचदार है।
प्रकार | स्थिति | व्याख्या |
---|---|---|
अत्यधिक लोचदार (Highly Elastic) | Ed > 1 | मूल्य में थोड़े बदलाव पर मांग में ज्यादा बदलाव। |
एकांक लोच (Unit Elastic) | Ed = 1 | मूल्य और मांग में बराबर प्रतिशत बदलाव। |
अल्प लोचदार (Inelastic) | Ed < 1 | मूल्य में बदलाव पर मांग में थोड़ा ही बदलाव। |
पूर्ण लोचदार (Perfectly Elastic) | Ed = ∞ | मामूली मूल्य परिवर्तन पर मांग असीमित। |
पूर्ण अल्प लोचदार (Perfectly Inelastic) | Ed = 0 | मूल्य बदलने पर भी मांग में कोई बदलाव नहीं। |
मांग की आय लोच (Income Elasticity of Demand) यह बताती है कि जब उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होता है, तो वस्तु की मांग में कितना प्रतिशत परिवर्तन होता है।
Income Elasticity of Demand (Ey) = (% मांग में परिवर्तन) ÷ (% आय में परिवर्तन)
आसान भाषा में:
Ey = (ΔQ / ΔY) × (Y / Q)
Ey = (% Change in Quantity Demanded) ÷ (% Change in Income)
जहाँ,
उदाहरण:
अगर राम की आय 25% बढ़ गई और उसने फल खरीदना 50% बढ़ा दिया,
तो,
Ey = (50%) ÷ (25%)
Ey = 2
मतलब:
आय बढ़ने पर माँग दुगनी तेजी से बढ़ी। यह लक्जरी वस्तु हो सकती है।
प्रकार | स्थिति | अर्थ |
---|---|---|
Positive Income Elasticity | Ey > 0 | आय बढ़ने पर मांग बढ़ती है (Normal Goods)। |
Negative Income Elasticity | Ey < 0 | आय बढ़ने पर मांग घटती है (Inferior Goods)। |
Zero Income Elasticity | Ey = 0 | आय में बदलाव का मांग पर कोई असर नहीं। |
🔹 बाज़ार अनुसंधान में सहायक।
🔹 किस वस्तु की मांग आय पर निर्भर है, यह जानने में उपयोगी।
🔹 व्यापारिक नीति और उत्पादों की श्रेणी तय करने में सहायक।
🔹 आर्थिक विकास और उपभोक्ता व्यवहार का विश्लेषण करने के लिए आवश्यक।
मांग की पारस्परिक लोच (Cross Elasticity of Demand) बताती है कि जब किसी एक वस्तु (X) के मूल्य में परिवर्तन होता है, तो दूसरी वस्तु (Y) की मांग में कितना प्रतिशत परिवर्तन होता है।
Cross Elasticity of Demand (Ec) = (% वस्तु X की मांग में परिवर्तन) ÷ (% वस्तु Y की कीमत में परिवर्तन)
आसान भाषा में:
Ec = (ΔQy / ΔPx) × (Px / Qy)
Ec = (% Change in Quantity Demanded of X) ÷ (% Change in Price of Y)
जहाँ,
उदाहरण:
अगर चाय की कीमत 10% बढ़ गई और कॉफी की माँग 5% बढ़ गई,
तो,
Ec = (5%) ÷ (10%)
Ec = 0.5
मतलब:
चाय और कॉफी एक-दूसरे के विकल्प (Substitute Goods) हैं।
आपूर्ति की मूल्य लोच (Price Elasticity of Supply) यह बताती है कि किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने पर उसकी आपूर्ति में कितना प्रतिशत परिवर्तन आता है।
Price Elasticity of Supply (Es) = (% आपूर्ति में परिवर्तन) ÷ (% कीमत में परिवर्तन)
आसान भाषा में:
Es = (ΔQs / ΔP) × (P / Qs)
Es = (% Change in Quantity Supplied) ÷ (% Change in Price)
जहाँ,
उदाहरण:
अगर गेहूं की कीमत 15% बढ़ जाती है और उसकी आपूर्ति 30% बढ़ जाती है,
तो,
Es = (30%) ÷ (15%)
Es = 2
मतलब:
कीमत बढ़ने पर सप्लाई तेजी से बढ़ी, यानी आपूर्ति लोचदार है।
प्रकार | अर्थ | विशेषता |
---|---|---|
अत्यधिक लोचदार (Highly Elastic) | Es > 1 | आपूर्ति में अधिक वृद्धि होती है। |
एकांक लोच (Unitary Elastic) | Es = 1 | मूल्य और आपूर्ति समान प्रतिशत में बदलते हैं। |
अत्यल्प लोचदार (Less Elastic) | Es < 1 | आपूर्ति में कम परिवर्तन होता है। |
अत्यधिक अलोचदार (Perfectly Inelastic) | Es = 0 | मूल्य बदलने पर भी आपूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं। |
अत्यधिक लोचदार (Perfectly Elastic) | Es = ∞ | मामूली मूल्य बदलाव पर आपूर्ति असीमित। |
Elasticity (लोच) की गणना करने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं। ये विधियाँ हमें यह समझने में मदद करती हैं कि किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति किस हद तक मूल्य, आय या अन्य कारकों के परिवर्तन पर प्रतिक्रिया करती है।
इस विधि में, मांग या आपूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन को मूल्य में प्रतिशत परिवर्तन से विभाजित किया जाता है।
Ed = (% ΔQ) / (% ΔP)
जहाँ,
उदाहरण:
मान लीजिए,
तो,
Ed = (-20) / (10)
Ed = -2
यहाँ Ed = -2 का अर्थ है कि मांग अत्यधिक लोचशील (Highly Elastic) है।
विशेषता:
इस विधि में लोच का निर्धारण कुल व्यय (Total Expenditure = Price × Quantity) के आधार पर किया जाता है।
Total Expenditure (TE) = Price (P) × Quantity Demanded (Q)
यानि,
कुल व्यय (TE) = मूल्य (P) × माँग की मात्रा (Q)
1️⃣ यदि मूल्य में परिवर्तन के बावजूद कुल व्यय स्थिर (Constant) रहता है
➡️ Elasticity (E) = 1 (इकाई लोच)
2️⃣ यदि मूल्य घटने पर कुल व्यय बढ़ता है या मूल्य बढ़ने पर कुल व्यय घटता है
➡️ Elasticity (E) > 1 (अधिक लोचशील)
3️⃣ यदि मूल्य घटने पर कुल व्यय घटता है या मूल्य बढ़ने पर कुल व्यय बढ़ता है
➡️ Elasticity (E) < 1 (अल्प लोचशील)
उदाहरण (Example):
मूल्य (₹) | मांग (यूनिट) | कुल व्यय (₹) |
---|---|---|
10 | 100 | 1000 |
8 | 120 | 960 |
यहाँ पर:
👉 इस स्थिति में,
Elasticity (E) < 1
अर्थात् अल्प लोचशील मांग (Inelastic Demand) होगी।
इस विधि का उपयोग मांग वक्र के किसी बिंदु पर लोच मापने के लिए किया जाता है।
Ed = (ΔQ / ΔP) × (P / Q)
या,
मूल्य लोच (Ed) = (मांग में परिवर्तन / मूल्य में परिवर्तन) × (मूल्य / मात्रा)
जहाँ:
P = मूल मूल्य
Q = मूल मांग
ΔQ = मांग में परिवर्तन
ΔP = मूल्य में परिवर्तन
विशेषता:
जब दो बिंदुओं के बीच लोच मापी जाती है, तब चाप विधि का प्रयोग किया जाता है। यह मांग वक्र के किसी भाग (Arc) पर औसत लोच दर्शाती है।
Ed = (ΔQ / ΔP) × [(P1 + P2) / (Q1 + Q2)]
या,
Ed = (मांग में परिवर्तन / मूल्य में परिवर्तन) × (दोनों मूल्यों का योग / दोनों मात्राओं का योग)
जहाँ,
पूर्णतः लोचशील मांग का अर्थ है कि मूल्य में बहुत ही छोटे से परिवर्तन पर मांग की मात्रा असीम (Infinite) रूप से बदल जाती है। इस स्थिति में यदि मूल्य थोड़ा सा भी बढ़ेगा तो मांग शून्य (0) हो जाएगी, और यदि मूल्य थोड़ा सा घटेगा तो मांग असीम हो सकती है।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) असीम (∞) होती है।
🔹 मांग की मात्रा: मूल्य में मामूली बदलाव पर असीम रूप से बदलती है।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve): मांग वक्र क्षैतिज (Horizontal Line) होता है।
🔹 लोच का मान: Es = ∞ (Infinite Elasticity)।
🔹 उदाहरण: यदि किसी वस्तु का मूल्य ₹50 है और उस पर लोग 100 यूनिट खरीद रहे हैं। जैसे ही मूल्य ₹51 हुआ, मांग पूरी तरह से खत्म हो गई।
📝 समझिए:
किसी बाजार में कृषि उत्पाद (जैसे गेंहू) की कीमत सरकार द्वारा तय कर दी गई ₹50 प्रति किलो। इस कीमत पर लोग अनगिनत मात्रा में खरीदने को तैयार हैं, पर ₹51 होने पर कोई भी नहीं खरीदेगा।
पूर्णतः अलोचशील मांग का अर्थ है कि किसी वस्तु के मूल्य में कितना भी परिवर्तन हो, मांग की मात्रा में कोई भी बदलाव नहीं होता। ग्राहक उस वस्तु की निश्चित मात्रा ही खरीदते हैं, चाहे कीमत बढ़े या घटे।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) शून्य (0) होती है।
🔹 मांग की मात्रा: मूल्य में किसी भी बदलाव पर स्थिर रहती है।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve): मांग वक्र पूरी तरह से ऊर्ध्वाधर (Vertical Line) होता है।
🔹 लोच का मान: Es = 0 (Zero Elasticity)।
🔹 उदाहरण: जीवन रक्षक दवाइयाँ, जैसे इंसुलिन, जिनकी मांग मूल्य के बढ़ने पर भी घटती नहीं है।
📝 समझिए:
अगर किसी मरीज को दिन में 2 यूनिट दवा लेनी है, तो चाहे दवा की कीमत ₹100 हो या ₹500, उसे 2 यूनिट लेनी ही पड़ेगी।
जब किसी वस्तु के मूल्य में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के कारण मांग में भी समान प्रतिशत का परिवर्तन होता है, तो इसे एकात्मक लोच (Unitary Elastic Demand) कहते हैं।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) का मान 1 होता है।
🔹 लोच का मान (Es): 1
🔹 मूल्य और मांग का संबंध:
मूल्य में जितना प्रतिशत परिवर्तन होगा, मांग में भी उतना ही प्रतिशत परिवर्तन होगा।
उदाहरण के लिए, यदि मूल्य में 10% की वृद्धि होती है, तो मांग में 10% की कमी आएगी।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve): यह हाइपरबोला (Hyperbola) जैसा होता है या ऐसी स्थिति को दर्शाता है जिसमें कुल व्यय (Total Expenditure) समान रहता है।
Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)
📝 समझिए:
अगर किसी वस्तु का मूल्य ₹50 से ₹40 घटता है (20% की कमी), और मांग 20 यूनिट से 24 यूनिट हो जाती है (20% की वृद्धि), तो यह एकात्मक लोच की स्थिति है।
जब किसी वस्तु के मूल्य में थोड़े से प्रतिशत परिवर्तन के कारण मांग में अधिक प्रतिशत का परिवर्तन होता है, तो इसे अपेक्षाकृत लोचशील मांग (Relatively Elastic Demand) कहते हैं।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) का मान 1 से अधिक (>1) होता है।
🔹 लोच का मान (Ed): >1
🔹 मूल्य और मांग का संबंध:
मूल्य में कम प्रतिशत बदलाव पर भी मांग में अधिक प्रतिशत बदलाव होता है।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve):
मांग वक्र अपेक्षाकृत सपाट (Flat) होता है, यानी यह अधिक क्षैतिज झुकाव दिखाता है।
🔹 उदाहरण:
अगर किसी वस्तु का मूल्य 5% घटता है और मांग 20% बढ़ जाती है, तो यह अपेक्षाकृत लोचशील मांग है।
Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)
📝 समझिए:
कपड़ों की मांग में अक्सर अपेक्षाकृत लोचशीलता देखी जाती है। जैसे अगर किसी शर्ट की कीमत ₹1000 से ₹900 (10% की कमी) हो जाए और मांग 15% बढ़ जाए।
जब किसी वस्तु के मूल्य में अधिक प्रतिशत परिवर्तन के बावजूद मांग में बहुत कम प्रतिशत परिवर्तन होता है, तो इसे अपेक्षाकृत अलोचशील मांग (Relatively Inelastic Demand) कहते हैं।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) का मान 1 से कम (<1) होता है।
✔️ लोच का मान (Ed): < 1
✔️ मूल्य और मांग का संबंध:
मूल्य में अधिक प्रतिशत परिवर्तन पर भी मांग में थोड़ा ही प्रतिशत परिवर्तन होता है।
✔️ मांग वक्र (Demand Curve):
मांग वक्र अपेक्षाकृत खड़ा (Steeper) होता है।
✔️ उदाहरण:
अगर पेट्रोल की कीमत में 20% बढ़ोतरी हो जाए, लेकिन मांग केवल 5% घटे, तो यह अपेक्षाकृत अलोचशील मांग है।
Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)
समझिए:
Elasticity of Demand (मांग की लोच) यह तय करती है कि किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने पर उसकी मांग कितनी बदलेगी। इस पर कई कारक प्रभाव डालते हैं, जिन्हें मांग की लोच के निर्धारक कारक कहा जाता है।
प्रमुख निर्धारक कारक (Key Determinants of Elasticity of Demand):
विकल्पों की उपलब्धता का अर्थ है – किसी वस्तु के बदले प्रयोग में लाने योग्य अन्य समान वस्तुएं बाजार में मौजूद हैं या नहीं।
जितनी अधिक वस्तु के विकल्प (Substitutes) होंगे, उस वस्तु की मांग की लोच (Elasticity of Demand) उतनी ही अधिक होगी।
विकल्प अधिक ➡️ मांग अधिक लोचशील (Elastic Demand)
विकल्प कम या नहीं ➡️ मांग अलोचशील (Inelastic Demand)
वस्तु का नाम | विकल्प की स्थिति | लोच की स्थिति |
---|---|---|
चाय (Tea) | कॉफी, ग्रीन टी आदि विकल्प हैं | अधिक लोचशील (Elastic) |
जीवनरक्षक दवा | कोई विकल्प नहीं | अलोचशील (Inelastic) |
शीतल पेय (Cold Drink) | कई विकल्प (कोला, जूस आदि) | अधिक लोचशील (Elastic) |
यह ग्राफ दिखाता है कि विकल्पों की अधिक उपलब्धता होने पर मूल्य बढ़ते ही मांग तेजी से घटती है, इसलिए रेखा अधिक ढलान वाली होती है।
वस्तु का स्वभाव (Nature of Commodity) का मतलब है कि वस्तु किस प्रकार की है –
क्या वह आवश्यक (Necessary), विलासी (Luxury), या आरामदायक (Comfort) वस्तु है?
वस्तु का यही स्वभाव उसकी मांग की लोच (Elasticity of Demand) को प्रभावित करता है।
🔹 आवश्यक वस्तु ➡️ कम लोच (Inelastic Demand)
🔹 विलासी वस्तु ➡️ अधिक लोच (Elastic Demand)
🔹 आरामदायक वस्तु ➡️ मध्यम लोच (Moderate Elasticity)
वस्तु का नाम | स्वभाव | लोच की स्थिति |
---|---|---|
गेंहू (Wheat) | आवश्यक वस्तु | अलोचशील (Inelastic) |
स्मार्टफोन (Smartphone) | विलासी वस्तु | अधिक लोचशील (Elastic) |
हीटर (Heater) | आरामदायक वस्तु | मध्यम लोच (Moderate) |
👉 आवश्यक वस्तु: रेखा लगभग सीधी होगी (कम लोच)।
👉 विलासी वस्तु: रेखा अधिक ढलान वाली होगी (अधिक लोच)।
समय अवधि का अर्थ है किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति पर मूल्य परिवर्तन का प्रभाव कितने समय तक और किस प्रकार पड़ता है।
समय के अनुसार लोच (Elasticity) बदलती है, यानी किसी वस्तु की मांग और आपूर्ति की प्रतिक्रिया समय पर निर्भर करती है।
1️⃣ अल्पकाल (Short Period):
2️⃣ दीर्घकाल (Long Period):
समय अवधि | लोच की स्थिति | कारण |
---|---|---|
अल्पकाल | अलोचशील | विकल्प नहीं, तात्कालिक जरूरतें |
दीर्घकाल | लोचशील | विकल्प उपलब्ध, व्यवहार में बदलाव |
वस्तु | अल्पकाल में लोच | दीर्घकाल में लोच |
---|---|---|
पेट्रोल | कम | अधिक |
बिजली | कम | अधिक |
गेंहू | बहुत कम | कम |
👉 अल्पकाल में मांग वक्र सीधा होता है (कम लोच)।
👉 दीर्घकाल में मांग वक्र अधिक झुका होता है (अधिक लोच)।
आय का अनुपात का अर्थ है किसी वस्तु की कीमत हमारे कुल आय का कितना भाग लेती है। यदि किसी वस्तु की कीमत हमारी आय का बड़ा हिस्सा लेती है, तो उसकी मांग की लोच अधिक होती है, और यदि कीमत का हिस्सा कम है, तो लोच कम होती है।
🔹 ➡️ महंगी वस्तुएं (High Proportion of Income):
🔹 ➡️ सस्ती वस्तुएं (Low Proportion of Income):
वस्तु का प्रकार | आय में हिस्सेदारी | मांग की लोच (Elasticity) |
---|---|---|
महंगी वस्तुएं | अधिक | अधिक लोचशील (Elastic) |
सस्ती आवश्यक वस्तुएं | कम | कम लोचशील (Inelastic) |
वस्तु | आय का अनुपात | लोच की स्थिति |
---|---|---|
कार | अधिक | अधिक लोचशील |
घर का किराया | अधिक | अधिक लोचशील |
नमक | बहुत कम | अत्यंत अलोचशील |
टूथपेस्ट | कम | कम लोचशील |
👉 महंगी वस्तुओं के लिए मांग वक्र अधिक झुका होता है (Elastic)।
👉 सस्ती वस्तुओं के लिए मांग वक्र सीधा होता है (Inelastic)।
लोच (Elasticity) का अर्थ है कि किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति मूल्य, आय, या अन्य कारकों के परिवर्तन पर कितनी प्रतिक्रिया देती है।
लोच का महत्व आर्थिक नीतियों, व्यवसायिक निर्णयों और बाजार विश्लेषण में बहुत अहम भूमिका निभाता है।
मांग की लोच (Elasticity of Demand) का उपयोग व्यवसाय में मूल्य (Price) तय करने के लिए किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि यदि किसी वस्तु का मूल्य बढ़ाया या घटाया जाए तो उसकी मांग पर क्या असर होगा।
1️⃣ लोचशील मांग (Elastic Demand):
यदि किसी वस्तु की मांग अधिक लोचशील है (Elastic Demand), तो उसका मूल्य बढ़ाने पर मांग में भारी गिरावट आ सकती है।
🔹 ऐसे में व्यापारी या उत्पादक मूल्य कम रखकर अधिक बिक्री करने का प्रयास करते हैं।
2️⃣ अलोचशील मांग (Inelastic Demand):
यदि किसी वस्तु की मांग अलोचशील है (Inelastic Demand), तो मूल्य बढ़ाने पर भी मांग में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।
🔹 इस स्थिति में व्यापारी मूल्य बढ़ाकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
स्थिति | लोच | मूल्य वृद्धि का प्रभाव | व्यापारी का निर्णय |
---|---|---|---|
पेट्रोल | अलोचशील | मांग में कमी नहीं के बराबर | मूल्य बढ़ाना फायदेमंद |
मोबाइल फोन | लोचशील | मांग में बड़ी गिरावट | मूल्य कम रखना फायदेमंद |
✅ मूल्य निर्धारण में लोच के अनुसार निर्णय लेकर लाभ बढ़ाया जा सकता है।
✅ लोचशील वस्तुओं में कम मूल्य पर अधिक बिक्री की रणनीति अपनाई जाती है।
✅ अलोचशील वस्तुओं में मूल्य बढ़ाकर अधिक मुनाफा कमाया जाता है।
सरकार जब वस्तुओं और सेवाओं पर कर (Tax) लगाती है, तो उसे यह समझना जरूरी होता है कि कर लगाने के बाद लोगों की मांग पर क्या असर पड़ेगा।
मांग की लोच (Elasticity of Demand) की मदद से सरकार यह तय करती है कि किन वस्तुओं पर कर लगाना ज्यादा फायदेमंद रहेगा।
1️⃣ अलोचशील वस्तुएँ (Inelastic Goods):
जिन वस्तुओं की मांग अलोचशील होती है, जैसे – पेट्रोल, शराब, सिगरेट आदि, उन पर कर लगाने के बाद भी मांग ज्यादा कम नहीं होती।
🔹 इस वजह से सरकार इन वस्तुओं पर ज्यादा कर लगाकर अधिक राजस्व (Revenue) कमा सकती है।
2️⃣ लोचशील वस्तुएँ (Elastic Goods):
जिन वस्तुओं की मांग लोचशील होती है, जैसे – टीवी, फ्रिज, महंगे कपड़े आदि, उन पर कर लगाने से मांग में भारी गिरावट आ सकती है।
🔹 इससे व्यापार और उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है, इसलिए ऐसे उत्पादों पर कर कम लगाया जाता है।
वस्तु का नाम | लोच | कर लगाने का प्रभाव | नीति का निर्णय |
---|---|---|---|
पेट्रोल | अलोचशील | मांग में हल्की कमी | अधिक कर लगाना सही |
गहने | लोचशील | मांग में तेज गिरावट | कम कर लगाना उचित |
✅ सरकार कर नीति बनाते समय वस्तुओं की मांग की लोच का अध्ययन करती है।
✅ अलोचशील वस्तुओं पर ज्यादा कर लगाकर ज्यादा आय अर्जित की जाती है।
✅ लोचशील वस्तुओं पर कर बढ़ाने से अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade) में एक देश जब दूसरे देशों के साथ माल और सेवाओं का लेन-देन करता है, तो वहाँ Elasticity (लोच) बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
विशेषकर, मांग की लोच (Elasticity of Demand) और आपूर्ति की लोच (Elasticity of Supply) के आधार पर यह तय होता है कि व्यापारिक नीतियाँ, मूल्य निर्धारण और निर्यात-आयात से देश को लाभ होगा या नुकसान।
1️⃣ मूल्य परिवर्तन का असर:
अगर किसी वस्तु की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग लोचशील (Elastic) है, तो कीमत बढ़ाने पर निर्यात घट सकता है।
लेकिन अगर मांग अलोचशील (Inelastic) है, तो कीमत बढ़ने पर भी निर्यात में कमी नहीं आएगी, और देश अधिक मुनाफा कमा सकता है।
2️⃣ विदेशी मुद्रा अर्जन:
अलोचशील वस्तुओं (जैसे – कच्चा तेल, दवाइयाँ आदि) का निर्यात करके देश ज्यादा विदेशी मुद्रा कमा सकता है, क्योंकि इनकी मांग स्थिर रहती है।
3️⃣ व्यापार नीति निर्माण:
Elasticity का अध्ययन करके सरकार यह तय करती है कि किन वस्तुओं का निर्यात बढ़ाना है और किन वस्तुओं के आयात को सीमित करना है।
वस्तु का नाम | लोच | मूल्य वृद्धि का प्रभाव | व्यापारिक रणनीति |
---|---|---|---|
पेट्रोल | अलोचशील | मांग में हल्की गिरावट | ज्यादा निर्यात करें |
कपड़े | लोचशील | मांग में तेजी से गिरावट | मूल्य नियंत्रण रखें |
✅ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार लाभ के लिए लोच का विश्लेषण जरूरी है।
✅ अलोचशील वस्तुओं पर फोकस करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
✅ लोच के अनुसार निर्यात और आयात की रणनीतियाँ बनती हैं।
कारक मूल्य निर्धारण का मतलब है – उत्पादन में लगे संसाधनों जैसे श्रम (Labour), भूमि (Land), पूंजी (Capital) और उद्यमिता (Entrepreneurship) के बदले मिलने वाले भुगतान (जैसे मजदूरी, किराया, ब्याज, लाभ) का निर्धारण।
Elasticity (लोच) की मदद से यह समझा जाता है कि जब किसी उत्पादन कारक की मांग या आपूर्ति में बदलाव होता है, तो उसके दाम पर क्या असर पड़ेगा।
1️⃣ अवधारणाएँ:
2️⃣ मांग के आधार पर:
अगर किसी विशेष स्किल वाले कर्मचारी की मांग अधिक है और आपूर्ति कम है, तो उनकी मजदूरी बढ़ेगी।
3️⃣ दीर्घकालीन व अल्पकालीन प्रभाव:
उत्पादन कारक | लोच | मांग बढ़ने पर असर | मूल्य निर्धारण रणनीति |
---|---|---|---|
कुशल श्रमिक | अलोचशील | मजदूरी में तेज वृद्धि | अधिक भुगतान दें |
साधारण श्रमिक | लोचशील | मजदूरी में हल्की वृद्धि | सामान्य भुगतान रखें |
✅ Elasticity के आधार पर कारकों का मूल्य तय करना आसान होता है।
✅ विशेष कौशल वाले संसाधनों की कीमतें अधिक अस्थिर हो सकती हैं।
✅ दीर्घकाल में आपूर्ति और मांग के अनुसार कारक मूल्य बदलते रहते हैं।