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लोच (Elasticity) क्या है? अर्थ, प्रकार, माप विधियाँ और महत्व

Shilu Sinha
Shilu Sinha  @shilusinha
Created At - 2025-01-28
Last Updated - 2025-03-06

Table of Contents

  • लोच (Elasticity)
    • Elasticity (लोच) का परिचय (Introduction to Elasticity)
    • सरल भाषा में:
    • सूत्र (Formula):
  • लोच के महत्व (Key Importance of Elasticity):
  • लोच के प्रकार (Types of Elasticity)
    • 1️⃣ मांग की मूल्य लोच (Price Elasticity of Demand)
      • सूत्र (Formula):
      • मांग की मूल्य लोच के प्रकार (Types of Price Elasticity of Demand):
      • मांग की मूल्य लोच का महत्व (Importance):
    • 2️⃣ मांग की आय लोच (Income Elasticity of Demand)
      • सूत्र (Formula):
      • मांग की आय लोच के प्रकार (Types of Income Elasticity of Demand):
      • मांग की आय लोच का महत्व (Importance):
    • 3️⃣ मांग की पारस्परिक लोच (Cross Elasticity of Demand)
      • सूत्र (Formula):
      • मांग की पारस्परिक लोच के प्रकार (Types of Cross Elasticity):
    • 4️⃣ आपूर्ति की मूल्य लोच (Price Elasticity of Supply)
      • सूत्र (Formula):
      • आपूर्ति की मूल्य लोच के प्रकार (Types of Price Elasticity of Supply):
  • लोच की माप विधियाँ (Measurement of Elasticity)
    • 1️⃣ प्रतिशत विधि(Percentage Method):
      • सूत्र (Formula):
    • 2️⃣ कुल व्यय विधि(Total Expenditure Method)
      • सूत्र (Formula):
      • मूल सिद्धांत (Main Principles):
    • 3️⃣ बिंदु विधि(Point Method)
      • सूत्र (Formula):
    • 4️⃣ चाप विधि(Arc Method)
      • सूत्र (Formula):
    • इन विधियों का महत्व:
  • लोच की विभिन्न स्थितियाँ(Degrees of Elasticity)
    • 1️⃣ पूर्णतः लोचशील (Perfectly Elastic)
      • मुख्य विशेषताएं (Key Features):
      • आरेख (Graph):
      • उदाहरण:
    • 2️⃣ पूर्णतः अलोचशील (Perfectly Inelastic)
      • मुख्य विशेषताएं (Key Features):
      • आरेख (Graph):
      • उदाहरण:
    • 3️⃣ एकात्मक लोच (Unitary Elastic)
      • मुख्य विशेषताएं (Key Features):
      • सूत्र (Formula):
      • आरेख (Graph):
      • उदाहरण:
    • 4️⃣ अपेक्षाकृत लोचशील (Relatively Elastic)
      • मुख्य विशेषताएं (Key Features):
      • सूत्र (Formula):
      • आरेख (Graph):
      • उदाहरण:
    • 5️⃣ अपेक्षाकृत अलोचशील (Relatively Inelastic)
      • मुख्य विशेषताएं (Key Features):
      • सूत्र (Formula):
      • आरेख (Graph):
      • उदाहरण:
  • लोच के निर्धारक कारक(Determinants of Elasticity)
    • 1️⃣ विकल्पों की उपलब्धता (Availability of Substitutes)
      • प्रभाव (Impact):
      • विशेषताएं:
      • उदाहरण:
      • ग्राफ द्वारा समझिए:
    • 2️⃣ वस्तु का स्वभाव (Nature of Commodity)
      • प्रभाव (Impact):
      • विशेषताएं:
      • उदाहरण:
      • ग्राफ द्वारा समझिए:
    • 3️⃣ समय अवधि(Time Period)
      • प्रभाव (Impact of Time on Elasticity):
      • विशेषताएं:
      • उदाहरण:
      • ग्राफ द्वारा समझिए:
    • 4️⃣ आय का अनुपात(Proportion of Income)
      • प्रभाव (Effect on Elasticity):
      • विशेषताएं:
      • उदाहरण:
      • ग्राफिक समझ:
  • लोच का महत्व(Importance of Elasticity)
    • 1️⃣ मूल्य निर्धारण में सहायक (Pricing Decisions)
    • कैसे सहायक है मूल्य निर्धारण में?
      • उदाहरण से समझें:
      • मुख्य बिंदु:
    • 2️⃣ कर नीति में उपयोगी (Taxation Policy)
      • कर नीति में लोच का महत्व:
      • उदाहरण:
      • मुख्य बिंदु:
    • 3️⃣ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सहायता (International Trade)
      • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लोच का महत्व:
      • उदाहरण:
      • मुख्य बिंदु:
    • 4️⃣ कारक मूल्य निर्धारण में सहायक (Factor Pricing)
      • Factor Pricing में Elasticity का महत्व:
      • उदाहरण:
      • मुख्य बिंदु:

लोच (Elasticity)

Elasticity (लोच) का परिचय (Introduction to Elasticity)

लोच (Elasticity) का अर्थ है –
किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति में मूल्य, आय या अन्य कारकों में बदलाव के कारण कितना परिवर्तन होता है, इसे मापने को ही लोच कहते हैं।

सरल भाषा में:

लोच यह बताता है कि जब किसी वस्तु का मूल्य, आय या अन्य चीज़ों में परिवर्तन होता है तो उसके कारण मांग या आपूर्ति कितनी बदलती है।

सूत्र (Formula):

Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)

या,

Ed = (ΔQ / ΔP) × (P / Q)

जहाँ,

  • Ed = मांग की मूल्य लोच (Elasticity of Demand)
  • ΔQ = मांग में परिवर्तन (Change in Quantity Demanded)
  • ΔP = मूल्य में परिवर्तन (Change in Price)
  • P = प्रारंभिक मूल्य (Initial Price)
  • Q = प्रारंभिक मांग (Initial Quantity)

उदाहरण:
अगर किसी वस्तु का मूल्य 10% बढ़ जाता है और उसकी मांग 20% घट जाती है, तो यह मांग की लोच को दर्शाता है।

लोच के महत्व (Key Importance of Elasticity):

लोच का अर्थशास्त्र में बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि इसके जरिए व्यापार, नीति निर्माण, कर निर्धारण, उत्पादन आदि में सही फैसले लिए जा सकते हैं।

क्रमांकमहत्व (Importance)विवरण
1️⃣मूल्य निर्धारण (Pricing Decision)व्यापारी लोच देखकर तय करते हैं कि किस वस्तु का मूल्य कितना बढ़ाया या घटाया जाए, ताकि लाभ पर असर न पड़े।
2️⃣कर नीति (Tax Policy)सरकार उन वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स लगाती है जिनकी मांग कम लोचदार होती है, ताकि कर वसूली अधिक हो सके।
3️⃣उत्पादन निर्णय (Production Decision)अगर किसी वस्तु की मांग लोचदार है, तो निर्माता उत्पादन बढ़ाते हैं, ताकि मुनाफा बढ़े।
4️⃣विदेश व्यापार (Foreign Trade)जिन वस्तुओं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग लोचदार है, उनके निर्यात से ज्यादा फायदा कमाया जा सकता है।
5️⃣बाजार रणनीति (Market Strategy)कंपनियाँ विज्ञापन, डिस्काउंट, ऑफर आदि में लोच को ध्यान में रखकर रणनीति बनाती हैं।
6️⃣संसाधनों का सही उपयोग (Resource Allocation)लोच के आधार पर यह तय किया जाता है कि उत्पादन के संसाधन किस उत्पाद में लगाए जाएँ, ताकि अधिकतम लाभ हो।

लोच के प्रकार (Types of Elasticity)

"Elasticity" का मतलब होता है – जब कीमत, आय या किसी अन्य वस्तु की कीमत में बदलाव हो तो माँग (Demand) या आपूर्ति (Supply) में कितना बदलाव आता है।

लोच के मुख्य चार प्रकार होते हैं:

1️⃣ मांग की मूल्य लोच (Price Elasticity of Demand)

मांग की मूल्य लोच (Price Elasticity of Demand) यह दर्शाती है कि जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है, तो उसकी मांग में कितना प्रतिशत परिवर्तन आता है।
यह हमें यह बताता है कि उपभोक्ता किसी वस्तु के मूल्य में बदलाव पर कितनी संवेदनशीलता (Sensitivity) दिखाते हैं।

सूत्र (Formula):

Price Elasticity of Demand (Ed) = (% मांग में परिवर्तन) ÷ (% कीमत में परिवर्तन)

आसान भाषा में: 

Ed = (ΔQ / ΔP) × (P / Q)
Ed = (% Change in Quantity Demanded) ÷ (% Change in Price)

जहाँ:
 Ed = मांग की मूल्य लोच
 ΔQ = मांग में बदलाव
 ΔP = मूल्य में बदलाव
 P = प्रारंभिक मूल्य
 Q = प्रारंभिक मात्रा

उदाहरण:

अगर चीनी की कीमत 10% बढ़ जाती है और उसकी माँग 20% घट जाती है,
तो,

Ed = (-20%) ÷ (10%)
Ed = -2

मतलब:
मूल्य में बदलाव के मुकाबले माँग में ज्यादा कमी आई, इसलिए माँग लोचदार है।

मांग की मूल्य लोच के प्रकार (Types of Price Elasticity of Demand):

प्रकारस्थितिव्याख्या
अत्यधिक लोचदार (Highly Elastic)Ed > 1मूल्य में थोड़े बदलाव पर मांग में ज्यादा बदलाव।
एकांक लोच (Unit Elastic)Ed = 1मूल्य और मांग में बराबर प्रतिशत बदलाव।
अल्प लोचदार (Inelastic)Ed < 1मूल्य में बदलाव पर मांग में थोड़ा ही बदलाव।
पूर्ण लोचदार (Perfectly Elastic)Ed = ∞मामूली मूल्य परिवर्तन पर मांग असीमित।
पूर्ण अल्प लोचदार (Perfectly Inelastic)Ed = 0मूल्य बदलने पर भी मांग में कोई बदलाव नहीं।

मांग की मूल्य लोच का महत्व (Importance):

  • मूल्य निर्धारण में सहायक।
  • राजस्व (Revenue) को बढ़ाने की रणनीति बनाने में मददगार।
  • कर नीति तय करने में उपयोगी।
  • उपभोक्ता व्यवहार का विश्लेषण करने में मदद करता है।
  • व्यवसायिक योजना और उत्पादन नीति के लिए आवश्यक।

2️⃣ मांग की आय लोच (Income Elasticity of Demand)

मांग की आय लोच (Income Elasticity of Demand) यह बताती है कि जब उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होता है, तो वस्तु की मांग में कितना प्रतिशत परिवर्तन होता है।

सूत्र (Formula):

Income Elasticity of Demand (Ey) = (% मांग में परिवर्तन) ÷ (% आय में परिवर्तन)

आसान भाषा में:

Ey = (ΔQ / ΔY) × (Y / Q)
Ey = (% Change in Quantity Demanded) ÷ (% Change in Income)

जहाँ,

  • Ey = मांग की आय लोच (Income Elasticity of Demand)
  • ΔQ = मांग में परिवर्तन (Change in Quantity Demanded)
  • ΔY = आय में परिवर्तन (Change in Income)
  • Y = प्रारंभिक आय (Original Income)
  • Q = प्रारंभिक मांग (Original Quantity Demanded)

उदाहरण:

अगर राम की आय 25% बढ़ गई और उसने फल खरीदना 50% बढ़ा दिया,
तो,

Ey = (50%) ÷ (25%)
Ey = 2

मतलब:
आय बढ़ने पर माँग दुगनी तेजी से बढ़ी। यह लक्जरी वस्तु हो सकती है।

मांग की आय लोच के प्रकार (Types of Income Elasticity of Demand):

प्रकारस्थितिअर्थ
Positive Income ElasticityEy > 0आय बढ़ने पर मांग बढ़ती है (Normal Goods)।
Negative Income ElasticityEy < 0आय बढ़ने पर मांग घटती है (Inferior Goods)।
Zero Income ElasticityEy = 0आय में बदलाव का मांग पर कोई असर नहीं।

मांग की आय लोच का महत्व (Importance):

🔹 बाज़ार अनुसंधान में सहायक।
🔹 किस वस्तु की मांग आय पर निर्भर है, यह जानने में उपयोगी।
🔹 व्यापारिक नीति और उत्पादों की श्रेणी तय करने में सहायक।
🔹 आर्थिक विकास और उपभोक्ता व्यवहार का विश्लेषण करने के लिए आवश्यक।

3️⃣ मांग की पारस्परिक लोच (Cross Elasticity of Demand)

मांग की पारस्परिक लोच (Cross Elasticity of Demand) बताती है कि जब किसी एक वस्तु (X) के मूल्य में परिवर्तन होता है, तो दूसरी वस्तु (Y) की मांग में कितना प्रतिशत परिवर्तन होता है।

सूत्र (Formula):

Cross Elasticity of Demand (Ec) = (% वस्तु X की मांग में परिवर्तन) ÷ (% वस्तु Y की कीमत में परिवर्तन)

आसान भाषा में:

Ec = (ΔQy / ΔPx) × (Px / Qy)
Ec = (% Change in Quantity Demanded of X) ÷ (% Change in Price of Y)

जहाँ,

  • Ec = मांग की पारस्परिक लोच (Cross Elasticity of Demand)
  • ΔQy = वस्तु Y की मांग में परिवर्तन (Change in Quantity Demanded of Good Y)
  • ΔPx = वस्तु X के मूल्य में परिवर्तन (Change in Price of Good X)
  • Px = वस्तु X का प्रारंभिक मूल्य (Original Price of Good X)
  • Qy = वस्तु Y की प्रारंभिक मांग (Original Quantity Demanded of Good Y)

उदाहरण:

अगर चाय की कीमत 10% बढ़ गई और कॉफी की माँग 5% बढ़ गई,
तो,

Ec = (5%) ÷ (10%)
Ec = 0.5

मतलब:
चाय और कॉफी एक-दूसरे के विकल्प (Substitute Goods) हैं।

मांग की पारस्परिक लोच के प्रकार (Types of Cross Elasticity):

  1. सकारात्मक पारस्परिक लोच (Positive Cross Elasticity):
    जब एक वस्तु का मूल्य बढ़ने पर दूसरी वस्तु की मांग बढ़ती है।
    ➤ उदाहरण: चाय और कॉफी (प्रतिस्थापन वस्तुएं)।
  2. ऋणात्मक पारस्परिक लोच (Negative Cross Elasticity):
    जब एक वस्तु का मूल्य बढ़ने पर दूसरी वस्तु की मांग घटती है।
    ➤ उदाहरण: कार और पेट्रोल (पूरक वस्तुएं)।

4️⃣ आपूर्ति की मूल्य लोच (Price Elasticity of Supply)

आपूर्ति की मूल्य लोच (Price Elasticity of Supply) यह बताती है कि किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने पर उसकी आपूर्ति में कितना प्रतिशत परिवर्तन आता है।

सूत्र (Formula):

Price Elasticity of Supply (Es) = (% आपूर्ति में परिवर्तन) ÷ (% कीमत में परिवर्तन)

आसान भाषा में:

Es = (ΔQs / ΔP) × (P / Qs)
Es = (% Change in Quantity Supplied) ÷ (% Change in Price)

जहाँ,

  • Es = आपूर्ति की मूल्य लोच (Price Elasticity of Supply)
  • ΔQs = आपूर्ति में परिवर्तन (Change in Quantity Supplied)
  • ΔP = मूल्य में परिवर्तन (Change in Price)
  • P = प्रारंभिक मूल्य (Original Price)
  • Qs = प्रारंभिक आपूर्ति मात्रा (Original Quantity Supplied)

उदाहरण:

अगर गेहूं की कीमत 15% बढ़ जाती है और उसकी आपूर्ति 30% बढ़ जाती है,
तो,

Es = (30%) ÷ (15%)
Es = 2

मतलब:
कीमत बढ़ने पर सप्लाई तेजी से बढ़ी, यानी आपूर्ति लोचदार है।

आपूर्ति की मूल्य लोच के प्रकार (Types of Price Elasticity of Supply):

प्रकारअर्थविशेषता
अत्यधिक लोचदार (Highly Elastic)Es > 1आपूर्ति में अधिक वृद्धि होती है।
एकांक लोच (Unitary Elastic)Es = 1मूल्य और आपूर्ति समान प्रतिशत में बदलते हैं।
अत्यल्प लोचदार (Less Elastic)Es < 1आपूर्ति में कम परिवर्तन होता है।
अत्यधिक अलोचदार (Perfectly Inelastic)Es = 0मूल्य बदलने पर भी आपूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं।
अत्यधिक लोचदार (Perfectly Elastic)Es = ∞मामूली मूल्य बदलाव पर आपूर्ति असीमित।

लोच की माप विधियाँ (Measurement of Elasticity)

Elasticity (लोच) की गणना करने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं। ये विधियाँ हमें यह समझने में मदद करती हैं कि किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति किस हद तक मूल्य, आय या अन्य कारकों के परिवर्तन पर प्रतिक्रिया करती है।

1️⃣ प्रतिशत विधि(Percentage Method):

इस विधि में, मांग या आपूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन को मूल्य में प्रतिशत परिवर्तन से विभाजित किया जाता है।

सूत्र (Formula):

Ed = (% ΔQ) / (% ΔP)

जहाँ,

  • Ed = मांग की मूल्य लोच (Price Elasticity of Demand)
  • % ΔQ = मांग में प्रतिशत परिवर्तन (Percentage Change in Quantity Demanded)
  • % ΔP = मूल्य में प्रतिशत परिवर्तन (Percentage Change in Price)

उदाहरण:

मान लीजिए,

  • किसी वस्तु का मूल्य 10% बढ़ता है
  • मांग 20% घट जाती है

तो,

Ed = (-20) / (10)
Ed = -2

यहाँ Ed = -2 का अर्थ है कि मांग अत्यधिक लोचशील (Highly Elastic) है।

विशेषता:

  • यह सबसे सामान्य और आसान विधि है।
  • प्रतिशत के रूप में परिवर्तन को दिखाती है।

2️⃣ कुल व्यय विधि(Total Expenditure Method)

इस विधि में लोच का निर्धारण कुल व्यय (Total Expenditure = Price × Quantity) के आधार पर किया जाता है।

सूत्र (Formula):

Total Expenditure (TE) = Price (P) × Quantity Demanded (Q)

यानि,

कुल व्यय (TE) = मूल्य (P) × माँग की मात्रा (Q)

मूल सिद्धांत (Main Principles):

1️⃣ यदि मूल्य में परिवर्तन के बावजूद कुल व्यय स्थिर (Constant) रहता है
➡️ Elasticity (E) = 1 (इकाई लोच)

2️⃣ यदि मूल्य घटने पर कुल व्यय बढ़ता है या मूल्य बढ़ने पर कुल व्यय घटता है
➡️ Elasticity (E) > 1 (अधिक लोचशील)

3️⃣ यदि मूल्य घटने पर कुल व्यय घटता है या मूल्य बढ़ने पर कुल व्यय बढ़ता है
➡️ Elasticity (E) < 1 (अल्प लोचशील)

उदाहरण (Example):

मूल्य (₹)मांग (यूनिट)कुल व्यय (₹)
101001000
8120960

यहाँ पर:

  • मूल्य घटकर ₹10 से ₹8 हुआ (घटाव)।
  • मांग बढ़कर 100 यूनिट से 120 यूनिट हुई (बढ़ाव)।
  • लेकिन कुल व्यय घटकर ₹1000 से ₹960 हुआ (घटाव)।

👉 इस स्थिति में,

Elasticity (E) < 1

अर्थात् अल्प लोचशील मांग (Inelastic Demand) होगी।

3️⃣ बिंदु विधि(Point Method)

इस विधि का उपयोग मांग वक्र के किसी बिंदु पर लोच मापने के लिए किया जाता है।

सूत्र (Formula):

Ed = (ΔQ / ΔP) × (P / Q)

या,

मूल्य लोच (Ed) = (मांग में परिवर्तन / मूल्य में परिवर्तन) × (मूल्य / मात्रा)

जहाँ:
P = मूल मूल्य
Q = मूल मांग
ΔQ = मांग में परिवर्तन
ΔP = मूल्य में परिवर्तन

विशेषता:

  • यह ग्राफ पर किसी विशेष बिंदु पर लोच का मापन करती है।
  • सीधी रेखा मांग वक्र पर यह बहुत प्रभावी होती है।

4️⃣ चाप विधि(Arc Method)

जब दो बिंदुओं के बीच लोच मापी जाती है, तब चाप विधि का प्रयोग किया जाता है। यह मांग वक्र के किसी भाग (Arc) पर औसत लोच दर्शाती है।

सूत्र (Formula):

Ed = (ΔQ / ΔP) × [(P1 + P2) / (Q1 + Q2)]

या,

Ed = (मांग में परिवर्तन / मूल्य में परिवर्तन) × (दोनों मूल्यों का योग / दोनों मात्राओं का योग)

जहाँ,

  • Ed = मूल्य लोच (Price Elasticity of Demand)
  • ΔQ = Q2 - Q1 (मांग में परिवर्तन)
  • ΔP = P2 - P1 (मूल्य में परिवर्तन)
  • P1 = प्रारंभिक मूल्य (Initial Price)
  • P2 = अंतिम मूल्य (New Price)
  • Q1 = प्रारंभिक मांग (Initial Quantity)
  • Q2 = अंतिम मांग (New Quantity)

इन विधियों का महत्व:

  • बाजार विश्लेषण के लिए उपयोगी।
  • मूल्य निर्धारण रणनीति बनाने में सहायक।
  • उत्पादन योजना व नीति निर्धारण में सहायक।

लोच की विभिन्न स्थितियाँ(Degrees of Elasticity)

1️⃣ पूर्णतः लोचशील (Perfectly Elastic)

पूर्णतः लोचशील मांग का अर्थ है कि मूल्य में बहुत ही छोटे से परिवर्तन पर मांग की मात्रा असीम (Infinite) रूप से बदल जाती है। इस स्थिति में यदि मूल्य थोड़ा सा भी बढ़ेगा तो मांग शून्य (0) हो जाएगी, और यदि मूल्य थोड़ा सा घटेगा तो मांग असीम हो सकती है।

इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) असीम (∞) होती है।

मुख्य विशेषताएं (Key Features):

🔹 मांग की मात्रा: मूल्य में मामूली बदलाव पर असीम रूप से बदलती है।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve): मांग वक्र क्षैतिज (Horizontal Line) होता है।
🔹 लोच का मान: Es = ∞ (Infinite Elasticity)।
🔹 उदाहरण: यदि किसी वस्तु का मूल्य ₹50 है और उस पर लोग 100 यूनिट खरीद रहे हैं। जैसे ही मूल्य ₹51 हुआ, मांग पूरी तरह से खत्म हो गई।

आरेख (Graph):

📝 समझिए:

  • Y-अक्ष पर मूल्य (Price) है।
  • X-अक्ष पर मात्रा (Quantity) है।
  • वक्र पूरी तरह से क्षैतिज (Horizontal) होता है, जो यह दर्शाता है कि किसी विशेष मूल्य पर ही मांग हो रही है, जैसे ही मूल्य बदला, मांग शून्य हो गई।

उदाहरण:

किसी बाजार में कृषि उत्पाद (जैसे गेंहू) की कीमत सरकार द्वारा तय कर दी गई ₹50 प्रति किलो। इस कीमत पर लोग अनगिनत मात्रा में खरीदने को तैयार हैं, पर ₹51 होने पर कोई भी नहीं खरीदेगा।

2️⃣ पूर्णतः अलोचशील (Perfectly Inelastic)

पूर्णतः अलोचशील मांग का अर्थ है कि किसी वस्तु के मूल्य में कितना भी परिवर्तन हो, मांग की मात्रा में कोई भी बदलाव नहीं होता। ग्राहक उस वस्तु की निश्चित मात्रा ही खरीदते हैं, चाहे कीमत बढ़े या घटे।

इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) शून्य (0) होती है।

मुख्य विशेषताएं (Key Features):

🔹 मांग की मात्रा: मूल्य में किसी भी बदलाव पर स्थिर रहती है।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve): मांग वक्र पूरी तरह से ऊर्ध्वाधर (Vertical Line) होता है।
🔹 लोच का मान: Es = 0 (Zero Elasticity)।
🔹 उदाहरण: जीवन रक्षक दवाइयाँ, जैसे इंसुलिन, जिनकी मांग मूल्य के बढ़ने पर भी घटती नहीं है।

आरेख (Graph):

📝 समझिए:

  • Y-अक्ष पर मूल्य (Price) है।
  • X-अक्ष पर मात्रा (Quantity) है।
  • वक्र पूरी तरह से ऊर्ध्वाधर (Vertical) होता है, जो यह दर्शाता है कि मूल्य में कितना भी बदलाव हो, मांग की मात्रा Q पर स्थिर रहती है।

उदाहरण:

अगर किसी मरीज को दिन में 2 यूनिट दवा लेनी है, तो चाहे दवा की कीमत ₹100 हो या ₹500, उसे 2 यूनिट लेनी ही पड़ेगी।

3️⃣ एकात्मक लोच (Unitary Elastic)

जब किसी वस्तु के मूल्य में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के कारण मांग में भी समान प्रतिशत का परिवर्तन होता है, तो इसे एकात्मक लोच (Unitary Elastic Demand) कहते हैं।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) का मान 1 होता है।

मुख्य विशेषताएं (Key Features):

🔹 लोच का मान (Es): 1
🔹 मूल्य और मांग का संबंध:
मूल्य में जितना प्रतिशत परिवर्तन होगा, मांग में भी उतना ही प्रतिशत परिवर्तन होगा।
उदाहरण के लिए, यदि मूल्य में 10% की वृद्धि होती है, तो मांग में 10% की कमी आएगी।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve): यह हाइपरबोला (Hyperbola) जैसा होता है या ऐसी स्थिति को दर्शाता है जिसमें कुल व्यय (Total Expenditure) समान रहता है।

सूत्र (Formula):

Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)

आरेख (Graph):

📝 समझिए:

  • Y-अक्ष पर मूल्य (Price) है।
  • X-अक्ष पर मात्रा (Quantity) है।
  • वक्र ऐसा होता है जिसमें कुल व्यय (Total Expenditure) समान रहता है।
    (मूल्य × मात्रा = समान)

उदाहरण:

अगर किसी वस्तु का मूल्य ₹50 से ₹40 घटता है (20% की कमी), और मांग 20 यूनिट से 24 यूनिट हो जाती है (20% की वृद्धि), तो यह एकात्मक लोच की स्थिति है।

4️⃣ अपेक्षाकृत लोचशील (Relatively Elastic)

जब किसी वस्तु के मूल्य में थोड़े से प्रतिशत परिवर्तन के कारण मांग में अधिक प्रतिशत का परिवर्तन होता है, तो इसे अपेक्षाकृत लोचशील मांग (Relatively Elastic Demand) कहते हैं।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) का मान 1 से अधिक (>1) होता है।

मुख्य विशेषताएं (Key Features):

🔹 लोच का मान (Ed): >1
🔹 मूल्य और मांग का संबंध:
मूल्य में कम प्रतिशत बदलाव पर भी मांग में अधिक प्रतिशत बदलाव होता है।
🔹 मांग वक्र (Demand Curve):
मांग वक्र अपेक्षाकृत सपाट (Flat) होता है, यानी यह अधिक क्षैतिज झुकाव दिखाता है।
🔹 उदाहरण:
अगर किसी वस्तु का मूल्य 5% घटता है और मांग 20% बढ़ जाती है, तो यह अपेक्षाकृत लोचशील मांग है।

सूत्र (Formula):

Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)

आरेख (Graph):

📝 समझिए:

  • Y-अक्ष (ऊर्ध्वाधर) पर मूल्य (Price)।
  • X-अक्ष (क्षैतिज) पर मात्रा (Quantity)।
  • वक्र कम तीव्र ढलान वाला होता है यानी हल्का झुका हुआ।
  • छोटे मूल्य परिवर्तन पर अधिक मात्रा परिवर्तन होता है।

उदाहरण:

कपड़ों की मांग में अक्सर अपेक्षाकृत लोचशीलता देखी जाती है। जैसे अगर किसी शर्ट की कीमत ₹1000 से ₹900 (10% की कमी) हो जाए और मांग 15% बढ़ जाए।

5️⃣ अपेक्षाकृत अलोचशील (Relatively Inelastic)

जब किसी वस्तु के मूल्य में अधिक प्रतिशत परिवर्तन के बावजूद मांग में बहुत कम प्रतिशत परिवर्तन होता है, तो इसे अपेक्षाकृत अलोचशील मांग (Relatively Inelastic Demand) कहते हैं।
इस स्थिति में मांग की लोच (Elasticity of Demand) का मान 1 से कम (<1) होता है।

मुख्य विशेषताएं (Key Features):

✔️ लोच का मान (Ed): < 1
✔️ मूल्य और मांग का संबंध:
मूल्य में अधिक प्रतिशत परिवर्तन पर भी मांग में थोड़ा ही प्रतिशत परिवर्तन होता है।
✔️ मांग वक्र (Demand Curve):
मांग वक्र अपेक्षाकृत खड़ा (Steeper) होता है।
✔️ उदाहरण:
अगर पेट्रोल की कीमत में 20% बढ़ोतरी हो जाए, लेकिन मांग केवल 5% घटे, तो यह अपेक्षाकृत अलोचशील मांग है।

सूत्र (Formula):

Ed = (% में मांग में परिवर्तन) / (% में मूल्य में परिवर्तन)

आरेख (Graph):

समझिए:

  • Y-अक्ष (Vertical) पर मूल्य (Price)।
  • X-अक्ष (Horizontal) पर मात्रा (Quantity)।
  • वक्र तीव्र ढलान वाला होता है यानी ज्यादा सीधा (Steep)।
  • मूल्य के अधिक बदलाव पर भी मांग में थोड़ा ही बदलाव।

उदाहरण:

  • पेट्रोल, दवाइयाँ, नमक, चीनी जैसी आवश्यक वस्तुएँ।
  • इनके दाम बढ़ने पर भी लोग इन्हें लेना नहीं छोड़ते, इसलिए इनमें लोच कम होती है।

लोच के निर्धारक कारक(Determinants of Elasticity)

Elasticity of Demand (मांग की लोच) यह तय करती है कि किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने पर उसकी मांग कितनी बदलेगी। इस पर कई कारक प्रभाव डालते हैं, जिन्हें मांग की लोच के निर्धारक कारक कहा जाता है।

प्रमुख निर्धारक कारक (Key Determinants of Elasticity of Demand):

1️⃣ विकल्पों की उपलब्धता (Availability of Substitutes)

विकल्पों की उपलब्धता का अर्थ है – किसी वस्तु के बदले प्रयोग में लाने योग्य अन्य समान वस्तुएं बाजार में मौजूद हैं या नहीं।
जितनी अधिक वस्तु के विकल्प (Substitutes) होंगे, उस वस्तु की मांग की लोच (Elasticity of Demand) उतनी ही अधिक होगी।

प्रभाव (Impact):

  • यदि किसी वस्तु के कई विकल्प हैं, तो मूल्य में थोड़ी वृद्धि पर भी लोग दूसरा विकल्प चुन लेते हैं।
  • यदि विकल्प नहीं हैं, तो मूल्य बढ़ने के बावजूद वस्तु की मांग में कमी नहीं आती।

विशेषताएं:

 विकल्प अधिक ➡️ मांग अधिक लोचशील (Elastic Demand)
 विकल्प कम या नहीं ➡️ मांग अलोचशील (Inelastic Demand)

उदाहरण:

वस्तु का नामविकल्प की स्थितिलोच की स्थिति
चाय (Tea)कॉफी, ग्रीन टी आदि विकल्प हैंअधिक लोचशील (Elastic)
जीवनरक्षक दवाकोई विकल्प नहींअलोचशील (Inelastic)
शीतल पेय (Cold Drink)कई विकल्प (कोला, जूस आदि)अधिक लोचशील (Elastic)

ग्राफ द्वारा समझिए:

यह ग्राफ दिखाता है कि विकल्पों की अधिक उपलब्धता होने पर मूल्य बढ़ते ही मांग तेजी से घटती है, इसलिए रेखा अधिक ढलान वाली होती है।

2️⃣ वस्तु का स्वभाव (Nature of Commodity)

वस्तु का स्वभाव (Nature of Commodity) का मतलब है कि वस्तु किस प्रकार की है –
क्या वह आवश्यक (Necessary), विलासी (Luxury), या आरामदायक (Comfort) वस्तु है?
वस्तु का यही स्वभाव उसकी मांग की लोच (Elasticity of Demand) को प्रभावित करता है।

प्रभाव (Impact):

  • आवश्यक वस्तुएं (Necessaries):
    जिनके बिना जीवन मुश्किल है (जैसे – दाल, चावल, दवाई)।
    ➤ इनकी मांग अलोचशील (Inelastic) होती है क्योंकि मूल्य बढ़ने पर भी लोग इन्हें खरीदते हैं।
  • विलासी वस्तुएं (Luxuries):
    जो सिर्फ शौक और सुविधा के लिए होती हैं (जैसे – गाड़ी, महंगे कपड़े)।
    ➤ इनकी मांग अधिक लोचशील (Elastic) होती है क्योंकि मूल्य बढ़ते ही लोग इन्हें कम खरीदते हैं।
  • आरामदायक वस्तुएं (Comforts):
    जो जीवन को आसान बनाती हैं (जैसे – कूलर, गैस स्टोव)।
    ➤ इनकी मांग मध्यम लोच वाली (Moderate Elasticity) होती है।

विशेषताएं:

🔹 आवश्यक वस्तु ➡️ कम लोच (Inelastic Demand)
🔹 विलासी वस्तु ➡️ अधिक लोच (Elastic Demand)
🔹 आरामदायक वस्तु ➡️ मध्यम लोच (Moderate Elasticity)

उदाहरण:

वस्तु का नामस्वभावलोच की स्थिति
गेंहू (Wheat)आवश्यक वस्तुअलोचशील (Inelastic)
स्मार्टफोन (Smartphone)विलासी वस्तुअधिक लोचशील (Elastic)
हीटर (Heater)आरामदायक वस्तुमध्यम लोच (Moderate)

ग्राफ द्वारा समझिए:

👉 आवश्यक वस्तु: रेखा लगभग सीधी होगी (कम लोच)।
👉 विलासी वस्तु: रेखा अधिक ढलान वाली होगी (अधिक लोच)।

3️⃣ समय अवधि(Time Period)

समय अवधि का अर्थ है किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति पर मूल्य परिवर्तन का प्रभाव कितने समय तक और किस प्रकार पड़ता है।
समय के अनुसार लोच (Elasticity) बदलती है, यानी किसी वस्तु की मांग और आपूर्ति की प्रतिक्रिया समय पर निर्भर करती है।

प्रभाव (Impact of Time on Elasticity):

1️⃣ अल्पकाल (Short Period):

  • इस अवधि में उपभोक्ता जल्दी विकल्प नहीं खोज सकते।
  • आवश्यक वस्तुओं की मांग में बहुत कम परिवर्तन होता है।
  • इसलिए, इस समय में मांग की लोच कम (Inelastic) होती है।
    उदाहरण: अचानक पेट्रोल की कीमत बढ़ जाए तो लोग कम नहीं कर पाते।

2️⃣ दीर्घकाल (Long Period):

  • इस समय में उपभोक्ता विकल्प खोज लेते हैं।
  • लोग अन्य विकल्प अपनाने लगते हैं या आदतें बदल लेते हैं।
  • इसलिए, इस समय में मांग की लोच अधिक (Elastic) होती है।
    उदाहरण: लंबे समय में लोग पेट्रोल के विकल्प जैसे इलेक्ट्रिक गाड़ियां चुन सकते हैं।

विशेषताएं:

समय अवधिलोच की स्थितिकारण
अल्पकालअलोचशीलविकल्प नहीं, तात्कालिक जरूरतें
दीर्घकाललोचशीलविकल्प उपलब्ध, व्यवहार में बदलाव

उदाहरण:

वस्तुअल्पकाल में लोचदीर्घकाल में लोच
पेट्रोलकमअधिक
बिजलीकमअधिक
गेंहूबहुत कमकम

ग्राफ द्वारा समझिए:

👉 अल्पकाल में मांग वक्र सीधा होता है (कम लोच)।
👉 दीर्घकाल में मांग वक्र अधिक झुका होता है (अधिक लोच)।

4️⃣ आय का अनुपात(Proportion of Income)

आय का अनुपात का अर्थ है किसी वस्तु की कीमत हमारे कुल आय का कितना भाग लेती है। यदि किसी वस्तु की कीमत हमारी आय का बड़ा हिस्सा लेती है, तो उसकी मांग की लोच अधिक होती है, और यदि कीमत का हिस्सा कम है, तो लोच कम होती है।

प्रभाव (Effect on Elasticity):

🔹 ➡️ महंगी वस्तुएं (High Proportion of Income):

  • जिन वस्तुओं की कीमतें अधिक होती हैं और आय का बड़ा हिस्सा खर्च होता है, उनकी मांग में मूल्य परिवर्तन पर बड़ा असर पड़ता है।
  • इनकी मांग अधिक लोचशील (More Elastic) होती है।
    उदाहरण: कार, फ्रिज, टीवी आदि।

🔹 ➡️ सस्ती वस्तुएं (Low Proportion of Income):

  • जिन वस्तुओं की कीमतें बहुत कम होती हैं और आय का छोटा हिस्सा खर्च होता है, उनकी मांग में मूल्य परिवर्तन पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।
  • इनकी मांग कम लोचशील (Inelastic) होती है।
    उदाहरण: नमक, साबुन, माचिस आदि।

विशेषताएं:

वस्तु का प्रकारआय में हिस्सेदारीमांग की लोच (Elasticity)
महंगी वस्तुएंअधिकअधिक लोचशील (Elastic)
सस्ती आवश्यक वस्तुएंकमकम लोचशील (Inelastic)

उदाहरण:

वस्तुआय का अनुपातलोच की स्थिति
कारअधिकअधिक लोचशील
घर का किरायाअधिकअधिक लोचशील
नमकबहुत कमअत्यंत अलोचशील
टूथपेस्टकमकम लोचशील

ग्राफिक समझ:

👉 महंगी वस्तुओं के लिए मांग वक्र अधिक झुका होता है (Elastic)।
👉 सस्ती वस्तुओं के लिए मांग वक्र सीधा होता है (Inelastic)।

लोच का महत्व(Importance of Elasticity)

लोच (Elasticity) का अर्थ है कि किसी वस्तु की मांग या आपूर्ति मूल्य, आय, या अन्य कारकों के परिवर्तन पर कितनी प्रतिक्रिया देती है।
लोच का महत्व आर्थिक नीतियों, व्यवसायिक निर्णयों और बाजार विश्लेषण में बहुत अहम भूमिका निभाता है।

1️⃣ मूल्य निर्धारण में सहायक (Pricing Decisions)

मांग की लोच (Elasticity of Demand) का उपयोग व्यवसाय में मूल्य (Price) तय करने के लिए किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि यदि किसी वस्तु का मूल्य बढ़ाया या घटाया जाए तो उसकी मांग पर क्या असर होगा।

कैसे सहायक है मूल्य निर्धारण में?

1️⃣ लोचशील मांग (Elastic Demand):
यदि किसी वस्तु की मांग अधिक लोचशील है (Elastic Demand), तो उसका मूल्य बढ़ाने पर मांग में भारी गिरावट आ सकती है।
🔹 ऐसे में व्यापारी या उत्पादक मूल्य कम रखकर अधिक बिक्री करने का प्रयास करते हैं।

2️⃣ अलोचशील मांग (Inelastic Demand):
यदि किसी वस्तु की मांग अलोचशील है (Inelastic Demand), तो मूल्य बढ़ाने पर भी मांग में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।
🔹 इस स्थिति में व्यापारी मूल्य बढ़ाकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

उदाहरण से समझें:

स्थितिलोचमूल्य वृद्धि का प्रभावव्यापारी का निर्णय
पेट्रोलअलोचशीलमांग में कमी नहीं के बराबरमूल्य बढ़ाना फायदेमंद
मोबाइल फोनलोचशीलमांग में बड़ी गिरावटमूल्य कम रखना फायदेमंद

मुख्य बिंदु:

✅ मूल्य निर्धारण में लोच के अनुसार निर्णय लेकर लाभ बढ़ाया जा सकता है।
✅ लोचशील वस्तुओं में कम मूल्य पर अधिक बिक्री की रणनीति अपनाई जाती है।
✅ अलोचशील वस्तुओं में मूल्य बढ़ाकर अधिक मुनाफा कमाया जाता है।

2️⃣ कर नीति में उपयोगी (Taxation Policy)

सरकार जब वस्तुओं और सेवाओं पर कर (Tax) लगाती है, तो उसे यह समझना जरूरी होता है कि कर लगाने के बाद लोगों की मांग पर क्या असर पड़ेगा।
मांग की लोच (Elasticity of Demand) की मदद से सरकार यह तय करती है कि किन वस्तुओं पर कर लगाना ज्यादा फायदेमंद रहेगा।

कर नीति में लोच का महत्व:

1️⃣ अलोचशील वस्तुएँ (Inelastic Goods):
जिन वस्तुओं की मांग अलोचशील होती है, जैसे – पेट्रोल, शराब, सिगरेट आदि, उन पर कर लगाने के बाद भी मांग ज्यादा कम नहीं होती।
🔹 इस वजह से सरकार इन वस्तुओं पर ज्यादा कर लगाकर अधिक राजस्व (Revenue) कमा सकती है।

2️⃣ लोचशील वस्तुएँ (Elastic Goods):
जिन वस्तुओं की मांग लोचशील होती है, जैसे – टीवी, फ्रिज, महंगे कपड़े आदि, उन पर कर लगाने से मांग में भारी गिरावट आ सकती है।
🔹 इससे व्यापार और उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है, इसलिए ऐसे उत्पादों पर कर कम लगाया जाता है।

उदाहरण:

वस्तु का नामलोचकर लगाने का प्रभावनीति का निर्णय
पेट्रोलअलोचशीलमांग में हल्की कमीअधिक कर लगाना सही
गहनेलोचशीलमांग में तेज गिरावटकम कर लगाना उचित

मुख्य बिंदु:

✅ सरकार कर नीति बनाते समय वस्तुओं की मांग की लोच का अध्ययन करती है।
✅ अलोचशील वस्तुओं पर ज्यादा कर लगाकर ज्यादा आय अर्जित की जाती है।
✅ लोचशील वस्तुओं पर कर बढ़ाने से अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है।

3️⃣ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सहायता (International Trade)

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade) में एक देश जब दूसरे देशों के साथ माल और सेवाओं का लेन-देन करता है, तो वहाँ Elasticity (लोच) बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
विशेषकर, मांग की लोच (Elasticity of Demand) और आपूर्ति की लोच (Elasticity of Supply) के आधार पर यह तय होता है कि व्यापारिक नीतियाँ, मूल्य निर्धारण और निर्यात-आयात से देश को लाभ होगा या नुकसान।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लोच का महत्व:

1️⃣ मूल्य परिवर्तन का असर:
अगर किसी वस्तु की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग लोचशील (Elastic) है, तो कीमत बढ़ाने पर निर्यात घट सकता है।
लेकिन अगर मांग अलोचशील (Inelastic) है, तो कीमत बढ़ने पर भी निर्यात में कमी नहीं आएगी, और देश अधिक मुनाफा कमा सकता है।

2️⃣ विदेशी मुद्रा अर्जन:
अलोचशील वस्तुओं (जैसे – कच्चा तेल, दवाइयाँ आदि) का निर्यात करके देश ज्यादा विदेशी मुद्रा कमा सकता है, क्योंकि इनकी मांग स्थिर रहती है।

3️⃣ व्यापार नीति निर्माण:
Elasticity का अध्ययन करके सरकार यह तय करती है कि किन वस्तुओं का निर्यात बढ़ाना है और किन वस्तुओं के आयात को सीमित करना है।

उदाहरण:

वस्तु का नामलोचमूल्य वृद्धि का प्रभावव्यापारिक रणनीति
पेट्रोलअलोचशीलमांग में हल्की गिरावटज्यादा निर्यात करें
कपड़ेलोचशीलमांग में तेजी से गिरावटमूल्य नियंत्रण रखें

मुख्य बिंदु:

✅ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार लाभ के लिए लोच का विश्लेषण जरूरी है।
✅ अलोचशील वस्तुओं पर फोकस करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
✅ लोच के अनुसार निर्यात और आयात की रणनीतियाँ बनती हैं।

4️⃣ कारक मूल्य निर्धारण में सहायक (Factor Pricing)

कारक मूल्य निर्धारण का मतलब है – उत्पादन में लगे संसाधनों जैसे श्रम (Labour), भूमि (Land), पूंजी (Capital) और उद्यमिता (Entrepreneurship) के बदले मिलने वाले भुगतान (जैसे मजदूरी, किराया, ब्याज, लाभ) का निर्धारण।
Elasticity (लोच) की मदद से यह समझा जाता है कि जब किसी उत्पादन कारक की मांग या आपूर्ति में बदलाव होता है, तो उसके दाम पर क्या असर पड़ेगा।

Factor Pricing में Elasticity का महत्व:

1️⃣ अवधारणाएँ:

  • अगर किसी कारक की आपूर्ति अलोचशील (Inelastic) है (जैसे – विशेष कुशल श्रमिक), तो उनकी मजदूरी में अधिक वृद्धि हो सकती है।
  • यदि किसी कारक की आपूर्ति लोचशील (Elastic) है, तो मांग में कमी के साथ उसका मूल्य भी तेजी से गिर सकता है।

2️⃣ मांग के आधार पर:
अगर किसी विशेष स्किल वाले कर्मचारी की मांग अधिक है और आपूर्ति कम है, तो उनकी मजदूरी बढ़ेगी।

3️⃣ दीर्घकालीन व अल्पकालीन प्रभाव:

  • अल्पकाल में कारकों की आपूर्ति अक्सर अलोचशील होती है, इसलिए उनके मूल्य स्थिर रहते हैं।
  • दीर्घकाल में कारकों की आपूर्ति अधिक लोचशील हो जाती है, जिससे कीमतें घट-बढ़ सकती हैं।

उदाहरण:

उत्पादन कारकलोचमांग बढ़ने पर असरमूल्य निर्धारण रणनीति
कुशल श्रमिकअलोचशीलमजदूरी में तेज वृद्धिअधिक भुगतान दें
साधारण श्रमिकलोचशीलमजदूरी में हल्की वृद्धिसामान्य भुगतान रखें

मुख्य बिंदु:

✅ Elasticity के आधार पर कारकों का मूल्य तय करना आसान होता है।
✅ विशेष कौशल वाले संसाधनों की कीमतें अधिक अस्थिर हो सकती हैं।
✅ दीर्घकाल में आपूर्ति और मांग के अनुसार कारक मूल्य बदलते रहते हैं।

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