हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) भी कहा जाता है, विश्व की प्राचीनतम और समृद्ध सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई। हड़प्पा सभ्यता लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व के बीच अपने चरम पर थी।
इसका नामकरण "हड़प्पा" रखा गया क्योंकि इस सभ्यता के सबसे पहले अवशेष पंजाब (अब पाकिस्तान) के हड़प्पा नामक स्थान से 1921 ईस्वी में खोजे गए। इसके बाद मोहनजोदड़ो, राखीगढ़ी, कालीबंगा, लोथल जैसे अनेकों स्थल मिले, जिन्होंने इसकी विशालता को प्रमाणित किया।
हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization) जिसे सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) भी कहा जाता है, विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी।
यह सभ्यता मुख्यतः वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत में सिंधु नदी के किनारे विकसित हुई थी।
🗓️ समयकाल: लगभग 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू.
📍 प्रमुख क्षेत्र: पंजाब, सिंध, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा
- सन् 1921 ई. में दयानंद साहनी द्वारा हड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान) स्थल की खोज की गई।
- सन् 1922 ई. में राखालदास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान) की खोज हुई।
स्थल | वर्तमान स्थान | प्रमुख विशेषताएं |
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हड़प्पा | पंजाब, पाकिस्तान | अनाज भंडारण, किलेबंदी |
मोहनजोदड़ो | सिंध, पाकिस्तान | स्नानागार, ग्रेट बाथ |
कालीबंगा | राजस्थान, भारत | जले हुए खेत, ऊँट के अवशेष |
लोथल | गुजरात, भारत | गोदी (Dockyard), व्यापार |
धौलावीरा | गुजरात, भारत | जल प्रबंधन प्रणाली |
राखीगढ़ी | हरियाणा, भारत | विशाल आवासीय क्षेत्र |
हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, विश्व की सबसे उन्नत और योजनाबद्ध सभ्यताओं में गिनी जाती है। इसकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
हड़प्पा सभ्यता के नगर वैज्ञानिक तरीके से बसाए गए थे, जो विश्व की पहली योजनाबद्ध नगर सभ्यता कहलाती है।
- सड़कें सीधी और एक-दूसरे को समकोण (90°) पर काटती थीं।
- पूरा नगर ग्रिड पैटर्न (Grid Pattern) पर बना था।
- दो मुख्य भाग होते थे:
- ऊपरी नगर (Citadel) – शासक वर्ग और महत्वपूर्ण इमारतें।
- निचला नगर (Lower Town) – आम जनता का निवास।
- मकानों में पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ, जो समान माप की होती थीं (आमतौर पर 1:2:4 अनुपात)।
हड़प्पा सभ्यता की सबसे अनूठी विशेषता थी इसकी उन्नत जल निकासी व्यवस्था।
- हर घर से नाली का सीधा जुड़ाव।
- नालियों को ढककर बनाया जाता था, जिनकी समय-समय पर सफाई होती थी।
- गंदे पानी को नगर से बाहर ले जाने का सुनियोजित प्रबंध था।
- स्नानगृह और कुएं भी घरों में होते थे।
हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला उस समय के लिए अत्यंत विकसित थी।
- मुख्य रूप से पकी हुई ईंटों का उपयोग।
- बहुमंजिला मकान, जिनमें आंगन और कमरे होते थे।
- स्नानागार, भंडारण कक्ष और बड़े-बड़े गोदाम बने होते थे।
- सबसे प्रसिद्ध उदाहरण – मोहनजोदड़ो का ग्रेट बाथ।
- समाज में अमीर और गरीब का अंतर दिखाई देता है।
- व्यापारी, कारीगर, किसान, शासक वर्ग के प्रमाण मिलते हैं।
- महिलाओं की स्थिति अच्छी मानी जाती है, मातृदेवी पूजा के प्रमाण मिलते हैं।
- विभिन्न शिल्प जैसे मनके बनाना, मूर्तियां गढ़ना, काष्ठ और धातु कार्य प्रचलित थे।
हड़प्पावासी धार्मिक रूप से भी विकसित थे।
- मातृदेवी (Mother Goddess) की पूजा होती थी, जिससे प्रजनन शक्ति की उपासना का संकेत है।
- पशुपति महादेव (शिव के प्रारंभिक रूप) की उपासना के संकेत।
- पीपल, बेल जैसे वृक्षों की पूजा।
- पशुओं की पूजा – जैसे बैल, हाथी, गैंडा आदि।
- अग्निपूजा के प्रमाण भी मिले हैं।
- शवों को दफनाने और जलाने की परंपरा, दोनों के प्रमाण।
- हड़प्पा सभ्यता की अपनी चित्रात्मक लिपि (Pictographic Script) थी।
- लिपि को दाएं से बाएं लिखा जाता था।
- आज तक हड़प्पा लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है।
- मुहरों (Seals) पर सबसे अधिक लिपि के प्रमाण हैं।
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और व्यापार पर आधारित थी।
- प्रमुख फसलें – गेहूं, जौ, कपास, तिल, चना।
- पशुपालन – गाय, बैल, बकरी, ऊँट, भेड़।
- विदेशी व्यापार – मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) से व्यापार के प्रमाण।
- कारीगरी – मिट्टी के बर्तन, आभूषण, कांस्य मूर्तियां, मनके।
- कांस्य, पत्थर, टेराकोटा से बनी मूर्तियां।
- प्रसिद्ध मूर्तियां – नर्तकी की कांस्य मूर्ति, पशुपति मुहर।
- मनकों की माला, कंगन, खिलौने, मिट्टी के बर्तन का निर्माण।
- काष्ठ और धातु शिल्प का प्रयोग।
- स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार।
- जलमार्ग और स्थल मार्ग दोनों से व्यापार।
- मोहरों (Seals) का व्यापार में प्रमुख उपयोग।
हड़प्पा सभ्यता की सामाजिक व्यवस्था काफी संगठित और सुव्यवस्थित मानी जाती है। उपलब्ध पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि इस सभ्यता में विभिन्न वर्ग, व्यवसाय, धार्मिक विश्वास और सामाजिक परंपराएं मौजूद थीं। यद्यपि इस सभ्यता के लोगों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन उत्खनन से प्राप्त वस्तुएं, मकान, मूर्तियां और कब्रें उनके सामाजिक जीवन की झलक देती हैं।
हड़प्पा समाज में अमीर और गरीब का अंतर देखने को मिलता है। समाज में वर्गों का बंटवारा कार्य और संपत्ति के आधार पर था।
- शासक वर्ग (Ruling Class):
- ये लोग किलाबंद क्षेत्रों में रहते थे।
- नगरों के संचालन, व्यापार और धार्मिक अनुष्ठानों के नियंत्रण में थे।
- व्यापारी वर्ग (Trader Class):
- आंतरिक और विदेशी व्यापार के संचालक।
- मोहरों (Seals) और वजन-तोल प्रणाली का उपयोग करते थे।
- कारीगर वर्ग (Artisan Class):
- मिट्टी, धातु, पत्थर, मनकों और वस्त्र निर्माण में कुशल।
- कृषक वर्ग (Farmer Class):
- कृषि और पशुपालन के कार्य में संलग्न।
- श्रमिक वर्ग (Labour Class):
- भवन निर्माण, नहरों की सफाई और अन्य श्रम कार्य करते थे।
- महिलाएं समाज में सम्मानजनक स्थान रखती थीं।
- मातृदेवी (Mother Goddess) की पूजा प्रचलित थी, जिससे महिलाओं की उच्च स्थिति का संकेत मिलता है।
- महिलाओं द्वारा सजावट और श्रृंगार की वस्तुएं (आभूषण, कंघी, मनके) उत्खनन में पाई गई हैं।
- घरेलू कामों के साथ-साथ कुछ महिलाएं शिल्प कार्यों में भी संलग्न थीं।
- परिवार मुख्य रूप से संयुक्त होते थे।
- घरों के आंगन, बड़े कमरे और स्टोर रूम बड़े परिवारों के प्रमाण हैं।
- भोजन पकाने और भंडारण की उचित व्यवस्था थी।
- कृषि: गेहूं, जौ, कपास की खेती।
- पशुपालन: गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊंट।
- कारीगरी: मिट्टी के बर्तन, आभूषण, मूर्तियां।
- व्यापार: मेसोपोटामिया जैसे देशों से व्यापार।
- धार्मिक आस्था का समाज में बड़ा प्रभाव था।
- मातृदेवी और पशुपति महादेव की पूजा।
- पशु, वृक्ष (पीपल) और अग्नि की पूजा।
- मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास (कब्रों में वस्तुएं रखना)।
- शवों को दफनाने और जलाने दोनों की परंपराएं थीं।
- कब्रों में मृतक के साथ दैनिक उपयोग की वस्तुएं, आभूषण, खाद्य सामग्री रखी जाती थीं।
- यह पुनर्जन्म या मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास को दर्शाता है।
तालिका:
विशेषता | विवरण |
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वर्ग व्यवस्था | शासक, व्यापारी, कारीगर, कृषक, श्रमिक |
महिलाओं की स्थिति | सम्मानजनक, मातृदेवी पूजा के प्रमाण |
परिवार | संयुक्त परिवार, बड़े आवास |
व्यवसाय | कृषि, पशुपालन, शिल्प, व्यापार |
धार्मिक आस्था | मातृदेवी, पशुपति, वृक्ष, अग्नि पूजा |
शवाधान प्रथा | दफन और दाह संस्कार दोनों प्रचलित |
हड़प्पा सभ्यता (लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व) की अर्थव्यवस्था अत्यंत उन्नत और संगठित थी। इसके मुख्य आधार कृषि, व्यापार, कारीगरी और पशुपालन थे। सिंधु घाटी के लोग आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विदेशों से व्यापारिक संबंध भी रखते थे, जो इसे एक समृद्ध और विकसित सभ्यता बनाते हैं।
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि थी। सिंचाई और उपज की गुणवत्ता के कारण कृषि अत्यधिक विकसित थी।
- प्रमुख फसलें: गेहूं, जौ, तिल, चना, कपास, बाजरा।
- कपास की खेती के प्रमाण दुनिया के सबसे प्राचीन माने जाते हैं।
- सिंचाई के लिए नहरों और जलाशयों का प्रयोग।
- कृषि उपकरण: कुदाल, हल, दरांती आदि के प्रमाण मिले हैं।
- पशुपालन भी कृषि का हिस्सा था – गाय, भैंस, बकरी, ऊँट, भेड़।
हड़प्पावासी कुशल कारीगर थे। उनके द्वारा निर्मित वस्तुएं उनकी उन्नत शिल्पकला को दर्शाती हैं।
- मिट्टी के बर्तन (Painted Pottery)
- मनके और आभूषण निर्माण
- धातु कार्य (कांस्य, तांबा)
- मूर्तिकला (कांस्य नर्तकी, पशुपति मुहर)
- कपड़ा बुनाई और रंगाई
- लकड़ी और पत्थर का काम
इन शिल्पों के लिए कच्चा माल स्थानीय और बाहरी क्षेत्रों से लाया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता का व्यापार प्रणालीगत और विकसित थी। इसमें स्थानीय, अंतर-नगर और विदेशी व्यापार शामिल था।
- व्यापार स्थलीय और जलमार्गों से होता था।
- आंतरिक व्यापार – हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल जैसे नगरों में।
- विदेशी व्यापार – मेसोपोटामिया, ईरान और अफगानिस्तान से।
- निर्यात वस्तुएं – कपास, मनके, गहने, धातु की वस्तुएं।
- आयात वस्तुएं – कीमती पत्थर, धातु, सुगंधित पदार्थ।
लोथल बंदरगाह हड़प्पा व्यापार का प्रमुख केंद्र था।
हड़प्पा सभ्यता में मुद्रा का प्रचलन नहीं था। वस्तुओं का आदान-प्रदान (Barter System) करके व्यापार किया जाता था। वजन और माप की सटीक प्रणाली थी, जिससे वस्तुओं का लेन-देन सुनिश्चित किया जाता था।
कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
- गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊँट, हाथी आदि पाले जाते थे।
- पशुओं का उपयोग कृषि कार्य, यातायात और दूध उत्पादन में होता था।
- बैल और ऊँट गाड़ियों के लिए उपयोगी माने जाते थे।
तालिका:
क्षेत्र | विवरण |
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कृषि | गेहूं, जौ, कपास, तिल, सिंचाई प्रणाली |
पशुपालन | गाय, भैंस, बकरी, ऊँट, बैल |
उद्योग | मिट्टी के बर्तन, आभूषण, मूर्तिकला |
व्यापार | स्थानीय और विदेशी (मेसोपोटामिया) |
विनिमय प्रणाली | वस्तु विनिमय (Barter System) |
हड़प्पा सभ्यता की सबसे रहस्यमयी विशेषताओं में से एक इसकी लिपि (Script) है। इस लिपि को आज तक पूरी तरह पढ़ा या समझा नहीं जा सका है। हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन में जो मुहरें, बर्तन, ताम्रपत्र और मोतियों पर चिन्ह मिले हैं, वे एक विशेष प्रकार की लेखन प्रणाली के प्रमाण हैं।
- हड़प्पा लिपि एक चित्रात्मक लिपि (Pictographic Script) मानी जाती है, जिसमें चिन्ह या चित्र किसी वस्तु, जीव-जंतु या विचार को व्यक्त करते हैं।
- इसमें लगभग 400 से 500 अलग-अलग चिह्नों (Symbols) के प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पा लिपि को सामान्यतः दायें से बायें (Right to Left) लिखा जाता था।
- कुछ स्थानों पर बायें से दायें लिखे जाने के भी प्रमाण मिलते हैं, जिससे यह लिपि बूस्ट्रोफेडन (Boustrophedon) शैली की मानी जाती है (एक पंक्ति दायें से बायें, दूसरी बायें से दायें)।
- हड़प्पा लिपि में छोटे-छोटे वाक्यांश या शब्द ही मिलते हैं।
- आमतौर पर 5 से 6 अक्षरों वाले शब्द, और कभी-कभी अधिकतम 26 अक्षर तक के लेख मिलते हैं।
- सबसे अधिक लेखन मुहरों (Seals) पर मिलता है, जिनका उपयोग व्यापार या पहचान के लिए होता था।
- हड़प्पा लिपि को आज तक कोई भी विशेषज्ञ या वैज्ञानिक पूर्ण रूप से पढ़ नहीं पाए हैं।
- कोई द्विभाषी अभिलेख (Bilingual Inscription) न होने के कारण इस लिपि को समझना और कठिन है।
- यह लिपि अचानक विलुप्त हो गई, जिससे इसका विकास या संक्रमण नहीं हो पाया।
- पशुपति मुहर (Pashupati Seal) – इस पर लिपि के साथ योग मुद्रा में बैठे व्यक्ति की आकृति है।
- यूनिकॉर्न मुहर (Unicorn Seal) – एक सींग वाले जानवर की आकृति के साथ लिपि लिखी हुई है।
- धातु की मूहरें, बर्तन, आभूषणों पर लिपि के प्रमाण भी मिले हैं।
- व्यापारिक वस्तुओं की पहचान।
- धार्मिक प्रतीकों और अनुष्ठानों का रिकॉर्ड।
- निजी पहचान के लिए (मुहरों के रूप में)।
- प्रशासनिक और आर्थिक कार्यों के लिए संकेत।
बिंदु | विवरण |
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ऐतिहासिक महत्व | यह भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन लिपियों में से एक है। |
सांस्कृतिक महत्व | इससे हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक, सामाजिक और व्यापारिक गतिविधियों का पता चलता है। |
रहस्यमय पहलू | इसकी अपठनीयता के कारण हड़प्पा सभ्यता के कई रहस्य आज भी अनसुलझे हैं। |
- कुछ विद्वान इसे द्रविड़ भाषा परिवार से जोड़ते हैं।
- कुछ इसे प्रोटो-वैदिक सभ्यता की लिपि मानते हैं।
- तो कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल प्रतीकात्मक थी और पूर्ण भाषा नहीं बन पाई।
हड़प्पा सभ्यता (2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व) के धार्मिक जीवन का वर्णन हमें मुख्य रूप से उत्खननों में मिली मूर्तियों, मुहरों, बर्तनों, समाधियों और अन्य कलात्मक साक्ष्यों से प्राप्त होता है। हड़प्पा के लोग प्रकृति पूजा, देवी-देवताओं की पूजा और तांत्रिक आस्थाओं में विश्वास रखते थे। हालांकि हड़प्पावासियों का कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं मिला है, लेकिन उनके धार्मिक विश्वासों की झलक उनके द्वारा छोड़े गए पुरावशेषों में स्पष्ट होती है।
- हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी (Mother Goddess) की पूजा करते थे, जिसे "प्रजनन और उर्वरता" की देवी माना जाता था।
- मिट्टी की बनी मातृदेवी की अनेक मूर्तियां खुदाई में मिली हैं, जिनमें एक स्त्री आकृति को बड़े स्तनों और श्रृंगार के साथ दिखाया गया है।
- मातृदेवी की पूजा से यह समझा जाता है कि वे प्रजनन शक्ति, कृषि की उर्वरता और समाज में स्त्रियों की शक्ति को महत्व देते थे।
- एक प्रसिद्ध मुहर में योग मुद्रा में बैठे एक व्यक्ति की आकृति है, जिसके सिर पर सींग लगे हुए हैं और चारों ओर पशु हैं। इसे पशुपति महादेव (Lord of Animals) के रूप में देखा जाता है।
- यह प्रमाण है कि हड़प्पा लोग किसी आदिशक्ति या शिव जैसे देवता की पूजा करते थे।
- पशुओं से घिरे होने के कारण यह भी माना जाता है कि वे पशुधन की रक्षा और समृद्धि के लिए पूजा करते थे।
- हड़प्पा के लोग प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा करते थे:
- वृक्ष पूजा: पीपल के पत्तों के चित्र खुदाई में मिले हैं, जिससे पीपल की पूजा का संकेत मिलता है।
- पशु पूजा: बैल, हाथी, गैंडा, बाघ, आदि पशुओं के चित्र मिलते हैं, जिन्हें पवित्र माना जाता था।
- जल पूजा: जल का महत्व उनके स्नानागार, कुओं और जलाशयों में दिखता है।
- सूर्य और अग्नि पूजा: अग्नि वेदी और दीपदान जैसे प्रमाण भी मिले हैं।
- खुदाई में मिले चित्र और मूहरों से प्रतीत होता है कि हड़प्पा लोग योग और ध्यान जैसी साधनाओं से जुड़े थे।
- विशेष मुद्रा में बैठे व्यक्ति की मूहर इस परंपरा की ओर इशारा करती है।
- हड़प्पा के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।
- कब्रों में मृतकों के साथ खाने-पीने की चीजें, आभूषण और उपयोगी वस्तुएं रखी जाती थीं।
- इससे लगता है कि वे मानते थे कि मृतक को परलोक में इन वस्तुओं की आवश्यकता होगी।
- स्वास्तिक, कमल, कांच की मणियां, त्रिशूल जैसे प्रतीकों का प्रयोग मिला है, जो धार्मिक और शुभ संकेत माने जाते थे।
- सील और मूहरों में भी गूढ़ धार्मिक संकेतों का उपयोग किया गया।
तालिका:
धार्मिक पहलू | विवरण |
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प्रमुख देवी | मातृदेवी (Mother Goddess) |
प्रमुख देवता | पशुपति महादेव (Lord of Animals) |
पूजा विधियां | मूर्ति पूजा, प्रकृति पूजा, योग साधना |
प्रतीक चिन्ह | स्वास्तिक, पीपल, पशु आकृतियां |
मृत्यु के बाद विश्वास | हां, कब्रों में वस्तुएं रखने की परंपरा |
- उर्वरता और प्रजनन की शक्ति की पूजा।
- शिव जैसी शक्ति का आदिकालीन रूप।
- योग और साधना का प्राचीन अभ्यास।
- पशु, वृक्ष, अग्नि, जल आदि प्राकृतिक तत्वों की पूजा।
- पुनर्जन्म और परलोक में विश्वास।
- बिना मंदिर के धर्म – कोई बड़ा धार्मिक स्थल नहीं मिला, पूजा घरों या खुले स्थानों में होती थी।
हड़प्पा सभ्यता, जो लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक फली-फूली, विश्व की प्राचीनतम और अत्यंत उन्नत सभ्यताओं में से एक थी। परंतु लगभग 1900 ईसा पूर्व के बाद इसका पतन शुरू हुआ, और धीरे-धीरे यह सभ्यता पूरी तरह लुप्त हो गई। आज भी इसके पतन के कारणों पर शोध चल रहे हैं, परंतु पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने इसके पतन के कई संभावित कारण बताए हैं।
- भयंकर बाढ़ें: माना जाता है कि सिंधु नदी में बार-बार बाढ़ आने से नगर जलमग्न हो गए। लगातार बाढ़ ने खेती और निवास को असंभव बना दिया।
- भूकंप: कुछ क्षेत्रों में धरती के स्तर में बदलाव और नदी मार्गों के परिवर्तन के प्रमाण मिलते हैं, जो भूकंप जैसी आपदाओं के कारण हो सकता है।
- सूखा: जलवायु में परिवर्तन के कारण लंबे समय तक बारिश कम हुई, जिससे सूखा पड़ा और कृषि व्यवस्था चरमरा गई।
- सरस्वती नदी (जो हड़प्पा सभ्यता की जीवनरेखा मानी जाती है) के सूखने या मार्ग बदलने के कारण जल संकट उत्पन्न हो गया।
- जल के बिना कृषि, पशुपालन और जीवन असंभव हो गया, जिससे लोग अन्य क्षेत्रों में पलायन करने लगे।
- अत्यधिक कृषि से भूमि की उर्वरता घट गई।
- मिट्टी की गुणवत्ता बिगड़ने से फसलें कम होने लगीं, और खाद्य संकट पैदा हुआ।
- जनसंख्या के हिसाब से खाद्य उत्पादन कम होने लगा।
- हड़प्पा सभ्यता का विदेशी व्यापार मुख्यतः मेसोपोटामिया, फारस और अफगानिस्तान से था।
- जब इन क्षेत्रों में राजनीतिक अस्थिरता आई, तो व्यापारिक मार्ग बाधित हुए।
- व्यापार ठप होने से आर्थिक संकट पैदा हुआ।
- कुछ विद्वान मानते हैं कि आर्यों के आक्रमण ने हड़प्पा सभ्यता को कमजोर किया।
- ऋग्वेद में "पुरों के विध्वंस" का उल्लेख मिलता है, जिसे हड़प्पा के नगरों के विनाश से जोड़ा जाता है।
- हालांकि इस सिद्धांत पर विवाद है और आधुनिक शोध इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं करता।
- जनसंख्या का अत्यधिक दबाव।
- प्रशासनिक व्यवस्था का कमजोर होना।
- समाज में वर्ग भेद और संघर्ष।
- भीड़भाड़ वाले नगरों में सफाई व्यवस्था के अभाव से बीमारियां फैल सकती थीं।
- यह भी संभावना है कि महामारी से बड़ी जनसंख्या खत्म हो गई हो।
तालिका:
कारण | विवरण |
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प्राकृतिक आपदाएं | बाढ़, भूकंप, सूखा |
नदी मार्ग परिवर्तन | सरस्वती नदी का सूखना |
कृषि संकट | भूमि की उर्वरता में कमी |
व्यापार पतन | बाहरी व्यापार मार्गों का टूटना |
आर्यों का आक्रमण | आक्रमण के प्रमाण, पर विवादास्पद |
सामाजिक अस्थिरता | प्रशासन और व्यवस्था में गिरावट |
महामारी | बीमारियों के फैलने की संभावना |
हड़प्पा सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन और उन्नत नगर सभ्यताओं में से एक थी। इसकी विशेषताएं जैसे – जल निकासी, योजनाबद्ध नगर, व्यापार व्यवस्था और कला इसे अद्वितीय बनाती हैं। इसके पतन के कारण आज भी शोध का विषय हैं, लेकिन हड़प्पा सभ्यता ने भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत को अमूल्य योगदान दिया।