उपभोक्ता व्यवहार के मुख्य टॉपिक्स का विस्तार से विवरण दिया गया है
उपभोक्ता व्यवहार से तात्पर्य उस प्रक्रिया, सोच, और आदतों से है, जिसके आधार पर उपभोक्ता (Customers) अपने आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को चुनते हैं, खरीदते हैं, उपयोग करते हैं और फिर उनका मूल्यांकन करते हैं। यह अध्ययन करता है कि ग्राहक किन कारणों से कोई उत्पाद खरीदते हैं, कब खरीदते हैं, कैसे खरीदते हैं और किस मात्रा में खरीदते हैं।
यह व्यवहार उपभोक्ता की आय, प्राथमिकताएं, मूल्य, विकल्प, सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों पर निर्भर करता है।
सरल शब्दों में:
उपभोक्ता व्यवहार यह बताता है कि लोग क्या, क्यों, कब और कैसे खरीदते हैं और उनके फैसलों पर कौन-कौन से कारक प्रभाव डालते हैं।
उदाहरण:
मान लीजिए, गर्मी के मौसम में एक व्यक्ति एयर कूलर खरीदने का सोचता है।
तो उसके दिमाग में कई बातें चलती हैं, जैसे:
इन सभी विचारों और फैसलों का मिलाजुला असर ही उपभोक्ता व्यवहार कहलाता है।
उपभोक्ता व्यवहार (Consumer Behavior) का अर्थ है – उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद, उपयोग (Use) और निपटान (Dispose) से जुड़ी गतिविधियों और निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन।
यह अध्ययन करता है कि उपभोक्ता:
👉 उपभोक्ता व्यवहार यह समझने में मदद करता है कि व्यक्ति, समूह या संगठन अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए किस प्रकार के उत्पाद या सेवाओं का चयन करते हैं और उनके निर्णय लेने की प्रक्रिया क्या होती है।
संक्षिप्त में:
जब कोई व्यक्ति अपनी जरूरतें या इच्छाएँ पूरी करने के लिए किसी वस्तु या सेवा को खरीदने, उपयोग करने और छोड़ने का निर्णय करता है, तो उसकी इस पूरी प्रक्रिया को उपभोक्ता व्यवहार कहा जाता है।
मान लीजिए, किसी व्यक्ति के जूते खराब हो गए हैं।
अब वह सोचता है:
👉 इन सभी सवालों का जवाब खोजते हुए वह जिस प्रक्रिया से गुजरता है, वही उपभोक्ता व्यवहार कहलाता है।
संक्षिप्त में:
उपभोक्ता व्यवहार का अर्थ है – उपभोक्ता की सोच, भावना, अनुभव और निर्णयों का अध्ययन, जो उसे किसी प्रोडक्ट या सेवा को खरीदने और उपयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।
उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किसी भी व्यवसाय, मार्केटिंग रणनीति और उत्पाद विकास के लिए बहुत आवश्यक होता है। इससे यह पता चलता है कि ग्राहक क्या चाहते हैं, कैसे सोचते हैं और उनके खरीदने के निर्णय पर कौन-कौन से कारक प्रभाव डालते हैं।
इसकी मदद से कंपनियाँ बेहतर उत्पाद बना सकती हैं और उपभोक्ताओं को संतुष्ट कर सकती हैं।
उपभोक्ता व्यवहार के महत्व (Key Importance of Consumer Behavior):
उदाहरण:
अगर एक कंपनी विंटर सीजन में हीटर बेचती है, तो उसे यह समझना जरूरी है कि:
इन सब जानकारियों के आधार पर कंपनी अपने प्रोडक्ट, दाम और प्रचार की योजना बनाती है।
उपभोक्ता व्यवहार (Consumer Behavior) का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि लोग क्यों, कैसे और कब कोई वस्तु या सेवा खरीदते हैं। इसके कुछ खास गुण होते हैं, जो इसे समझने में आसान बनाते हैं। आइए इन विशेषताओं को विस्तार से जानते हैं:
उपभोक्ता व्यवहार की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of Consumer Behavior):
उपभोक्ता का व्यवहार स्थिर (Fixed) नहीं होता। यह समय, ट्रेंड, फैशन, टेक्नोलॉजी, आय और जरूरत के हिसाब से बदलता रहता है।
👉 जैसे – ठंड में लोग हीटर खरीदते हैं, जबकि गर्मी में कूलर।
हर उपभोक्ता का व्यवहार अलग-अलग होता है, क्योंकि:
👉 जैसे – एक व्यक्ति को महंगे ब्रांड पसंद हैं, तो दूसरा सस्ता प्रोडक्ट ही खरीदना चाहता है।
उपभोक्ता के फैसले पर समाज, परिवार, दोस्त, विज्ञापन, सेलिब्रिटी और सोशल मीडिया का बड़ा असर होता है।
👉 जैसे – अगर कोई फिल्म स्टार किसी ब्रांड का प्रचार करता है तो लोग उसकी तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं।
उपभोक्ता के निर्णय में भावना (Emotion), प्रेरणा (Motivation), सोच (Thinking), धारणा (Perception) और सीख (Learning) का गहरा असर होता है।
👉 जैसे – किसी प्रोडक्ट के बारे में अच्छा अनुभव होने पर लोग बार-बार उसी ब्रांड को खरीदते हैं।
उपभोक्ता का व्यवहार हमेशा किसी खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए होता है, जैसे:
बाजार में नए-नए विकल्प आने, इनकम बढ़ने, फैशन बदलने और नई टेक्नोलॉजी के कारण उपभोक्ता का व्यवहार लगातार बदलता रहता है।
👉 जैसे – पहले लोग साधारण मोबाइल लेते थे, अब स्मार्टफोन का क्रेज है।
अधिकतर उपभोक्ता नई चीजें आजमाना पसंद करते हैं। वे नए प्रोडक्ट्स, नए ब्रांड्स और नई सुविधाओं में रुचि लेते हैं।
उपभोक्ता व्यवहार के सिद्धांत (Theories of Consumer Behavior) यह समझाने की कोशिश करते हैं कि उपभोक्ता किसी वस्तु या सेवा को खरीदने का निर्णय कैसे लेते हैं। इन सिद्धांतों के जरिए यह जाना जाता है कि उपभोक्ता किस प्रकार संतोष (Satisfaction) प्राप्त करने के लिए अपने सीमित संसाधनों (Income) का उपयोग करते हैं।
मुख्य रूप से उपभोक्ता व्यवहार के 4 प्रमुख सिद्धांत माने जाते हैं:
यह सबसे पुराना सिद्धांत है, जिसे मार्शल (Marshall) ने दिया था।
इस सिद्धांत के अनुसार, उपभोक्ता का उद्देश्य अपनी आय से अधिकतम संतोष (Maximum Satisfaction) प्राप्त करना होता है।
👉 जब तक किसी वस्तु से मिल रही संतुष्टि (Utility) कीमत के बराबर या उससे अधिक मिलती है, तब तक उपभोक्ता उसे खरीदता है।
मुख्य बातें:
इस सिद्धांत को J.R. Hicks और R.G.D. Allen ने विकसित किया।
यह सिद्धांत दिखाता है कि उपभोक्ता अलग-अलग वस्तुओं के संयोजन से एक जैसा संतोष प्राप्त कर सकता है।
उपभोक्ता उन वस्तुओं के संयोजन को चुनता है, जो उसकी आय में रहकर सबसे अधिक संतुष्टि दे सके।
मुख्य बातें:
यह सिद्धांत सिग्मंड फ्रायड (Sigmund Freud) द्वारा दिया गया था।
इसके अनुसार, उपभोक्ता का निर्णय केवल तर्क और आवश्यकता पर आधारित नहीं होता, बल्कि उसमें भावनाएँ, इच्छाएँ और मनोवैज्ञानिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मुख्य बातें:
यह सिद्धांत बताता है कि उपभोक्ता का व्यवहार समाज, परिवार, संस्कृति, परंपराओं, दोस्तों और सामाजिक समूहों से प्रभावित होता है।
लोग अक्सर अपने सामाजिक दर्जे (Social Status) और मान-सम्मान के लिए भी उत्पादों का चुनाव करते हैं।
मुख्य बातें:
मूल्य उपयोगिता सिद्धांत यह मानता है कि उपभोक्ता वस्तुओं के उपभोग से मिलने वाले संतोष (Utility) को संख्या (Cardinal Numbers) में मापा जा सकता है, जैसे 10 यूटिल्स, 20 यूटिल्स आदि।
👉 इस सिद्धांत का उद्देश्य अधिकतम संतोष (Maximum Satisfaction) प्राप्त करना है।
जब हम किसी वस्तु की लगातार खपत करते हैं, तो हर अगली इकाई से मिलने वाला संतोष (Marginal Utility) घटता जाता है।
“Other things being constant, as the quantity consumed of a commodity increases, the marginal utility derived from each additional unit decreases.”
अगर कोई व्यक्ति भूखा है और समोसे खा रहा है –
समोसे की संख्या | सीमांत उपयोगिता (Utils) |
---|---|
1 | 20 |
2 | 15 |
3 | 10 |
4 | 5 |
5 | 0 |
6 | -5 (नकारात्मक) |
👉 ग्राफ में देख सकते हैं कि जैसे-जैसे समोसे की संख्या बढ़ती है, सीमांत उपयोगिता घटती जाती है और एक समय के बाद नकारात्मक हो जाती है।
यह नियम कहता है कि उपभोक्ता अपनी आय का खर्च इस तरह करता है कि हर वस्तु से मिलने वाली अंतिम संतोष (Marginal Utility) और उसके मूल्य का अनुपात समान हो जाए।
MUx / Px = MUy / Py = MUz / Pz
जहाँ:
MUx = वस्तु X की सीमांत उपयोगिता
Px = वस्तु X का मूल्य
MUy = वस्तु Y की सीमांत उपयोगिता
Py = वस्तु Y का मूल्य
मान लीजिए किसी के पास ₹100 हैं और वो बिस्किट और जूस खरीदता है।
वस्तु | सीमांत उपयोगिता (MU) | मूल्य (P) | MU/P |
---|---|---|---|
बिस्किट | 20 | ₹10 | 2 |
जूस | 20 | ₹10 | 2 |
👉 जब MU/P बराबर हो जाते हैं (2 = 2), तब उपभोक्ता का संतोष अधिकतम होता है।
सिद्धांत | अर्थ | उद्देश्य |
---|---|---|
घटती सीमांत उपयोगिता | लगातार खपत से संतोष घटता है | एक ही वस्तु में सीमित आनंद |
समसीमांत उपयोगिता | सभी वस्तुओं में अंतिम संतोष बराबर करना | संतुलित खर्च से अधिकतम संतोष |
क्रम उपयोगिता सिद्धांत (Ordinal Utility Approach) के अनुसार, उपभोक्ता संतोष (Utility) को मापा नहीं जा सकता, लेकिन उसकी तुलना (Ranking) की जा सकती है।
👉 यानी उपभोक्ता यह बता सकता है कि कौन-सा वस्तु संयोजन उसे ज्यादा पसंद है, पर वह यह नहीं बता सकता कि कितना ज्यादा संतोष मिल रहा है।
इस सिद्धांत को J.R. Hicks और R.G.D. Allen ने विकसित किया था।
मुख्य विशेषताएँ:
उदासीनता वक्र (Indifference Curve) उन सभी वस्तु संयोजनों का ग्राफिक प्रतिनिधित्व है, जिनसे उपभोक्ता को समान संतोष प्राप्त होता है।
मान लीजिए उपभोक्ता के पास दो वस्तुएं हैं – सेब (Apples) और केले (Bananas)।
विभिन्न संयोजन इस प्रकार हो सकते हैं:
इन सभी संयोजनों से उपभोक्ता को समान संतोष मिलता है, तो इनका ग्राफ एक उदासीनता वक्र बनाएगा।
👉 वक्र नीचे की ओर झुका होता है और वक्र के ऊपर की ओर बढ़ते संयोजन अधिक संतोष दर्शाते हैं।
बजट रेखा उपभोक्ता की कुल आय और वस्तुओं के मूल्य के आधार पर वह सीमा दिखाती है, जितने संयोजन वह खरीद सकता है।
Px × X + Py × Y = M
जहाँ:
अगर कुल आय ₹100 है, सेब का दाम ₹10 और केले का ₹5 है, तो बजट रेखा दिखाएगी कि उपभोक्ता कितने सेब और केले खरीद सकता है।
👉 बजट रेखा के अंदर वाले संयोजन संभव हैं, रेखा पर अधिकतम सीमा होती है।
उपभोक्ता संतुलन वह स्थिति है, जब उपभोक्ता अपनी आय से अधिकतम संतोष प्राप्त कर लेता है और अपनी बजट रेखा के भीतर रहते हुए सबसे बेहतर संयोजन चुनता है।
👉 बिंदु E पर उपभोक्ता अपनी अधिकतम संतोष की स्थिति में है।
विषय | अर्थ | उद्देश्य |
---|---|---|
क्रम उपयोगिता | उपयोगिता की तुलना करना | अधिकतम संतोष के लिए चयन |
उदासीनता वक्र | समान संतोष वाले संयोजन | पसंद का ग्राफ |
बजट रेखा | खर्च की सीमा | आय के अनुसार संयोजन |
उपभोक्ता संतुलन | अधिकतम संतोष बिंदु | आदर्श खरीद संयोजन |
उपभोक्ता व्यवहार यह तय करता है कि उपभोक्ता क्या, क्यों, कब, कहाँ और कैसे खरीदता है। इसके पीछे कई कारक जिम्मेदार होते हैं जो उपभोक्ता के निर्णय को प्रभावित करते हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं:
उपभोक्ता की आय का स्तर यह तय करता है कि वह क्या और कितनी मात्रा में वस्तुएँ खरीद सकता है।
👉 अधिक आय होने पर उपभोक्ता महंगी और गुणवत्ता वाली वस्तुएं खरीदता है।
👉 कम आय होने पर उपभोक्ता सस्ती और आवश्यक वस्तुओं तक सीमित रहता है।
उदाहरण:
अगर किसी की आय ₹50,000 प्रति माह है, तो वह ब्रांडेड कपड़े, महंगे मोबाइल, और कार जैसी वस्तुएं खरीद सकता है।
वहीं ₹10,000 कमाने वाला व्यक्ति सिर्फ आवश्यक वस्तुओं पर ध्यान देगा।
वस्तुओं के मूल्य में बदलाव होने पर उपभोक्ता की मांग बदलती है।
👉 जब वस्तु सस्ती होती है, तो उपभोक्ता अधिक खरीदता है।
👉 जब वस्तु महंगी होती है, तो उसकी खपत घट जाती है।
उदाहरण:
अगर दूध के दाम ₹50 से घटकर ₹40 हो जाएँ, तो लोग ज्यादा दूध खरीदेंगे।
हर व्यक्ति की पसंद-नापसंद अलग होती है, जो उसके सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करती हैं।
👉 प्राथमिकताओं के कारण उपभोक्ता एक वस्तु को दूसरी पर वरीयता देता है।
उदाहरण:
कोई व्यक्ति सिर्फ शाकाहारी भोजन पसंद करता है, तो वह मांसाहारी भोजन नहीं खरीदेगा चाहे वह सस्ता हो।
अर्थ:
ऐसी वस्तुएँ जो एक-दूसरे का स्थान ले सकती हैं। यदि एक वस्तु महंगी होती है, तो उपभोक्ता उसका विकल्प चुनता है।
उदाहरण:
अगर चाय महंगी हो जाए तो लोग कॉफी लेना शुरू कर सकते हैं।
अर्थ:
ऐसी वस्तुएँ जिन्हें एक साथ इस्तेमाल किया जाता है। एक के मूल्य में परिवर्तन से दूसरी की मांग पर असर पड़ता है।
उदाहरण:
पेट्रोल के महंगे होने पर कार की मांग घट सकती है।
सामाजिक परिवेश और संस्कृति भी उपभोक्ता के व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालती है।
👉 धर्म, रीति-रिवाज, पारिवारिक परंपराएँ, समाज का स्तर आदि उपभोक्ता की पसंद को तय करते हैं।
उदाहरण:
निर्धारक कारक | प्रभाव |
---|---|
आय | आय बढ़ने पर मांग बढ़ती है |
मूल्य | मूल्य घटने पर खपत बढ़ती है |
प्राथमिकताएँ | पसंद-नापसंद के अनुसार खरीदारी |
विकल्प | महंगी वस्तु के विकल्प अपनाना |
पूरक | एक के दाम बढ़े, तो दूसरे की मांग घटे |
सामाजिक/सांस्कृतिक | समाज व संस्कृति अनुसार खरीदारी |
मांग का नियम (Law of Demand):
मांग का नियम कहता है कि,
"अन्य परिस्थितियाँ समान रहने पर, किसी वस्तु की कीमत घटने पर उसकी मांग बढ़ती है और कीमत बढ़ने पर मांग घटती है।"
👉 मांग का नियम उपभोक्ता व्यवहार से सीधा जुड़ा है, क्योंकि:
उपभोक्ता का व्यवहार समय, अनुभव, पसंद और समाज के प्रभाव से बदलता रहता है, जिससे मांग में भी परिवर्तन होता है।
व्यवहार | प्रभाव |
---|---|
आदतों में बदलाव | जैसे हेल्दी फूड का ट्रेंड बढ़ने पर जंक फूड की मांग घट सकती है। |
फैशन/ट्रेंड | नए फैशन आने पर पुरानी वस्तुओं की मांग कम हो जाती है। |
विज्ञापन का प्रभाव | आकर्षक विज्ञापन देखकर मांग में वृद्धि होती है। |
सामाजिक स्थिति | उच्च वर्ग के लोग महंगी वस्तुएँ अधिक मांगते हैं। |
आय का स्तर | आय बढ़ने पर महंगे ब्रांड्स की मांग बढ़ती है। |
👉 उदाहरण:
उपभोक्ता की भविष्य की अपेक्षाएँ (Expectations) भी मांग पर गहरा असर डालती हैं।
अगर उपभोक्ता को किसी वस्तु के मूल्य, उपलब्धता या आय में बदलाव की उम्मीद होती है तो उसका मौजूदा खरीद व्यवहार बदल जाता है।
अपेक्षा | मांग पर प्रभाव |
---|---|
मूल्य बढ़ने की आशंका | अभी अधिक मात्रा में खरीद लेता है (Stock करना)। |
मूल्य घटने की उम्मीद | अभी खरीदने से बचता है, बाद में सस्ती कीमत पर खरीदेगा। |
आय बढ़ने की उम्मीद | महंगी वस्तुएँ खरीदने का मन बनाता है। |
वस्तु की कमी की आशंका | अधिक स्टॉक कर लेता है। |
👉 उदाहरण:
विषय | विवरण |
---|---|
मांग का नियम | कीमत घटने पर मांग बढ़ती है, बढ़ने पर घटती है। |
व्यवहार में बदलाव | ट्रेंड, आदत, समाज के कारण मांग बदलती है। |
अपेक्षाओं का प्रभाव | भविष्य की आशंका के कारण वर्तमान मांग प्रभावित होती है। |
अर्थ: उपभोक्ता अधिशेष (Consumer Surplus) वह अतिरिक्त लाभ है जो उपभोक्ता को तब मिलता है जब वह किसी वस्तु के लिए जितनी कीमत देने को तैयार था, उससे कम कीमत में वस्तु खरीद लेता है।
👉 सरल शब्दों में
“भुगतान करने की इच्छा और वास्तविक भुगतान के बीच का अंतर उपभोक्ता अधिशेष है।”
अल्फ्रेड मार्शल के अनुसार,
“उपभोक्ता अधिशेष वह अतिरिक्त संतोष है, जो उपभोक्ता को वस्तु की कीमत चुकाने के बाद भी प्राप्त होता है।”
मान लीजिए कोई व्यक्ति मोबाइल खरीदने के लिए ₹30,000 खर्च करने को तैयार है, लेकिन उसे वही मोबाइल ₹25,000 में मिल जाता है।
तो,
👉 उपभोक्ता अधिशेष = ₹30,000 – ₹25,000 = ₹5,000
यह ₹5,000 का लाभ ही उपभोक्ता अधिशेष है।
उपभोक्ता अधिशेष को निम्न सूत्र से मापा जाता है:
Consumer Surplus (CS) = Maximum Price – Actual Price
या,
उपभोक्ता अधिशेष = उपभोक्ता की अधिकतम भुगतान करने की इच्छा – वस्तु की वास्तविक कीमत
ग्राफ:
यदि मूल्य ₹P है और मात्रा Q खरीदी जा रही है, तो माँग रेखा के ऊपर और मूल्य रेखा के नीचे का त्रिकोण उपभोक्ता अधिशेष दर्शाता है।
महत्व | विवरण |
---|---|
1️⃣ आर्थिक लाभ | उपभोक्ता को वस्तुओं पर अतिरिक्त लाभ मिलता है। |
2️⃣ कल्याण माप | यह समाज के कल्याण और संतोष के स्तर को मापने में सहायक है। |
3️⃣ नीति निर्माण | सरकारें कर नीति, सब्सिडी, और मूल्य नियंत्रण जैसे निर्णयों में इसका उपयोग करती हैं। |
4️⃣ मूल्य में गिरावट का लाभ | जब वस्तुओं के दाम घटते हैं तो उपभोक्ता अधिशेष बढ़ता है। |
5️⃣ व्यापार नीति | व्यापारी मूल्य निर्धारण में उपभोक्ता अधिशेष का विश्लेषण करते हैं। |
बिंदु | विवरण |
---|---|
अर्थ | उपभोक्ता का अतिरिक्त लाभ |
सूत्र | CS = Maximum Price – Actual Price |
महत्व | आर्थिक लाभ, नीति निर्माण, कल्याण मापन आदि |
उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किसी भी व्यवसाय, विपणन (Marketing) और अर्थशास्त्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि उपभोक्ता क्या, क्यों, कब, कहाँ और कैसे खरीदते हैं।
उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन से व्यवसायों को सही निर्णय लेने में मदद मिलती है जैसे:
यदि किसी क्षेत्र में लोग हेल्दी फूड पसंद कर रहे हैं, तो वहाँ जंक फूड की जगह हेल्दी प्रोडक्ट्स लांच करना अधिक फायदेमंद होगा।
उपभोक्ता के स्वाद, प्राथमिकताओं, आयु, आदतों आदि को समझकर प्रभावी मार्केटिंग योजना बनाई जा सकती है, जैसे:
त्योहारी सीजन में उपभोक्ताओं के व्यवहार को समझकर विशेष छूट और ऑफर देकर बिक्री बढ़ाई जाती है।
उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में किस वस्तु की मांग बढ़ेगी या घटेगी। इससे:
गर्मी के मौसम में कूलर, आइसक्रीम, और कोल्ड ड्रिंक की मांग बढ़ने का पूर्वानुमान लगाया जाता है और उसी हिसाब से स्टॉक बढ़ाया जाता है।
बिंदु | महत्व |
---|---|
व्यापारिक निर्णय | सही उत्पाद, मूल्य और स्थान तय करने में सहायक। |
विपणन रणनीति | ग्राहकों की पसंद के अनुसार मार्केटिंग योजना बनाना। |
मांग पूर्वानुमान | भविष्य की मांग का अनुमान लगाना और तैयारी करना। |