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महात्मा गांधी और चम्पारण सत्याग्रह: तिनकठिया पद्धति का अंत

Shilu Sinha
Shilu Sinha  @shilusinha
Created At - 2024-08-05
Last Updated - 2024-08-28

Table of Contents

  • चम्पारण आन्दोलन

चम्पारण आन्दोलन

महात्मा गांधी ने भारत में अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत चम्पारण सत्याग्रह से की थी, जो उत्तर बिहार के चम्पारण क्षेत्र में स्थित था। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से नील की खेती होती थी। 19वीं सदी के प्रारम्भ में, यूरोपीय बगान मालिकों ने चम्पारण के किसानों के साथ एक अनुबंध किया था, जिसे 'तिनकठिया' पद्धति के नाम से जाना जाता था। इस अनुबंध के अनुसार, किसानों को अपनी जमीन के 3/20वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था।

इस पद्धति से किसान असंतुष्ट थे और इससे मुक्त होना चाहते थे। 1917 में, चम्पारण के किसान राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर, महात्मा गांधी ने चम्पारण का दौरा किया। वहाँ पहुँचकर, उन्होंने किसानों की समस्याओं को सुना और उनके आरोपों की जांच की। गांधीजी ने पाया कि किसानों के साथ अनुचित व्यवहार हो रहा था और उन्हें अत्यधिक शोषण का सामना करना पड़ रहा था।

महात्मा गांधी के प्रयासों से सरकार ने चम्पारण के किसानों की स्थिति की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त किया। इस आयोग की रिपोर्ट और गांधीजी की अथक कोशिशों के फलस्वरूप, अंततः तिनकठिया पद्धति को समाप्त कर दिया गया। यह गांधीजी की पहली बड़ी राजनीतिक सफलता थी और इसके परिणामस्वरूप उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चम्पारण सत्याग्रह ने न केवल किसानों को उनके अधिकार दिलाए बल्कि पूरे देश में अहिंसात्मक संघर्ष की एक मिसाल भी कायम की।

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