भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। ये कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए हैं कि सभी लोगों को पर्याप्त, पौष्टिक और सुरक्षित खाद्य मिल सके। यहां कुछ प्रमुख सरकारी कदमों का विवरण दिया गया है:
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उद्देश्य सभी नागरिकों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के तहत:
सब्सिडी वाला खाद्यान्न: 75% ग्रामीण और 50% शहरी जनसंख्या को सब्सिडी वाले दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है।
मुफ्त अनाज वितरण: कुछ विशेष समूहों को मुफ्त अनाज भी प्रदान किया जाता है।
PDS के माध्यम से गरीब और वंचित वर्गों को रियायती दरों पर अनाज (चावल, गेहूं, चीनी) उपलब्ध कराया जाता है। यह प्रणाली गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह योजना स्कूल जाने वाले बच्चों को पोषक भोजन प्रदान करती है। इसका उद्देश्य:
पोषण सुधार: बच्चों के पोषण स्तर में सुधार करना।
स्कूल नामांकन: बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करना।
भूखमरी कम करना: बच्चों की भूख को कम करना।
यह योजना सबसे गरीब परिवारों को लक्षित करती है और उन्हें बहुत ही कम कीमत पर खाद्यान्न उपलब्ध कराती है। इसका उद्देश्य गरीबों की खाद्य सुरक्षा में सुधार करना है।
किसानों को प्रोत्साहित करने और कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं, जैसे:
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): फसल बीमा प्रदान करना।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): सिंचाई सुविधाएं बढ़ाना।
महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जिनमें:
आंगनवाड़ी कार्यक्रम: गर्भवती महिलाओं, धात्री माताओं और छोटे बच्चों को पोषणयुक्त आहार प्रदान करना।
सक्षम योजना: कुपोषण के खिलाफ लड़ाई के लिए।
पोषण अभियान का उद्देश्य महिलाओं, बच्चों और किशोरियों के पोषण स्तर में सुधार करना है। इसके तहत:
पोषण सेवाएं: महिलाओं और बच्चों को पोषण सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
स्वास्थ्य जागरूकता: पोषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना।
राशन कार्ड वितरण: राशन कार्ड के माध्यम से लोगों को खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
खाद्य भंडारण: खाद्यान्न का सुरक्षित भंडारण सुनिश्चित करना।
सामुदायिक भोजन: सामुदायिक रसोईयों के माध्यम से गरीब और बेघर लोगों को भोजन प्रदान करना।
इन सभी कदमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत में हर व्यक्ति को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन मिल सके। सरकार इन योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाने का निरंतर प्रयास कर रही है।
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भारत सरकार की खाद्य नीति (Food Policy of Indian Government)
सरकार ने देश में खाद्य समस्या के समाधान के लिए तीन प्रकार के उपाय किये :
सरकार ने देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए तीन प्रकार के उपाय किये :
सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए निम्नलिखित तकनीकी उपाय किए हैं:
सिंचाई की सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कई बड़े और छोटे सिंचाई परियोजनाएं शुरू की गईं। नई नहरों, जलाशयों, और तालाबों का निर्माण किया गया, जिससे खेती के लिए पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
सरकार ने उच्च उत्पादन वाले बीजों को किसानों तक पहुंचाने की व्यवस्था की। इसके साथ ही, उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाया गया ताकि फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार हो सके।
कृषि में मशीनरी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकार ने कई प्रकार की योजनाएं और सब्सिडी उपलब्ध कराई। ट्रैक्टर, थ्रेशर, और हार्वेस्टर जैसी मशीनों के उपयोग से खेती में दक्षता बढ़ी और उत्पादन में वृद्धि हुई।
कृषि के विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की गईं, जैसे हरित क्रांति, जिससे उत्पादन में व्यापक वृद्धि हुई। इसके तहत नई तकनीकों, उन्नत बीजों, और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ाया गया।
किसानों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए कृषि ऋण संस्थानों की स्थापना की गई। इसके साथ ही, बीमा योजनाओं के माध्यम से किसानों की फसलों को सुरक्षा प्रदान की गई।
भारत सरकार ने खाद्य समस्या को कम करने और कृषि विकास को प्रोत्साहित करने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रम चलाया। इन सुधारों का उद्देश्य भूमि का समान वितरण सुनिश्चित करना और किसानों की स्थिति में सुधार लाना था:
सरकार ने सभी राज्यों में मध्यस्थों को समाप्त करने के लिए कानून बनाए। इसका उद्देश्य यह था कि जमीन सीधा किसानों के पास हो और वे अपनी जमीन पर स्वतंत्र रूप से खेती कर सकें।
विभिन्न राज्यों में जमीन की जोत की एक उच्चतम सीमा तय की गई, ताकि बड़ी जमीनों का छोटे-छोटे टुकड़ों में वितरण किया जा सके और अधिकतम किसानों को जमीन मिल सके।
किसानों से लगान वसूलने के नियमों को नियमित किया गया। इससे किसानों पर आर्थिक बोझ कम हुआ और वे अपनी जमीन पर बेहतर तरीके से खेती कर सके।
जमींदारों और काश्तकारों से बेगारी को गैर-कानूनी घोषित किया गया, जिससे किसानों को मजबूरी में मुफ्त काम करने की जरूरत नहीं रही।
हालांकि, भूमि सुधारों को लागू करने में कई कठिनाइयाँ आई और उनके दोषपूर्ण कार्यान्वयन के कारण ये सुधार अपेक्षित प्रभाव नहीं डाल सके।
सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लिए किसानों को उनकी फसलों के उचित मूल्य दिलाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए:
1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग की स्थापना की गई। इस आयोग का काम विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और वसूली कीमतों की घोषणा करना है। MSP का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य मिले, जिससे वे आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करें।
कई फसलों के लिए समर्थन मूल्य निर्धारित किए गए, जिससे किसानों को उनकी उपज के लिए न्यूनतम कीमत मिल सके। यह कीमत कृषि लागत और उत्पादन खर्च के आधार पर तय की जाती है, जिससे किसानों को प्रोत्साहन मिलता है।
सरकार द्वारा किसानों से सीधे अनाज की खरीद की व्यवस्था की गई, जिससे बाजार में उचित मूल्य नहीं मिलने पर भी किसानों को उनकी फसलों का वाजिब मूल्य मिल सके।
सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को मजबूत किया, जिसके माध्यम से गरीब और वंचित वर्गों को रियायती दरों पर अनाज उपलब्ध कराया जाता है।
मध्याह्न भोजन योजना और आंगनवाड़ी कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों और महिलाओं को पोषक आहार प्रदान किया जाता है।
मनरेगा जैसी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर बढ़ाए गए, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
इन सभी प्रयासों के माध्यम से सरकार ने खाद्य समस्या को सुलझाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इन उपायों ने न केवल खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि की है, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार लाया है।
भारत सरकार ने खाद्य समस्या के समाधान के लिए खाद्यान्नों के वितरण में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किए हैं। इन उपायों का उद्देश्य खाद्यान्नों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना, उचित मूल्य पर वितरण करना, और बाजार की अनियमितताओं को नियंत्रित करना है। निम्नलिखित प्रमुख वितरण उपायों को सरकार ने अपनाया है:
खाद्य क्षेत्रों की व्यवस्था का उद्देश्य खाद्यान्नों के मूल्य में स्थिरता और उनका न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करना है। इसके अंतर्गत:
द्वितीय विश्व युद्ध के समय शुरुआत: खाद्य क्षेत्रों की व्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुई थी।
1964 में खाद्य संकट के समय: देश को आठ गेहूँ क्षेत्रों में विभाजित किया गया और दक्षिण भारत के लिए चावल क्षेत्र भी बनाया गया। हालांकि, चावल क्षेत्र का प्रयास असफल रहा।
राज्य-स्तरीय खाद्य क्षेत्र: प्रत्येक राज्य को अलग-अलग खाद्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया, ताकि जहां पर्याप्त उत्पादन है, वहां से अनाज को उन राज्यों में भेजा जा सके, जहां उत्पादन कम है।
मानसून पर निर्भरता के कारण भारत में कृषि उत्पादन अस्थिर रहता है। इस अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए:
प्रतिरोधक भण्डार (Buffer Stocks): अधिशेष उत्पादन वाले वर्षों में खाद्यान्नों का भंडारण किया जाता है, ताकि कमी के समय उनका उपयोग किया जा सके।
भारतीय खाद्य निगम (FCI): जनवरी 1965 में भारतीय खाद्य निगम की स्थापना की गई, जिसका मुख्य कार्य खाद्यान्नों की खरीददारी, भंडारण, संरक्षण और वितरण करना है। इससे खाद्यान्नों की आपूर्ति को स्थिर और नियमित बनाया जा सकता है।
1972-73 में सरकार ने चावल और गेहूँ के होलसेल व्यापार को राष्ट्रीयकृत करने का प्रयास किया, लेकिन:
होलसेल व्यापारिकों का विरोध: इस निर्णय का विरोध होलसेल व्यापारिकों द्वारा किया गया।
प्रशासनिक कठिनाइयाँ: प्रशासनिक व्यवस्था की असमर्थता और सरकारी टकराव के कारण यह योजना सफल नहीं हो सकी।
अंतिम निरसन: 28 मार्च, 1974 को इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
खाद्यान्नों की वसूली और वितरण में सरकार ने निम्नलिखित उपाय किए:
आंशिक वसूली नीति: बाजार की अनियमितताओं को नियंत्रित करने के लिए आंशिक वसूली की नीति अपनाई गई।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): वसूली के द्वारा प्राप्त खाद्यान्नों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से उचित मूल्य पर दुकानों और राशन की दुकानों के माध्यम से बेचा जाता है। PDS का उद्देश्य गरीब और वंचित वर्गों को सस्ते दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है।
सरकार ने खाद्य नीति के तहत प्रमुख उत्पादक राज्यों के थोक व्यापारियों से खाद्यान्न खरीदने की नीति बनाई:
50% खरीद: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के थोक व्यापारियों और सहकारी समितियों से कुल खरीद का 50% हिस्सा उगाही करने की योजना बनाई गई।
असफलता: भ्रष्ट कर्मचारियों की सहायता से थोक व्यापारियों ने इस नीति को सफल नहीं होने दिया।
खाद्यान्नों की तात्कालिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकार ने विभिन्न देशों से आयात किया:
पी. एल. 480 समझौता: अप्रैल 1956 में भारत सरकार ने अमेरिका के साथ पी. एल. 480 समझौता किया, जिसके तहत 31 लाख टन गेहूँ और 1.9 लाख टन चावल का आयात हुआ।
आयात की आवश्यकता: स्वतंत्रता के बाद के केवल 15 वर्षों को छोड़कर, भारत को हर वर्ष खाद्यान्नों का आयात करना पड़ा।
इन सभी उपायों के माध्यम से भारत सरकार ने खाद्य समस्या को सुलझाने का प्रयास किया है। खाद्यान्नों के वितरण में सुधार, भंडारण की क्षमता बढ़ाने, और अंतरराष्ट्रीय आयात के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं। इन प्रयासों ने न केवल खाद्यान्न उत्पादन को स्थिर किया है, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत बनाया है।