Or, दहेज प्रथा क्या ? इसके दुष्परिणामों या दोषों का वर्णन करें।
Or, दहेज प्रथा से आप क्या समझते हैं ? समाज एवं व्यक्ति पर इसके प्रभावों की व्याख्या करें।
Or, भारत में दहेजप्रथा पर एक निबंध लिखें।
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आधुनिक हिन्दू समाज में विवाह से संबंधित सबसे कठिन और गंभीर समस्या वरमूल्य अर्थात् दहेज की समस्या है। इस समस्या को समाप्त करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास किए गए हैं, लेकिन अब तक इन्हें विशेष सफलता नहीं मिली है। आइए, विस्तार से समझते हैं कि दहेज क्या है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।
दहेज वह धन, संपत्ति, या मूल्यवान वस्तुएं हैं जो विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दी जाती हैं। यह प्रथा समाज में विवाह के लिए एक शर्त के रूप में देखी जाती है, जिसमें कन्या पक्ष पर वर पक्ष को धन और अन्य उपहार देने का दबाव होता है। दहेज की यह परंपरा विवाह को एक आर्थिक लेन-देन बना देती है, जिससे कई सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याएं उत्पन्न होती हैं। दहेज का सबसे समस्यात्मक रूप वह है जब इसे अनिवार्य रूप से देना पड़ता है, जिससे कन्या और उसके परिवार पर मानसिक, आर्थिक और शारीरिक अत्याचार होते हैं।
वरमूल्य वह धनराशि या संपत्ति होती है जो विवाह के समय वर (दूल्हा) की योग्यता, प्रतिष्ठा, और गुणों के आधार पर कन्या पक्ष (दुल्हन के परिवार) द्वारा वर पक्ष को दी जाती है। यह सामाजिक और आर्थिक मानदंडों पर आधारित होती है और इसमें परिवार की सामाजिक स्थिति, वर की शिक्षा, रोजगार, और भविष्य की संभावनाएँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। वरमूल्य का निर्धारण करने में निम्नलिखित तत्वों का ध्यान रखा जाता है:
I. शिक्षा और योग्यता: वर की शैक्षिक पृष्ठभूमि और पेशेवर योग्यताएँ।
II. आर्थिक स्थिति: वर और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति और संपत्ति।
III. पेशा: वर का पेशा और उसमें उसकी प्रतिष्ठा।
IV. सामाजिक प्रतिष्ठा: वर और उसके परिवार की समाज में प्रतिष्ठा और मान-सम्मान।
वरमूल्य की यह परिभाषा दर्शाती है कि यह केवल एक वित्तीय लेन-देन नहीं है, बल्कि सामाजिक मानदंडों और पारिवारिक प्रतिष्ठा का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
दहेज की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ और उनकी सीमाएँ निम्नलिखित हैं:
"साधारणतया दहेज वह संपत्ति है जो एक पुरुष विवाह करने पर अपनी पत्नी या उसके परिवार से पाता है।"
यह परिभाषा ठीक है, लेकिन दहेज की समस्या को स्पष्ट नहीं करती। समस्या यह है कि पत्नी या उसका परिवार स्वेच्छा से संपत्ति नहीं देता, बल्कि उन्हें मजबूरन देना पड़ता है।
"दहेज वह धन, संपत्ति है जो विवाह में एक स्त्री अपने पति के लिए लाती है।"
यह परिभाषा भी ठीक है, लेकिन यह भी दहेज की समस्या का पूरा चित्रण नहीं करती। यहाँ भी वही बात है कि स्त्री और उसका परिवार मजबूरन यह संपत्ति देता है।
"दहेज वह संपत्ति है जो एक स्त्री अपने साथ लाती है अथवा जो उसे विवाह के समय दी जाती है।"
यह परिभाषा भी पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि दहेज का असली मतलब यह है कि यह संपत्ति वर या उसके परिवार को दी जाती है, न कि स्त्री को।
चार्ल्स विनिक के अनुसार, "दहेज वे बहुमूल्य वस्तुएँ हैं जो विवाह में किसी भी पक्ष के संबंधी देते हैं।" यह परिभाषा सही नहीं है क्योंकि दहेज वह सम्पत्ति है जो कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दी जाती है, न कि वर पक्ष से कन्या पक्ष को दी जाने वाली वस्तुएँ।
दहेज प्रथा के दोष आज इतने स्पष्ट हैं कि दहेज लेने वाले भी उनसे इनकार नहीं कर सकते। इसलिए, यहाँ पर इन दोषों का संक्षिप्त वर्णन ही पर्याप्त होगा। मुख्य दोष निम्नलिखित हैं:
पहले, दहेज की प्रथा का सबसे भयानक परिणाम नवजात कन्याओं की हत्या के रूप में दिखता था।
आजकल कन्याओं की हत्या कम हो गई है, लेकिन उनका भारी तिरस्कार होता है। कन्या के जन्म की खबर सुनते ही घरवालों के चेहरे लटक जाते हैं और उन्हें 'डिग्री' कहकर ताना मारा जाता है।
दहेज की चिंता और अपमान से मजबूर होकर कई युवतियाँ आत्महत्या कर लेती हैं। इस प्रकार के समाचार अक्सर सुनाई देते हैं।
दहेज की प्रथा के कारण गरीब माता-पिता अपनी बेटी का विवाह समय पर नहीं कर पाते, जिससे कई लड़कियाँ जीवनभर कुंवारी रह जाती हैं।
दहेज की प्रथा के कारण धनी परिवार की कम सुंदर कन्या को भी अच्छा वर मिल जाता है, जबकि गरीब परिवार की सुंदर और सुसंस्कृत कन्याएँ बूढ़े, कुरूप या अपढ़ व्यक्तियों से ब्याह दी जाती हैं।
दहेज की वजह से कई बार तय हुए विवाह टूट जाते हैं। कभी-कभी दूल्हा मंडप से उठ जाता है या बारात दरवाजे से लौट जाती है।
दहेज की प्रथा बाल विवाहों को बढ़ावा देती है। अच्छा वर मिल जाने पर माता-पिता जल्दी से जल्दी शादी कर देना चाहते हैं।
कई पिता अपनी बेटियों के विवाह के लिए दहेज जुटाने के चक्कर में जालसाजी, रिश्वतखोरी और चोरी जैसे अपराधों में लिप्त हो जाते हैं।
जिन परिवारों में कई बेटियाँ होती हैं, वे दहेज की वजह से आर्थिक तंगी में फंस जाते हैं और उनका जीवन स्तर गिर जाता है। कई परिवारों को दहेज के लिए कर्ज लेना पड़ता है जिससे वे मुश्किल से ही उऋण हो पाते हैं।
दहेज की वजह से वर पक्ष कभी संतुष्ट नहीं होता और कितना भी दहेज देने पर बहू को परेशान किया जाता है।
दहेज की विभीषिका और बड़ी उम्र तक विवाह न होने के कारण कई लड़कियाँ गलत रास्ते पर चली जाती हैं, जिससे समाज में अनैतिकता बढ़ती है। कुछ माता-पिता अपनी बेटियों को प्रेम संबंधों में प्रोत्साहित करते हैं ताकि बिना दहेज के विवाह हो सके, लेकिन कभी-कभी यह उल्टा पड़ जाता है।
दहेज की चिंता से माता-पिता और बेटियाँ मानसिक तनाव में रहते हैं, जिससे मानसिक रोग बढ़ते हैं।
दहेज की वजह से गरीब माता-पिता अपनी बेटियों को उचित शिक्षा नहीं दे पाते क्योंकि उनके पास दहेज जुटाने के लिए ही पैसा नहीं होता, पढ़ाई के लिए कहां से होगा।
दहेज प्रथा के ये दोष समाज और व्यक्तियों पर गहरा प्रभाव डालते हैं और इसे समाप्त करने की सख्त जरूरत है।