भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था। इस आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 को हुई, जब महात्मा गांधी ने बंबई (मुंबई) के ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (AICC) के सत्र में "करो या मरो" का नारा दिया। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सीधी चुनौती थी, जिसने अंततः ब्रिटिश साम्राज्य के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
द्वितीय विश्व युद्ध की घोषणा के बिना भारतीय नेताओं की सहमति के, ब्रिटिश सरकार ने भारत को युद्ध में धकेल दिया। इस कदम ने भारत में व्यापक असंतोष फैलाया। युद्ध के दौरान, आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी और महंगाई ने जनजीवन को अत्यधिक प्रभावित किया। जनता के लिए खाद्य सामग्री, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता कम हो गई, जिससे व्यापक पैमाने पर असंतोष फैल गया।
मार्च 1942 में ब्रिटिश सरकार ने सर स्टैफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा, ताकि भारतीयों को डोमिनियन स्टेटस की पेशकश की जा सके। हालांकि, इस प्रस्ताव ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य भारतीय नेताओं को निराश किया क्योंकि इसमें पूर्ण स्वतंत्रता की स्पष्ट बात नहीं थी। यह प्रस्ताव भारतीयों की आकांक्षाओं के विपरीत था, जो पूर्ण स्वतंत्रता चाहते थे। क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीय नेताओं और जनता के बीच यह विश्वास मजबूत किया कि ब्रिटिश सरकार भारतीय हितों के प्रति गंभीर नहीं है।
ब्रिटिश सरकार की विभाजनकारी नीतियों और दमनकारी उपायों ने भी भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की। अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीयों के साथ किया गया भेदभाव और उनके अधिकारों का हनन एक बड़ा कारण था।
गांधीजी ने "करो या मरो" के आह्वान के साथ एक व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया। उनके नेतृत्व में, भारतीयों ने सरकारी कार्यालयों, संस्थानों और संचार साधनों को ठप करने के लिए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए। आंदोलन की तीव्रता और व्यापकता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने कड़ा रुख अपनाया। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और अन्य प्रमुख कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद, आंदोलन पूरे देश में फैल गया और कई जगहों पर हिंसक झड़पें भी हुईं।
इस आंदोलन में समाज के सभी वर्गों ने भाग लिया, चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, छात्र हो, व्यापारी हो या फिर महिलाएँ। सभी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।
भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीयों के मन में यह स्पष्ट कर दिया कि अब अधिराज्य नहीं, बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता ही उनका लक्ष्य है। इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और स्वतंत्रता की मांग को एक निर्णायक मोड़ पर ला दिया।
इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की कमजोरियों को उजागर किया और यह स्पष्ट कर दिया कि वे भारत पर अपना नियंत्रण खोते जा रहे हैं। आंदोलन की व्यापकता और तीव्रता ने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास दिलाया कि अब भारत पर उनका शासन लंबे समय तक नहीं चल सकता।
भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की संगठित और दृढ़ प्रतिज्ञा को प्रदर्शित किया। इस आंदोलन के बाद, ब्रिटिश सरकार को यह समझ में आ गया कि भारतीयों को शांतिपूर्वक रखना अब संभव नहीं है। अंततः, इस आंदोलन के बाद स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए, और 15 अगस्त 1947 को भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
इस प्रकार, भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की स्वतंत्रता के मार्ग को प्रशस्त किया।