महात्मा गांधी द्वारा 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
रॉलेक्ट एक्ट को 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित किया गया। इस कानून का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकना था, लेकिन इसने भारतीयों के मूलभूत नागरिक अधिकारों को गंभीरता से सीमित कर दिया। इस कानून के तहत सरकार को बिना किसी न्यायिक सुनवाई के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और बिना मुकदमे के कैद रखने का अधिकार दिया गया था। इसे "ब्लैक एक्ट" भी कहा जाता था क्योंकि यह भारतीयों के नागरिक अधिकारों का दमन करता था।
गांधी जी और अन्य भारतीय नेता इस कानून के खिलाफ थे, क्योंकि यह भारतीयों की स्वतंत्रता पर एक गंभीर आघात था। उन्होंने इसे न्याय और नैतिकता के खिलाफ माना और इसके विरोध में एक व्यापक आंदोलन की आवश्यकता महसूस की। रॉलेक्ट एक्ट के खिलाफ व्यापक विरोध के बावजूद, ब्रिटिश सरकार ने इसे लागू किया, जिससे गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की नींव रखी।
13 अप्रैल 1919 को, अमृतसर के जालियाँवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा हो रही थी, जिसमें रॉलेक्ट एक्ट के खिलाफ विरोध जताया जा रहा था। इस सभा में हजारों लोग शामिल थे, जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर ने इस सभा को अवैध घोषित किया और बाग के सभी निकलने के रास्तों को बंद करके बिना किसी चेतावनी के उपस्थित लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया। इस निर्मम गोलीबारी में सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए।
इस घटना ने पूरे भारत को हिला कर रख दिया और गांधी जी को गहरा सदमा पहुंचाया। इस भयावह घटना ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता और अन्याय को उजागर किया और भारतीयों में गहरा आक्रोश उत्पन्न किया। गांधी जी ने इसे मानवता के खिलाफ एक जघन्य अपराध माना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत करने का निर्णय लिया।
इन घटनाओं से प्रेरित होकर, महात्मा गांधी ने भारतीयों से ब्रिटिश शासन के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग न करने का आह्वान किया। असहयोग आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को नैतिक, आर्थिक और प्रशासनिक रूप से कमजोर करना था, ताकि उन्हें भारत से बाहर जाने के लिए मजबूर किया जा सके।
असहयोग आंदोलन के दौरान लोगों से आग्रह किया गया कि वे सरकारी नौकरी छोड़ दें, सरकारी स्कूल और कॉलेजों का बहिष्कार करें, ब्रिटिश कानून अदालतों में मामलों की सुनवाई न करें, और ब्रिटिश वस्त्रों और अन्य वस्तुओं का बहिष्कार करें। गांधी जी ने खुद विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करके और चरखा चलाकर स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग किया।
असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जिसने ब्रिटिश सरकार की नींव को हिला दिया और भारतीयों को स्वतंत्रता की दिशा में एकजुट किया। इस आंदोलन ने भारतीय जनता में राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत किया और उन्हें स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में प्रेरित किया।