हैरड-डोमर मॉडल
हैरड और डोमर ने आर्थिक विकास के संदर्भ में विनियोग की महत्वपूर्ण भूमिका को बताया है। पहली बात, विनियोग से आय का निर्माण होता है, और दूसरी, इससे पूंजी स्टॉक में वृद्धि होती है, जिससे अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। आय का निर्माण, विनियोग की मांग का प्रभाव होता है, और उत्पादन क्षमता की वृद्धि, विनियोग की पूर्ति का प्रभाव होता है। जब पूर्ण विनियोग में वृद्धि होती है, तो वास्तविक आय और उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। अब सवाल यह है कि कैसे हम पूर्ण रोजगार संतुलन का सही से सामंजस्य बना सकते हैं? हैरड-डोमर इसका उत्तर देते हैं कि इस संतुलन के लिए आवश्यक है कि वास्तविक आय और उत्पादन दोनों में वृद्धि उसी दर से होनी चाहिए जिस दर से पूंजी स्टॉक की उत्पादन क्षमता बढ़ रही है। इस आवश्यक दर को "अभीष्ट संवृद्धि दर" या "पूर्ण क्षमता विकास दर" कहा जाता है।
हैरड-डोमर मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Harrod-Domar Model):
पूर्ण रोजगार: मॉडल का पहला मान्यता यह है कि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार है, अर्थात् सभी लोग काम पर हैं।
बंद अर्थव्यवस्था: इस मॉडल में "बंद अर्थव्यवस्था" की मान्यता है, जिसमें सरकार नहीं हस्तक्षेप करती है।
समय विलम्ब नहीं: मॉडल का तीसरा मान्यता है कि विनियोग और उत्पादन क्षमता के निर्माण में कोई समय विलम्ब नहीं होता है, यानी विनियोग के परिणामस्वरूप उत्पादन क्षमता तुरंत बढ़ती है।
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) स्थिर: मॉडल में मान्यता है कि सीमान्त बचत प्रवृत्ति स्थिर रहती है और सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) और औसत प्रवृत्ति (APS) समान होती हैं।
आय और बचत का संबंध: बचत और विनियोग का संबंध वर्ष की आय से होता है।
पूंजी गुणांक स्थिर: मॉडल में पूंजी गुणांक (Capital Co-efficient) स्थिर रहता है।
उत्पादन में कोई समय विलम्ब नहीं: मॉडल का यह मान्यता है कि उत्पादन में कोई समय विलम्ब नहीं होता है, यानी उत्पादन क्षमता तुरंत बढ़ जाती है।
सामान्य कीमत स्तर स्थिर: मॉडल में सामान्य कीमत स्तर स्थिर रहता है, अर्थात् मौद्रिक आय और वास्तविक आय में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
व्याज दर में कोई परिवर्तन नहीं: अंत में, मॉडल का मान्यता है कि व्याज दर में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
हैरड का विकास मॉडल(Harrod's Growth Model):-
हैरड ने अपने विकास मॉडल को गुणांक और त्वरण के आधार पर बनाया। हैरड का सिद्धांत है कि 'गुणांक और त्वरण के बीच एक आंतरिक संबंध है।' वह इस सिद्धांत को केंसियन विश्लेषण को प्रावैगिक बनाने की कोशिश करते हैं।
हैरड मॉडल के मुख्य आधार -
1.प्रावैगिक समान्यता ही विकास है - हैरड का मुख्य सिद्धांत है कि आर्थिक विकास के लिए तीन महत्वपूर्ण घटक आवश्यक हैं:
(अ) प्राकृतिक संसाधन,
(ब) पर्याप्त मात्रा में कुशल श्रम शक्ति का उपलब्ध होना,
(स) प्रति व्यक्ति की उत्पादकता का उच्च स्तर जिसका मतलब है कि उन्नत तकनीक और नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग होना चाहिए।
2.पूंजी संचय विकास की कुंजी है - पूंजी आर्थिक संवृद्धि का मुख्य निर्धारक है। इसे निवेश, रोजगार, और आय के स्तर को प्रभावित करने का महत्वपूर्ण तरीका माना जाता है। हैरड के अनुसार बचतें तीन प्रकार से की जाती हैं:
(अ) सामान्य बचतें जरूरतों की पूर्ति के लिए,
(ब) उत्तराधिकार संबंधित बचतें - संतानों या आगामी पीढ़ियों को धन सौंपने के लिए,
(स) निगमों या उद्योगों द्वारा की गई बचतें - जो मुख्य रूप से आर्थिक विकास में प्रयुक्त होती हैं।
हैरड के अनुसार, एक स्थितिगत समाज में बचत गतिशील नहीं होती है, ऐसे बचत निर्धारक दर पर नहीं होती है, जिसका मतलब है कि बचत की मांग शून्य होती है। इसलिए, बचत नफा पूंजी में स्थानिक बचतों के रूप में बढ़ती है, लेकिन दीर्घकाल में उच्च ब्याज दर पर ही अधिक बचत संभव होती है।
प्रावैगिक समाज में ऊपरोक्त तीन प्रकार की बचतें बढ़ती हैं, और इस प्रकार के समाज में बचत की कमी की समस्या नहीं होती, लेकिन उच्च बचतों की समस्या हो सकती है। यदि बचतें पूरी तरह से उपयोग की जाती हैं, तो आर्थिक विकास सतत विकास के मार्ग पर होता है।
डोमर का संवृद्धि मॉडल:
डोमर ने अपने संवृद्धि मॉडल में केन्सीय विश्लेषण की कमियों को दूर करते हुए उसमें प्रावैगिक तत्व सम्मिलित करने का प्रयास किया है। डोमर ने अपने विकास सिद्धान्त में दीर्घकालीन समस्याओं का अध्ययन अल्पकालीन साधनों के माध्यम से किया है और विकास की समस्या का समाधान गुणक, त्वरक और पूंजी अनुपातों की सहायता से करने का प्रयास किया है।
केन्स और डोमर के विचारों के बीच भिन्नता:
रोजगार का मानदंड: केन्स के अनुसार, रोजगार को राष्ट्रीय आय का प्रभाव माना जाता है, जबकि डोमर के अनुसार रोजगार को 'राष्ट्रीय आय और उत्पादन क्षमता के अनुपात' का प्रभाव माना जाता है।
सन्तुलित विकास: केन्स का सिद्धांत था कि पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय आय को सामूहिक रूप से बढ़ाना चाहिए, परंतु डोमर के अनुसार यह सम्भव नहीं है।
निवेश और उत्पादन क्षमता: केन्स ने निवेश को राष्ट्रीय आय में वृद्धि का प्रमुख कारक माना, परंतु डोमर के अनुसार उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के पहलू पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
गुणक और त्वरक: केन्स ने गुणक का समुचित ढंग से प्रयोग किया, परंतु त्वरक के विचार को अनदेखा किया। डोमर ने त्वरक के अनुसार बचतों की गति को महत्वपूर्ण माना और दीर्घकालीन प्रभाव को प्रमुख ध्यान में रखा।
निवेश की द्वैत प्रकृति: डोमर ने निवेश की द्वैत (dual) प्रकृति को स्वीकार किया, जिससे पूर्ण रोजगार की स्थिति को प्राप्त की जा सकती है।
इन विभिन्न दृष्टिकोणों के बीच डोमर ने केन्स के सिद्धांतों की आलोचना की और उन्होंने निवेश और उत्पादन क्षमता को महत्वपूर्ण धारणाओं के रूप में प्रमोट किया।
डोमर के विकास मॉडल की विशेषताएँ:
निवेश का महत्व: डोमर ने अपने मॉडल में निवेश को आर्थिक विकास के प्रमुख कारक के रूप में महत्वपूर्ण माना। उनके अनुसार, निवेश से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे आय में वृद्धि होती है।
बचत प्रवृति: उन्होंने बचत की प्रवृति को महत्वपूर्ण माना और यह ध्यान में रखा कि बचतों की गति और दीर्घकालीन प्रभाव आय और उत्पादन क्षमता में संतुलन बनाए रखती है।
आय-वृद्धि का ब्याज की दर पर प्रभाव: उन्होंने यह बताया कि अगर ब्याज की दर महसूसी रूप से कम हो, तो आय में वृद्धि होनी चाहिए, जो पूर्ण रोजगार को बनाए रखने में मदद कर सकती है।
सन्तुलित विकास: उन्होंने सुझाव दिया कि अगर निवेश और आय के बीच संतुलित विकास हो, तो यह समृद्धि के मार्ग पर सहायक हो सकता है।
उत्पादन क्षमता का वृद्धि: डोमर के अनुसार, निवेश से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे अधिक उत्पादन होता है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
मांग और पूर्ति का संतुलन: डोमर के अनुसार, मांग और पूर्ति के बीच संतुलन को बनाए रखना महत्वपूर्ण है, ताकि रोजगार की स्थिति सुरक्षित रहे।
विकसित देशों के सन्दर्भ में: डोमर ने सुझाव दिया कि विकसित देशों में आय-वृद्धि को इस प्रमाण के रूप में नहीं बढ़ाना चाहिए कि इससे अतिरिक्त स्पूर्तिक दशाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
इन विशेषताओं के माध्यम से, डोमर ने अपने मॉडल में निवेश की महत्वपूर्ण भूमिका को हाथ में लिया और उत्पादन क्षमता के महत्व को प्रमोट किया, जो आर्थिक समृद्धि के प्रति महत्वपूर्ण है।
हैरड-डोमर मॉडल की सीमाएँ (Limitations of Harrod-Domar Model):
बचत प्रवृति और पूंजी-उत्पाद अनुपात स्थिर नहीं रहते: हैरड-डोमर मॉडल में यह मान्यता है कि बचत प्रवृति और पूंजी-उत्पाद अनुपात स्थिर होते हैं, लेकिन वास्तविकता में इनमें परिवर्तन होता है, जिससे मॉडल की स्थितिगतता प्रश्नास्पद होती है।
श्रम और पूंजी का निश्चित अनुपात: मॉडल में यह मान्यता है कि श्रम और पूंजी का निश्चित अनुपात होता है, लेकिन वास्तविकता में इनमें विविधता हो सकती है और आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकती है।
ब्याज दर में परिवर्तन की अनदेखी: मॉडल में यह निर्दिष्ट है कि ब्याज दर में कोई परिवर्तन नहीं होता, लेकिन वास्तविकता में ब्याज दरों में परिवर्तन हो सकता है जिससे मॉडल की प्राधान्यता संदिग्ध होती है।
सरकारी कार्यक्रमों की अवहेलना: मॉडल में सरकारी कार्यक्रमों के प्रभाव को अनदेखा किया जाता है, जबकि वास्तविकता में सरकार का भूमिका महत्वपूर्ण हो सकता है।
पूंजीगत और उपभोक्ता वस्तुओं के बीच भेद की अनदेखी: मॉडल में पूंजीगत और उपभोक्ता वस्तुओं के बीच का भेद नहीं किया जाता, जबकि वास्तविकता में इसका महत्व हो सकता है।
सामान्य कीमत स्तर के परिवर्तन की व्याख्या नहीं: मॉडल में सामान्य कीमत स्तर में परिवर्तनों का समर्थन नहीं किया गया है, जबकि वास्तविकता में कीमतों में परिवर्तन सामान्य हो सकते हैं।
उद्यमी व्यवहार की अवहेलना: मॉडल में उद्यमी व्यवहार की अवहेलना की जाती है, जिससे मॉडल में अर्थव्यवस्था के विकास की सटीक दिशा नहीं प्राप्त होती।
इन सीमाओं के कारण, हैरड-डोमर मॉडल का आधारित अनुमान वास्तविक आर्थिक प्रदर्शन की अधिक सटीक व्याख्या नहीं कर पाता है।
@abcd 1 days ago
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