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आर्थिक विकास के हैरोड-डोमर मॉडल की विवेचना

Shilu Sinha
Shilu Sinha  @shilusinha
Created At - 2023-09-14
Last Updated - 2024-08-28

Table of Contents

  • हैरड-डोमर मॉडल
  • हैरड-डोमर मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Harrod-Domar Model):
    • 1. पूर्ण रोजगार:
    • 2. बंद अर्थव्यवस्था:
    • 3. समय विलम्ब नहीं:
    • 4. सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) स्थिर:
    • 5. आय और बचत का संबंध:
    • 6. पूंजी गुणांक स्थिर:
    • 7. उत्पादन में कोई समय विलम्ब नहीं:
    • 8. सामान्य कीमत स्तर स्थिर:
    • 9. व्याज दर में कोई परिवर्तन नहीं:
  • हैरड का विकास मॉडल(Harrod's Growth Model):-
  • हैरड मॉडल के मुख्य आधार -
  • 1.प्रावैगिक समान्यता ही विकास है -
    • (अ) प्राकृतिक संसाधन:
    • (ब) कुशल श्रम शक्ति:
    • (स) प्रति व्यक्ति उत्पादकता का उच्च स्तर:
  • 2.पूंजी संचय विकास की कुंजी है -
    • (अ) सामान्य बचतें:
    • (ब) उत्तराधिकार संबंधित बचतें:
    • (स) निगमों या उद्योगों द्वारा की गई बचतें:
    • 3. प्रावैगिक समाज में बचत और निवेश
  • डोमर का संवृद्धि मॉडल:
    • 1. गुणक और त्वरक का समन्वय:
    • 2. निवेश और उत्पादन क्षमता का महत्व:
    • 3. पूंजी अनुपात:
  • केन्स और डोमर के विचारों के बीच भिन्नता:
    • 1. रोजगार का मानदंड:
    • 2. सन्तुलित विकास:
    • 3. निवेश और उत्पादन क्षमता:
    • 4. गुणक और त्वरक:
    • 5. निवेश की द्वैत प्रकृति:
  • डोमर के विकास मॉडल की विशेषताएँ:
    • 1. निवेश का महत्व:
    • 2. बचत प्रवृति:
    • 3. आय-वृद्धि का ब्याज की दर पर प्रभाव:
    • 4. सन्तुलित विकास:
    • 5. उत्पादन क्षमता का वृद्धि:
    • 6. मांग और पूर्ति का संतुलन:
    • 7. विकसित देशों के सन्दर्भ में:
  • हैरड-डोमर मॉडल की सीमाएँ (Limitations of Harrod-Domar Model):
    • 1. बचत प्रवृति और पूंजी-उत्पाद अनुपात स्थिर नहीं रहते
    • 2. श्रम और पूंजी का निश्चित अनुपात:
    • 3. ब्याज दर में परिवर्तन की अनदेखी:
    • 4. सरकारी कार्यक्रमों की अवहेलना:
    • 5. पूंजीगत और उपभोक्ता वस्तुओं के बीच भेद की अनदेखी:
    • 6. सामान्य कीमत स्तर के परिवर्तन की व्याख्या नहीं:
    • 7. उद्यमी व्यवहार की अवहेलना:

हैरड-डोमर मॉडल

हैरड और डोमर ने आर्थिक विकास के संदर्भ में विनियोग की महत्वपूर्ण भूमिका को बताया है। पहली बात, विनियोग से आय का निर्माण होता है, और दूसरी, इससे पूंजी स्टॉक में वृद्धि होती है, जिससे अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। आय का निर्माण, विनियोग की मांग का प्रभाव होता है, और उत्पादन क्षमता की वृद्धि, विनियोग की पूर्ति का प्रभाव होता है। जब पूर्ण विनियोग में वृद्धि होती है, तो वास्तविक आय और उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। अब सवाल यह है कि कैसे हम पूर्ण रोजगार संतुलन का सही से सामंजस्य बना सकते हैं? हैरड-डोमर इसका उत्तर देते हैं कि इस संतुलन के लिए आवश्यक है कि वास्तविक आय और उत्पादन दोनों में वृद्धि उसी दर से होनी चाहिए जिस दर से पूंजी स्टॉक की उत्पादन क्षमता बढ़ रही है। इस आवश्यक दर को "अभीष्ट संवृद्धि दर" या "पूर्ण क्षमता विकास दर" कहा जाता है।

हैरड-डोमर मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Harrod-Domar Model):

1. पूर्ण रोजगार:

मॉडल की पहली और प्रमुख मान्यता यह है कि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार है। इसका मतलब यह है कि सभी लोग जो काम करना चाहते हैं, उन्हें रोजगार मिल रहा है। कोई भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं है। इस मान्यता का तात्पर्य यह है कि अर्थव्यवस्था अपनी पूर्ण उत्पादन क्षमता पर काम कर रही है।

2. बंद अर्थव्यवस्था:

हैरड-डोमर मॉडल "बंद अर्थव्यवस्था" की परिकल्पना पर आधारित है, जिसमें बाहरी व्यापार का कोई प्रभाव नहीं है। अर्थात्, अर्थव्यवस्था में कोई आयात या निर्यात नहीं होता है। साथ ही, इसमें सरकारी हस्तक्षेप को भी नजरअंदाज किया गया है, यानी सरकार द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाता है।

3. समय विलम्ब नहीं:

मॉडल यह मानता है कि जब निवेश किया जाता है, तो इसका परिणाम तुरंत दिखाई देता है। उत्पादन क्षमता में किसी प्रकार का समय विलम्ब नहीं होता है। निवेश के परिणामस्वरूप उत्पादन क्षमता तुरंत बढ़ जाती है। यह मान्यता वास्तविक दुनिया में पूरी तरह से सही नहीं हो सकती, क्योंकि निवेश को उत्पादन में बदलने में कुछ समय लग सकता है।

4. सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) स्थिर:

हैरड-डोमर मॉडल में यह मान्यता है कि सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) स्थिर रहती है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति का मतलब है कि आय में वृद्धि होने पर लोग कितनी अतिरिक्त बचत करेंगे। मॉडल मानता है कि यह दर स्थिर रहती है और यह औसत प्रवृत्ति (APS) के समान होती है।

5. आय और बचत का संबंध:

मॉडल यह मानता है कि बचत और निवेश का संबंध सीधे-सीधे वार्षिक आय से होता है। बचत का एक निश्चित भाग आय के साथ-साथ बढ़ता है, और यह बचत निवेश के रूप में अर्थव्यवस्था में पुनः प्रवाहित होती है, जिससे आर्थिक विकास होता है।

6. पूंजी गुणांक स्थिर:

पूंजी गुणांक (Capital Co-efficient) का मतलब है कि एक इकाई उत्पादन के लिए कितनी पूंजी की आवश्यकता होती है। हैरड-डोमर मॉडल में यह मान्यता है कि पूंजी गुणांक स्थिर रहता है। यह मान्यता उत्पादन प्रक्रिया की स्थिरता को दर्शाती है।

7. उत्पादन में कोई समय विलम्ब नहीं:

मॉडल की एक और महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि उत्पादन क्षमता में कोई समय विलम्ब नहीं होता है। जैसे ही निवेश किया जाता है, उत्पादन क्षमता तुरंत बढ़ जाती है। यह मान्यता भी वास्तविकता से थोड़ी दूर हो सकती है, क्योंकि निवेश से उत्पादन बढ़ाने में समय लग सकता है।

8. सामान्य कीमत स्तर स्थिर:

हैरड-डोमर मॉडल यह मानता है कि सामान्य कीमत स्तर स्थिर रहता है। इसका मतलब यह है कि मौद्रिक आय और वास्तविक आय में कोई परिवर्तन नहीं होता है। कीमतों में स्थिरता का अर्थ है कि मुद्रास्फीति या अपस्फीति का अर्थव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

9. व्याज दर में कोई परिवर्तन नहीं:

मॉडल की अंतिम मान्यता यह है कि ब्याज दरें स्थिर रहती हैं और उनमें कोई बदलाव नहीं होता है। स्थिर ब्याज दरें निवेश के निर्णयों को सरल बनाती हैं और निवेशकों के लिए पूर्वानुमान योग्य होती हैं।

हैरड का विकास मॉडल(Harrod's Growth Model):-

हैरड ने अपने विकास मॉडल को गुणांक और त्वरण के आधार पर बनाया। हैरड का सिद्धांत है कि 'गुणांक और त्वरण के बीच एक आंतरिक संबंध है।' वह इस सिद्धांत को केंसियन विश्लेषण को प्रावैगिक बनाने की कोशिश करते हैं।

हैरड मॉडल के मुख्य आधार -

1.प्रावैगिक समान्यता ही विकास है -

हैरड का मुख्य सिद्धांत है कि आर्थिक विकास के लिए तीन महत्वपूर्ण घटक आवश्यक हैं:

(अ) प्राकृतिक संसाधन:

किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपलब्ध होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये संसाधन उत्पादन और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए आवश्यक हैं। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती है, उसे नए संसाधनों की खोज और उनका अधिकतम उपयोग करना होता है।

(ब) कुशल श्रम शक्ति:

पर्याप्त मात्रा में कुशल श्रम शक्ति का उपलब्ध होना भी आवश्यक है। कुशल श्रम शक्ति का मतलब है कि श्रमिकों के पास आवश्यक कौशल और ज्ञान होना चाहिए जिससे वे उत्पादन में अधिक योगदान दे सकें। शिक्षा और प्रशिक्षण में निवेश से श्रम शक्ति की गुणवत्ता बढ़ती है।

(स) प्रति व्यक्ति उत्पादकता का उच्च स्तर:

यह उन्नत तकनीक और नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग से संभव होता है। उच्च उत्पादकता से अर्थव्यवस्था में उत्पादन बढ़ता है और विकास की गति तेज होती है। नई तकनीक और प्रौद्योगिकियों का उपयोग उत्पादन प्रक्रियाओं को अधिक कुशल बनाता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।

2.पूंजी संचय विकास की कुंजी है -

हैरड के अनुसार, पूंजी संचय आर्थिक संवृद्धि का मुख्य निर्धारक है। इसे निवेश, रोजगार, और आय के स्तर को प्रभावित करने का महत्वपूर्ण तरीका माना जाता है। पूंजी का संचय और उसका प्रभावी उपयोग आर्थिक विकास को तेज कर सकता है। हैरड ने बचतों को तीन प्रकारों में विभाजित किया है:

(अ) सामान्य बचतें:

ये बचतें व्यक्तियों की दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए होती हैं। यह आय का वह हिस्सा है जिसे लोग वर्तमान खपत के बजाय भविष्य की खपत के लिए बचाते हैं।

(ब) उत्तराधिकार संबंधित बचतें:

ये बचतें संतानों या आगामी पीढ़ियों को धन सौंपने के लिए की जाती हैं। इसमें संपत्ति और धन का संचय शामिल होता है जिसे बाद में संतानों को स्थानांतरित किया जाता है।

(स) निगमों या उद्योगों द्वारा की गई बचतें:

ये बचतें मुख्य रूप से आर्थिक विकास में प्रयुक्त होती हैं, जैसे कि नई मशीनरी खरीदने या अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के लिए। ये बचतें व्यवसायों द्वारा उनके विस्तार और सुधार के लिए की जाती हैं।

हैरड के अनुसार, एक स्थितिगत समाज (static society) में बचत गतिशील नहीं होती है, जिसका मतलब है कि बचत की मांग शून्य होती है। इस प्रकार के समाज में बचतें निवेश में परिवर्तित नहीं होती हैं, जिससे आर्थिक विकास रुक जाता है। इसलिए, बचत नफा पूंजी में स्थानिक बचतों के रूप में बढ़ती है, लेकिन दीर्घकाल में उच्च ब्याज दर पर ही अधिक बचत संभव होती है।

3. प्रावैगिक समाज में बचत और निवेश

प्रावैगिक समाज (dynamic society) में, उपरोक्त तीन प्रकार की बचतें बढ़ती हैं। इस प्रकार के समाज में बचत की कमी की समस्या नहीं होती, लेकिन उच्च बचतों की समस्या हो सकती है। यदि बचतें पूरी तरह से उपयोग की जाती हैं, तो आर्थिक विकास सतत विकास के मार्ग पर होता है। प्रावैगिक समाज में:

I. बचतें अधिक होती हैं और उन्हें निवेश में बदलने के लिए उपयुक्त अवसर उपलब्ध होते हैं।
II. निवेश का उपयोग नई प्रौद्योगिकियों और उत्पादक साधनों के लिए किया जाता है, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ती है।
III. उच्च बचत दर से आर्थिक विकास की गति तेज होती है, लेकिन इसके साथ-साथ यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक होता है कि निवेश उत्पादक क्षेत्रों में हो।

डोमर का संवृद्धि मॉडल:

डोमर का मॉडल यह बताने का प्रयास करता है कि किस प्रकार निवेश और उत्पादन क्षमता आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं। डोमर का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि दीर्घकालीन विकास के लिए निवेश और उत्पादन क्षमता का सही संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। डोमर ने निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया:

1. गुणक और त्वरक का समन्वय:

गुणक प्रभाव: निवेश का प्रभाव राष्ट्रीय आय पर गुणक के माध्यम से पड़ता है। जब निवेश बढ़ता है, तो यह मांग को बढ़ाता है, जिससे उत्पादन और आय में वृद्धि होती है।
त्वरक प्रभाव: त्वरक यह बताता है कि आय में वृद्धि निवेश को कैसे प्रभावित करती है। जैसे-जैसे आय बढ़ती है, निवेश की मांग भी बढ़ती है। डोमर ने त्वरक के महत्व को प्रमुखता दी और इसे दीर्घकालीन प्रभावों के लिए महत्वपूर्ण माना।

2. निवेश और उत्पादन क्षमता का महत्व:

डोमर के अनुसार, केवल राष्ट्रीय आय में वृद्धि ही पर्याप्त नहीं है; उत्पादन क्षमता को भी बढ़ाना आवश्यक है। उत्पादन क्षमता में वृद्धि से दीर्घकालीन विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है।

3. पूंजी अनुपात:

पूंजी अनुपात (Capital-output ratio) एक महत्वपूर्ण घटक है। यह बताता है कि एक इकाई उत्पादन के लिए कितनी पूंजी की आवश्यकता होती है। डोमर ने इस अनुपात को स्थिर मानते हुए अपने मॉडल को विकसित किया।

केन्स और डोमर के विचारों के बीच भिन्नता:

डोमर और केन्स के विचारों के बीच कुछ महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं:

1. रोजगार का मानदंड:

केन्स: केन्स के अनुसार, रोजगार को राष्ट्रीय आय का प्रभाव माना जाता है। जब राष्ट्रीय आय बढ़ती है, तो रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं।
डोमर: डोमर के अनुसार, रोजगार को 'राष्ट्रीय आय और उत्पादन क्षमता के अनुपात' का प्रभाव माना जाता है। रोजगार के स्तर को बनाए रखने के लिए उत्पादन क्षमता का सही संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

2. सन्तुलित विकास:

केन्स: केन्स का सिद्धांत था कि पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय आय को सामूहिक रूप से बढ़ाना चाहिए। उनका ध्यान मुख्य रूप से अल्पकालीन समस्याओं पर था।
डोमर: डोमर के अनुसार, केवल राष्ट्रीय आय को बढ़ाना पर्याप्त नहीं है। दीर्घकालीन संतुलित विकास के लिए उत्पादन क्षमता को भी बढ़ाना आवश्यक है।

3. निवेश और उत्पादन क्षमता:

केन्स: केन्स ने निवेश को राष्ट्रीय आय में वृद्धि का प्रमुख कारक माना। उनका मानना था कि निवेश के माध्यम से मांग बढ़ाई जा सकती है, जिससे आर्थिक विकास संभव है।
डोमर: डोमर ने उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के पहलू पर जोर दिया। उनका मानना था कि निवेश के साथ-साथ उत्पादन क्षमता को भी बढ़ाना आवश्यक है।

4. गुणक और त्वरक:

केन्स: केन्स ने गुणक का समुचित ढंग से प्रयोग किया, लेकिन त्वरक के विचार को अनदेखा किया।
डोमर: डोमर ने त्वरक के अनुसार बचतों की गति को महत्वपूर्ण माना और दीर्घकालीन प्रभाव को प्रमुख ध्यान में रखा।

5. निवेश की द्वैत प्रकृति:

डोमर ने निवेश की द्वैत (dual) प्रकृति को स्वीकार किया, जिससे पूर्ण रोजगार की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है। निवेश का एक भाग मांग को बढ़ाता है और दूसरा भाग उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है।

डोमर के विकास मॉडल की विशेषताएँ:

1. निवेश का महत्व:

डोमर ने अपने मॉडल में निवेश को आर्थिक विकास के प्रमुख कारक के रूप में महत्वपूर्ण माना। उनके अनुसार, निवेश से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे आय में वृद्धि होती है। निवेश का अर्थ है पूंजीगत वस्तुओं (जैसे मशीनरी, उपकरण, इंफ्रास्ट्रक्चर) में खर्च करना, जो उत्पादन की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है। निवेश के माध्यम से, नई तकनीकों और विधियों का उपयोग किया जा सकता है, जिससे उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे आर्थिक विकास को स्थिरता मिलती है और रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं।

2. बचत प्रवृति:

डोमर ने बचत की प्रवृति को भी महत्वपूर्ण माना। उन्होंने यह ध्यान में रखा कि बचतों की गति और दीर्घकालीन प्रभाव आय और उत्पादन क्षमता में संतुलन बनाए रखती है। बचत का उपयोग निवेश के लिए किया जाता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। डोमर ने यह भी माना कि उच्च बचत दर से अधिक निवेश संभव होता है, जो उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है और दीर्घकालीन आर्थिक विकास को सुनिश्चित करता है। इस प्रकार, बचत और निवेश का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

3. आय-वृद्धि का ब्याज की दर पर प्रभाव:

डोमर ने यह बताया कि अगर ब्याज की दर महसूसी रूप से कम हो, तो आय में वृद्धि होनी चाहिए, जो पूर्ण रोजगार को बनाए रखने में मदद कर सकती है। कम ब्याज दर से निवेश को प्रोत्साहन मिलता है, क्योंकि उधारी सस्ती हो जाती है। इससे व्यवसायों और उद्योगों को पूंजी प्राप्त करने में आसानी होती है, जिससे वे अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार, कम ब्याज दरें आर्थिक विकास और रोजगार को बढ़ावा देती हैं।

4. सन्तुलित विकास:

डोमर ने सुझाव दिया कि अगर निवेश और आय के बीच संतुलित विकास हो, तो यह समृद्धि के मार्ग पर सहायक हो सकता है। संतुलित विकास का मतलब है कि निवेश और आय दोनों एक समान दर से बढ़ें, जिससे अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनी रहे। संतुलित विकास से मांग और पूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखा जा सकता है, जिससे आर्थिक अस्थिरता और मुद्रास्फीति की समस्याओं से बचा जा सकता है। यह संतुलन आर्थिक विकास को स्थायी और सतत बनाए रखने में मदद करता है।

5. उत्पादन क्षमता का वृद्धि:

डोमर के अनुसार, निवेश से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे अधिक उत्पादन होता है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। उत्पादन क्षमता में वृद्धि का मतलब है कि अर्थव्यवस्था अधिक वस्त्रों और सेवाओं का उत्पादन कर सकती है, जिससे राष्ट्रीय आय और जीवन स्तर में सुधार होता है। उत्पादन क्षमता में वृद्धि से व्यापार की संभावनाएँ भी बढ़ती हैं और अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होता है।

6. मांग और पूर्ति का संतुलन:

डोमर के अनुसार, मांग और पूर्ति के बीच संतुलन को बनाए रखना महत्वपूर्ण है, ताकि रोजगार की स्थिति सुरक्षित रहे। जब मांग और पूर्ति के बीच संतुलन होता है, तो उत्पादन का स्तर स्थिर रहता है और अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति या मंदी की समस्याएँ नहीं होती हैं। संतुलित मांग और पूर्ति से उत्पादन की योजना बनाने में सुविधा होती है और अर्थव्यवस्था में आवश्यक संतुलन बनाए रखा जाता है।

7. विकसित देशों के सन्दर्भ में:

डोमर ने सुझाव दिया कि विकसित देशों में आय-वृद्धि को इस प्रमाण के रूप में नहीं बढ़ाना चाहिए कि इससे अतिरिक्त स्पूर्तिक दशाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। विकसित देशों में पहले से ही उच्च स्तर की उत्पादन क्षमता और निवेश होता है, इसलिए अधिक आय-वृद्धि से मुद्रास्फीति और आर्थिक अस्थिरता की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं। विकसित देशों को संतुलित और स्थायी विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे दीर्घकालीन आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो सके।

हैरड-डोमर मॉडल की सीमाएँ (Limitations of Harrod-Domar Model):

हैरड-डोमर मॉडल आर्थिक विकास को समझाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है, लेकिन इसमें कुछ महत्वपूर्ण सीमाएँ भी हैं। इन सीमाओं को समझने के लिए हम सरल भाषा में इनके बारे में विस्तार से जानते हैं:

1. बचत प्रवृति और पूंजी-उत्पाद अनुपात स्थिर नहीं रहते

हैरड-डोमर मॉडल यह मानता है कि बचत प्रवृति (MPS) और पूंजी-उत्पाद अनुपात (Capital-Output Ratio) स्थिर रहते हैं। लेकिन वास्तविकता में ये दोनों घटक स्थिर नहीं होते। समय के साथ लोगों की बचत की प्रवृत्ति बदल सकती है, और नई तकनीकों और विधियों के कारण पूंजी-उत्पाद अनुपात भी बदल सकता है। इससे मॉडल की सटीकता पर सवाल उठते हैं।

2. श्रम और पूंजी का निश्चित अनुपात:

मॉडल यह मानता है कि उत्पादन के लिए श्रम और पूंजी का निश्चित अनुपात होता है। लेकिन वास्तव में, विभिन्न उद्योगों और व्यवसायों में श्रम और पूंजी का अनुपात भिन्न हो सकता है। यह विविधता आर्थिक विकास को प्रभावित करती है और मॉडल की सरलता को चुनौती देती है।

3. ब्याज दर में परिवर्तन की अनदेखी:

हैरड-डोमर मॉडल यह मानता है कि ब्याज दर स्थिर रहती है। लेकिन वास्तविकता में ब्याज दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं, जो निवेश और बचत को प्रभावित करती हैं। ब्याज दरों में बदलाव से आर्थिक गतिविधियों पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है, जिसे मॉडल नजरअंदाज करता है।

4. सरकारी कार्यक्रमों की अवहेलना:

मॉडल में सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन वास्तव में, सरकार के नीतिगत फैसले, जैसे कर नीति, सार्वजनिक खर्च, और सब्सिडी, आर्थिक विकास को बहुत प्रभावित करते हैं। इनका मॉडल में समावेश न होने से इसकी प्रासंगिकता कम हो जाती है।

5. पूंजीगत और उपभोक्ता वस्तुओं के बीच भेद की अनदेखी:

हैरड-डोमर मॉडल में पूंजीगत वस्तुओं (जैसे मशीनरी, इंफ्रास्ट्रक्चर) और उपभोक्ता वस्तुओं (जैसे खाद्य पदार्थ, कपड़े) के बीच का भेद नहीं किया जाता। जबकि वास्तव में, इन दोनों के उत्पादन और मांग के पैटर्न में अंतर होता है, जो आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है।

6. सामान्य कीमत स्तर के परिवर्तन की व्याख्या नहीं:

मॉडल यह मानता है कि सामान्य कीमत स्तर स्थिर रहता है। लेकिन वास्तविकता में, कीमतें बदलती रहती हैं। मुद्रास्फीति या मूल्य स्थिरता का आर्थिक विकास पर गहरा प्रभाव होता है, जिसे मॉडल ध्यान में नहीं रखता।

7. उद्यमी व्यवहार की अवहेलना:

मॉडल में उद्यमियों के व्यवहार और निर्णयों का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन वास्तव में, उद्यमियों के निवेश के फैसले, जोखिम लेने की क्षमता, और बाजार की स्थितियों का आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। इस पहलू की अनदेखी से मॉडल की उपयोगिता सीमित हो जाती है।

सारांश
हैरड-डोमर मॉडल आर्थिक विकास को समझाने का एक प्रयास है, लेकिन इसमें कई सीमाएँ हैं जो इसकी सटीकता और प्रासंगिकता को प्रभावित करती हैं। बचत प्रवृत्ति और पूंजी-उत्पाद अनुपात का स्थिर न रहना, ब्याज दरों में परिवर्तन, सरकारी नीतियों का अभाव, और उद्यमियों के व्यवहार की अनदेखी जैसी सीमाएँ इस मॉडल को वास्तविक आर्थिक परिस्थितियों से दूर ले जाती हैं। इन सीमाओं के कारण, हैरड-डोमर मॉडल का आधारित अनुमान वास्तविक आर्थिक प्रदर्शन की अधिक सटीक व्याख्या नहीं कर पाता है।

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